भारत सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बीच में दो महीने तक चली खींचतान गवर्नर उर्जित पटेल के अचानक इस्तीफे के बाद रुक गई है. लेकिन रिजर्व बैंक की साख पर अंतरराष्ट्रीय संस्थानों की नजर है.
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दो महीने पहले रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के उप गवर्नर विरल आचार्य ने एक भाषण में ये साफ कहा था कि जो सरकार अपने केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करती वो आज या कल वित्तीय बाजार की प्रतिक्रिया को हवा देगी. इस भाषण के बाद भारत सरकार और आरबीआई के बीच खींचतान खुलकर सामने आ गई. अब कुछ हफ्ते बाद आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया.
1990 के दशक में आर्थिक सुधारों के शुरू होने के बाद उर्जित पटेल केंद्रीय बैंक के पहले ऐसे गवर्नर है जिन्होंने इस्तीफा दिया है. जानकारों का मानना है कि आरबीआई अपनी स्वायत्तता को लेकर अत्यंत चिंतित है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में गवर्नर नियुक्त रघुराम राजन का भी नरेंद्र मोदी की सरकार के साथ कुछ खास अच्छा रिश्ता नहीं था और इसलिए राजन का कार्यकाल बढ़ाया नहीं गया था. रघुराम राजन ने कहा है कि "उर्जित पटेल के इस्तीफे से भारत के हर नागरिक को चिंतित होना चाहिए. हम को ये पता करना चाहिए कि ऐसा क्या हो गया कि उर्जित पटेल ने ऐसा फैसला लिया."
इन गवर्नरों ने दिया आरबीआई से इस्तीफा
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) और सरकार के बीच टकराव और मतभेद का सिलसिला नया नहीं है. कुछ मौकों पर आरबीआई गवर्नरों ने इस्तीफे दे दिए तो कई बार बिगड़ती बात बन गई. एक नजर ऐसे गवर्नरों पर जिन्होंने पद से इस्तीफा दिया.
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उर्जित पटेल
निजी कारणों का हवाला देते हुए आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने 10 दिसंबर 2018 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. माना जाता है कि यह इस्तीफा पटेल और केंद्र सरकार के बीच मतभेदों का नतीजा है. जानकारों के मुताबिक दोनों पक्षों में स्वायत्ता के मसले पर टकराव की स्थिति थी.
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क्या था विवाद
स्थानीय मीडिया के मुताबिक वित्त मंत्रालय रिजर्व बैंक कानून की धारा सात को लागू करने पर सोच विचार कर रही थी. यह धारा बैंक के गवर्नर को जनहित के मुद्दों पर निर्देश देने का अधिकार देती है. कहा तो यह भी गया कि सरकार बैंक से 3 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक की मांग कर रही है, जिसका आरबीआई विरोध कर रहा है.
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आर एन मल्होत्रा
आर एन मल्होत्रा फरवरी 1985 से दिसबंर 1990 तक आरबीआई के गवर्नर रहे. वीपी सिंह सरकार ने मल्होत्रा का कार्यकाल बढ़ा दिया था. लेकिन वीपी सिंह के बाद केंद्र में आई चंद्रशेखर सरकार में वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा और मल्होत्रा के मतभेदों के चलते गवर्नर ने अपना पद छोड़ दिया. इसके बाद एस वेंकटरमन केंद्रीय बैंक के गवर्नर नियुक्त किए गए.
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सर बेनेगल रामाराउ
आरबीआई के इतिहास में इस्तीफे का सबसे पहला मामला साल 1957 में सर बेनेगल रामाराउ का था. रामाराउ के तात्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी के साथ कई मुद्दों पर मतभेद थे. वित्त मंत्री कृष्णामाचारी ने आरबीआई को अप्रत्यक्ष रूप से वित्त मंत्रालय के तहत काम करने वाली संस्था कहा था, जिसके बाद रामाराउ ने प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के सामने आगे काम करने को लेकर अपनी असमर्थता जताई और पद से इस्तीफा दे दिया.
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मनमोहन सिंह
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटी ने अपनी किताब में खुलासा किया था कि साल 1984 में मनमोहन सिंह ने आरबीआई के गवर्नर पद से इस्तीफा दे दिया था. दरअसल उस वक्त केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विदेशी बैंकों को लाइसेंस जारी करने की शक्तियां आरबीआई से वापस लेने को मंजूरी दी थी. लेकिन सिंह के इस्तीफे को सरकार ने नहीं माना और कैबिनेट प्रस्ताव को खारिज कर दिया, जिसके बाद मनमोहन सिंह ने अपना कार्यकाल पूरा किया.
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आगे क्या होगा?
आरबीआई के पूर्व डायरेक्टर विपिन मलिक का कहना है कि सरकार हमेशा से आरबीआई के कामकाज में दखलअंदाजी करती रही है. उन्होंने डॉयचे वेले से एक इंटरव्यू में कहा, "उर्जित पटेल के इस्तीफे का सीधा असर भारत की रेटिंग पर पडेगा. अभी हमारी रेटिंग बीबीबी है और जैसे ही रेटिंग कम होती है ब्याज दर बढ़ जाती है, ऐसा कॉन्ट्रेक्ट में लिखा हुआ होता है. इससे देश को नुकसान होगा." रेटिंग इसलिए महत्वपूर्ण होता है कि आईएमएफ, विश्व बैंक, एशियाई विकास बैंक या दूसरे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थान इसी के आधार पर देशों के केंद्रीय बैंकों को कर्ज देते हैं.
भारत की वित्तीय नियामक संस्था सेबी के पूर्व कार्यकारी निदेशक जेएन गुप्ता का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार इस घटना को नकारात्मक तरीके से देखेगा और इसका असर तब तक रहेगा जब तक सरकार नया आरबीआई गवर्नर नियुक्त नहीं कर देती. उनका कहना है, "इसके बाद कौन गवर्नर बनता है और कितनी पारदर्शिता आती है इस पर अंतरराष्ट्रीय बाजार की नजर रहेगी."
आरबीआई की अगली बोर्ड बैठक 14 दिसंबर को है और अगर तब तक नए गवर्नर की नियुक्ति नहीं होती है तो आरबीआई के वरिष्ठ डिप्टी गवर्नर एनएस विश्वनाथन बैठक की अध्यक्षता करेंगे.
रिपोर्ट- निधि राय
ये डूबे तो फिर आ सकती है मंदी
फाइनेंशियल स्टैबिलिटी बोर्ड (एफएसबी) ने दुनिया के सबसे बड़े और जोखिम भरे बैंकों की लिस्ट जारी की है. इन बैंकों ने हिचकोले खाए तो 2008 की मंदी जैसा हाल हो सकता है.
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जेपी मॉर्गन
एफएसबी के मुताबिक अमेरिकी इनवेस्टमेंट बैंक जेपी मॉर्गन सबसे अहम तो है ही, लेकिन सबसे जोखिम भरा बैंक भी है. एफएसबी के मुताबिक जेपी मॉर्गन बैंक को अगर झटके लगे तो वैश्विक अर्थव्यवस्था थर्राने लगेगी.
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सिटी ग्रुप
लिस्ट में अमेरिकी बैंक सिटी ग्रुप को दूसरे नबंर पर रखा गया है. बैंक दो फीसदी कैपिटल प्रीमियम रखता है. बड़ा कर्ज डूबने की स्थिति में यह प्रीमियम बैंक को बचाने में नाकाम साबित हो सकता है.
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डॉयचे बैंक
डॉयचे बैंक, बैंक ऑफ अमेरिका, एचएसबीसी भी सूची में शामिल हैं. मुनाफा बढ़ाने के लिए ये बैंक बेहद जोखिम भरे इलाकों में निवेश करते हैं. एफएसबी के मुताबिक इस निवेश में कहीं भी गड़बड़ी आने पर पूरी चेन प्रभावित होगी.
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बीएनपी पारीबा
फ्रांस के बीएनपी पारीबा बैंक की रैंकिंग में भी गिरावट आई है. वैश्विक अर्थव्यवस्था के ठीक होने के बाद अब बड़े बैंक फिर से ज्यादा लचीले होने लगे हैं. एफबीएस इसी को लेकर आगाह कर रहा है.
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आईसीबीसी
इसके तहत चीन के तीन बैंक आते हैं, बैंक ऑफ चाइना, चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक और आईसीबीसी. अथाह पूंजी वाले ये बैंक दुनिया भर में भारी निवेश कर रहा है. हाल के समय में आईसीबीसी अंतरराष्ट्रीय फाइनेंशियल सिस्टम में भी निवेश कर रहा है.