उम्र की आड़ में वैवाहिक बलात्कार से हाथ पीछे खींचे सरकार ने
निर्मल यादव३० अगस्त २०१६
वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने की मांग को सरकार ने फिलहाल सामाजिक परिस्थितियों का हवाला देकर मानने से इंकार कर दिया है.
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इस मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में पेश याचिका पर बाकायदा हलफनामा देकर केन्द्र सरकार ने साफ कर दिया है कि पति और पत्नी के बीच सहवास की सहमति के लिए उम्र की न्यूनतम सीमा को 15 साल पर ही स्थिर रखा जाएगा.
सरकारकी दलील
भारत सरकार के इस हलफनामे से स्पष्ट हो जाता है कि फिलहाल वैवाहिक बलात्कार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में स्थान नहीं मिलेगा. जबकि याचिका में मांग की गई है कि विवाह की स्थिति में भी 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ पति के सहवास को पत्नी की सहमति को अनिवार्य बनाया जाए. आईपीसी के मुताबिक सहवास के लिए सहमति देने की न्यूनतम उम्र 18 साल है. इससे कम उम्र की महिला के साथ सहमति या बिना सहमति के किया गया सहवास बलात्कार माना जाएगा. लेकिन धारा 375(2) विवाहित महिला के मामले में सहमति की उम्र को 15 साल तक सीमित कर देती है. सरकार की दलील है कि भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक और शैक्षिक स्थिति को देखते हुए अपवाद के तौर पर पत्नी के साथ पति के सहवास के लिए सहमति की उम्र को घटा कर 15 साल करने का प्रावधान किया गया है.
रेप के लिए कहां कितनी सजा
हाल ही में जर्मनी ने अपने बलात्कार विरोधी कानून को और सख्त बनाने के लिए कदम उठाए हैं. जानिए, जर्मनी में और बाकी देशों में रेप के लिए क्या कानून है.
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जर्मनी
जर्मन कानून में अब तक रेप की कोशिश का विरोध न करने पर मामला रेप का नहीं बनता था. अब इस परिभाषा में बदलाव किया गया है. अब छूने, अंगों को टटोलने और दबोचने को भी यौन हिंसा के दायरे में लाया गया है.
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फ्रांस
फ्रांस में रेप का मतलब है ऐसी कोई भी यौन गतिविधि जिसमें दोनों की सहमति ना हो. वहां 20 साल तक की सजा हो सकती है. गाली-गलौज पर भी दो साल तक की सजा का प्रावधान है.
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इटली
1996 में इटली के रेप विरोधी कानून में व्यापक बदलाव किए गए. इसके बाद पत्नी के साथ जबर्दस्ती को भी रेप के दायरे में लाया गया. इसके लिए 10 साल तक की सजा हो सकती है.
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स्विट्जरलैंड
स्विट्जरलैंड में रेप तभी माना जाता है जब योनि संसर्ग हुआ हो. अन्य यौन हमलों को यौन हिंसा माना जाता है. इसके लिए 10 साल तक की जेल हो सकती है. 2014 के बाद शादी में भी रेप को अपराध माना गया है.
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स्वीडन
स्वीडन में जबरन किसी के कपड़े उतारने पर भी दो साल की कैद हो सकती है. मजबूर लोगों का यौन शोषण, मसलन सोते वक्त या नशे की हालत में या किसी तरह डरा कर सेक्स करने की कोशिश करना भी रेप है.
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अमेरिका
अमेरिका में अलग-अलग राज्यों में रेप की परिभाषा अलग-अलग है. लेकिन वहां सेक्स में सहमति पर जोर दिया गया है. सेक्स से पहले स्पष्ट सहमति जरूरी है.
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सऊदी अरब
यहां रेप के लिए मौत की सजा का प्रावधान है. हालांकि रेप को साबित करना बहुत मुश्किल है. जो महिलाएं रेप की शिकायत करती हैं अगर वे साबित ना कर पाईं तो उन्हें भी सजा हो सकती है.
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भारत
निर्भया कांड के बाद भारत में रेप विरोधी कानून में कई बदलाव किए गे हैं. अब रेप के लिए आमतौर पर सात साल से उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है. लेकिन विशेष परिस्थितियों में जैसे कि पुलिस हिरासत में रेप, रिश्तेदार या टीचर द्वारा रेप के मामले में 10 साल से उम्र कैद तक भी हो सकती है. अगर पीड़िता की मौत हो जाती है तो मौत की सजा भी हो सकती है.
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इसके लिए विधि आयोग की 172वीं रिपोर्ट का भी हवाला दिया गया है, जिसमें जस्टिस जेएस वर्मा ने सामाजिक आर्थिक और शैक्षिक परिस्थितियों का हवाला देकर भारत में वैवाहिक बलात्कार को अपराध न बनाने की सिफारिश की है. इस मामले में मौजूदा कानून और सरकार पति का संरक्षण करने वाली नीति को बढ़ावा दे रही है. सरकार का मानना है कि दहेज और महिला हिंसा से जुड़े़ मामलों में कानून महिलाओं के प्रति पक्षधर है लेकिन इन मामलों में भी कानून के दुरुपयोग को देखते हुए वैवाहिक बलात्कार को लेकर सरकार परिवार की निजता को देखते हुए सजग है. जस्टिस वर्मा ने भी इस दलील को सही ठहराते हुए कहा था कि समाज में जब तक बौद्धिक स्तर पर पुरुष और महिलाओं दोनों में परिपक्वता नहीं आती है तब तक इस तरह के प्रावधान को कानून में जगह देने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता है.
क्यों होते हैं बलात्कार?
भारत में रोजाना औसतन 92 महिलाओं का बलात्कार होता है. जब भी किसी महिला के साथ यह जघन्य अपराध होता है, कभी सवाल उसके कपड़ों तो कभी देर रात घर से बाहर रहने पर उठाए जाते हैं. क्या महिलाओं पर बंदिशें लगाना ही है उपाय?
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तन ढकने की जरूरत
मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौसम की मार से बचने के लिए शरीर को ढकने की जरूरत महसूस की गई. बीतते समय के साथ जानवरों की छाल पहनने से लेकर आज इतने तरह के कपड़े मौजूद हैं. जीवनशैली के आसान होने के साथ साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं और अब यह अवसर, माहौल, पसंद और फैशन के हिसाब से पहने जाते हैं. फिर पूरे बदन को ढकने वाले कपड़ों पर जोर क्यों?
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अंग प्रदर्शन यानि बलात्कारियों को न्यौता
भारत में बलात्कार के ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पीड़िता ने सलवार कमीज और साड़ी जैसे भारतीय कपड़े पहने हुए थे. उनपर हमला करने वाले पुरुषों ने अपनी सेक्स की भूख के कारण संतुलन खो दिया. ऑनर किलिंग के कई मामलों में किसी महिला को सबक सिखाने के मकसद से उस पर जबरन यौन हिंसा की गई और फिर जान से मार डाला गया. इन सबके बीच कपड़ों पर तो किसी का ध्यान नहीं गया.
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कानून का डर नहीं
संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में एशिया प्रशांत क्षेत्र में किए अपने सर्वे में पाया गया कि सर्वे में शामिल हर चार में एक पुरुष ने अपने जीवन में कम से कम एक बार किसी महिला का बलात्कार किया है. इनमें से 72 से लेकर 97 फीसदी मामलों में इन पुरुषों को किसी कानूनी कार्यवाई का सामना नहीं करना पड़ा था.
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मनोरंजन का साधन हैं यौन अपराध
उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ इतने ज्यादा यौन अपराधों का कारण प्रदेश की पुलिस ने वहां मोबाइल फोनों के बढ़ते इस्तेमाल, पश्चिमी देशों के बुरे असर और छोटे कपड़ों को ठहराया. लोगों को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी में पूरी तरह विफल पुलिस का कहना है कि मनोरंजन के बहुत कम साधन होने के कारण पुरुष यौन अपराधों को अंजाम देने लगते हैं.
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महिलाओं से मिल रही है चुनौती
सड़कों, ऑफिसों या किसी सार्वजनिक स्थान पर कई बार महिलाओं के कपड़े नहीं बल्कि उनके चेहरे से झलकता आत्मविश्वास, स्वच्छंद रवैया और अब तक पुरुषों के कब्जे में रहे कई क्षेत्रों में उनकी पहुंच कई पुरुषों को बौखला रही है. सदियों से स्थापित पुरुषसत्तात्मक समाज के समर्थक ऐसी औरतों को सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने का जिम्मेदार मानते हैं और यौन हिंसा कर उन्हें समाज में उनकी सही जगह दिखाने की कोशिश करते हैं.
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महिलाओं को ज्यादा बड़ा खतरा किससे
दुनिया के सबसे युवा देश में आज बलात्कार महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे बड़ा अपराध बन चुका है. नेशनल क्राइम ब्यूरो की 2013 रिपोर्ट बताती है कि साल दर साल दर्ज होने वाले इन करीब 98 फीसदी मामलों में बलात्कारी पीड़ित का जानने वाला था. ज्यादातर मामले जो प्रकाश में आते हैं वे सार्वजनिक जगहों पर अनजान लोगों द्वारा किए गए होते हैं जिस कारण इस सच्चाई पर ध्यान नहीं जाता.
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एक कदम आगे, दो कदम पीछे
एक ओर पहले के मुकाबले ज्यादा लड़कियां पढ़लिख रही हैं और कार्यक्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. दूसरी ओर इस कारण वे शादी और बच्चे देर से पैदा कर रही हैं. भारत में शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाने के मामले समाज के लिए असहनीय और खतरा बताए जाते हैं. इस कारण बहुत से युवा पुरुष को अपनी यौन इच्छा पूरी करने का कोई स्वस्थ तरीका नहीं मिलता और कई बार यही यौन हिंसा का कारण बनता है.
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हिंसा का चक्र गर्भ से ही शुरु
भारत में अजन्मे बच्चे की लिंग जांच कर मादा भ्रूण को गर्भ में ही मार देने की घटनाएं आम हैं. जो लड़कियां जन्म ले पाती हैं वे संख्या में इतनी कम हैं कि समाज का संतुलन बिगड़ गया है. स्त्री-पुरुष अनुपात के मामले में भारत 1970 से भी नीचे आ गया है. इसके अलावा बाल विवाह, कम उम्र में मां बनना, प्रसव से जुड़ी मौतें और घरेलू हिंसा के लिए भी क्या छोटे कपड़ों को ही जिम्मेदार मानेंगे.
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महिलाओंकीसुरक्षापरसवाल
हालांकि इस मांग के पक्षधर समूहों का मानना है कि समय के साथ जब तक महिलाओं को घर की चारदीवारी में निजता का अधिकार नहीं दिया जाएगा तब तक घर के बाहर महिलाओं की सुरक्षा खासकर यौन हिंसा के मामलों में महफूज नहीं किया जा सकता है. इतना ही नहीं अप्राकृतिक यौनाचार के मामलों को वैवाहिक बलात्कार की श्रेणी में रखने की जरूरत को इंकार नहीं किया जा सकता है. मौजूदा मामले में भी 20 साल की महिला ने अपने पति के खिलाफ अप्राकृतिक यौन संबंध के लिए विवश करने की शिकायत दर्ज कराई थी.
पत्नी के मुकदमे को गलत बताते हुए पति ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कानून में भ्रम की स्थिति का हवाला देकर उसके खिलाफ दायर शिकायत को रद्द करने की मांग की थी. हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार से इस बारे में कानूनी स्थिति स्पष्ष्ट करने को कहा. इस पर केन्द्र ने परिवार की मौजूदा संस्थागत व्यवस्था में पति पत्नी के संबंधों में निजता को वरीयता देते हुए कानून के भ्रम को स्वीकार्यता प्रदान की है.
क्याहैभ्रम
आईपीसी की धारा 377 अप्राकृतिक यौनाचार को अपराध घोषित करती है. लेकिन धारा 375(2) इसमें अपवाद की स्थिति उत्पन्न करते हुए विवाहित जोड़े के बीच किसी भी प्रकार के यौन संबंधों को निजता के दायरे में रखते हुए अपराध मानने से इंकार करता है. ऐसे में कानूनी भ्रम इस बात को लेकर है कि जो कार्य सामान्य व्यक्ति के तौर पर करना अपराध है वही कार्य पति पत्नी के तौर पर करना अपराध नहीं है. ऐसे में महिला अधिकारों के पैरोकार अप्राकृतिक यौनाचार को पति पत्नी के रिश्तों की निजता के नाम पर कानूनी मान्यता देना महिलाओं के साथ अन्याय मानते हैं. इनका मानना है कि इसे वैवाहिक बलात्कार की श्रेणी में रखकर अपराध घोषित करना अब समय की मांग है.