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उम्मीद तोड़ रहे हैं मनमोहनः टाइम

८ जुलाई २०१२

दुनिया की निगाहें भारत की तरफ हैं और भारत न जाने किस ओर देख रहा है. आर्थिक मोर्चे पर बढ़ रही भारत की नाकामियों से दुनिया भर में चिंता है. मशहूर टाइम पत्रिका ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर सवाल उठाए हैं.

तस्वीर: AP

आर्थिक सुधार के जिस रास्ते पर दौड़ लगा कर भारत ने भारत ने विकास की बयार बहाई है, मनमोहन सिंह कभी उसके केंद्र में रहे थे. प्रधानमंत्री बनने के बाद वही मनमोहन अपने ही बनाए रास्तों को पर चलने में असमर्थ हो गए हैं.

मशहूर अमेरिकी पत्रिका टाइम ने भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को "अपनी क्षमता से कम सफल" प्रधानमंत्री कहा है. पत्रिका के ताजा अंक में छपे एक लेख में लिखा गया है, ऐसा लगता है कि सुधारों के जिन रास्ते पर चल कर देश दोबारा विकास की ओर छलांग लगा सकता है, प्रधानमंत्री उस पर जाना ही नहीं चाहते. 79 साल के मनमोहन सिंह पर टाइम ने एक कवर स्टोरी छापी है. प्रधानमंत्री की तस्वीर वाले कवर पर लिखा है, "द अंडरअचीवर-इंडिया नीड्स ए रीबूट"(अपनी क्षमता से कम सफलता हासिल करने वाले- भारत को दोबारा शुरू करने की जरूरत है).

तस्वीर: time.com

क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस काम के लायक हैं? टाइम ने अपनी रिपोर्ट में सवाल उठाया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि धीमे आर्थिक विकास, भारी राजकोषीय घाटा, और रूपये की घटती कीमत के बावजूद भारत की कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाला गठबंधन भ्रष्टाचार, विवाद और आर्थिक दिशाहीनता की स्थिति में घिरा है. टाइम की रिपोर्ट के मुताबिक, "घरेलू और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों के पांव ठंडे होने लगे हैं. वोटरों का भरोसा खत्म हो रहा है क्योंकि बढ़ती महंगाई और घोटालों ने सरकार की साख गिरा दी है."

प्रधानमंत्री का सम्मान घटने की ओर इशारा करते हुए पत्रिका ने लिखा है, "उनके भीतर जो शांत भरोसा दिखता था वो पिछले तीन सालों में गायब हो गया है. ऐसा लगता है कि वह अपने मंत्रियों पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं, अस्थाई रूप से वित्त मंत्रालय उनके पास आने के बावजूद वो उन सूधारों की तरफ नहीं बढ़ रहे जो उनके जरिए ही शुरू हुई उदारीकरण की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सके."

तस्वीर: Reuters

टाइम ने लिखा है कि ऐसे वक्त में जब कि भारत अर्थव्यवस्था मंदी का बोझ उठाने की स्थिति में नहीं है, "विकास करने और नौकरियां प्रदान करने वाले कानून संसद में अटके पड़े हैं, चिंता बढ़ रही है कि राजनेता कम समये के लिए लोगों को लुभा कर वोट हासिल करने के चक्कर में अपना ध्यान गंवा बैठे हैं."

एनआर/एमजी(पीटीआई)

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