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'उर्दू में भी पढ़े गए हैं पुराण'

२६ जुलाई २०११

जर्मनी का ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय भारत विज्ञान में रुचि रखने वालों के लिए जाना माना है. पुराने शहर की एक खूबसूरत पुरानी इमारत में दक्षिण एशिया विभाग हैं. जहां एक अहम प्रोजेक्ट शुरू हुआ है.

महाभारत का अनुशासन पर्व नास्तालिक में.तस्वीर: DW

यहां हिन्दी और उर्दू की लघु पत्रिकाओं के वर्गीकरण और डिजिटलाइजेशन का काम किया जा रहा है. इस डिजिटल शोधागार का नाम कर्मेन्दु शिशिर शोधागार रखा गया है क्योंकि इस कलेक्शन का एक बड़ा हिस्सा कर्मेंन्दु शिशिर ने ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय को दिया है. भारत विज्ञान विभाग में कार्यरत दिव्यराज अमिय ने बताया, " यहां 19 वीं सदी की आनंद कादंबिनी पत्रिका से लेकर भारतेन्दु कालीन से लेकर अब 80, 90 के दशक की पत्रिकाओं के 4,500 अंक हैं. इनमें 80 और 90 के दशक की पत्रिकाओं की संख्या ज्यादा है. हिन्दी लघु पत्रिकाओं का 120 साल का इतिहास यहां उपलब्ध है. यह उस समय से अब तक हुए सामाजिक, सांस्कृतिक, भाषाई बदलाव का एक झरोखा है."

धर्मयुग की एक प्रतितस्वीर: DW

कैसे तैयार हुआ

संकलन के बुनियादी हिस्से का नाम कर्मेन्दु शिशिर के नाम पर रखा है क्योंकि उन्होंने ही इसकी कल्पना की और इस संग्रह को यह आकार दिया. अमिय बताते हैं, "भारत से आने वाले कागजों के ढेर का महत्व नहीं था, इसकी वर्गीकृत सूची जरूरी थी. जो कि हमें शिशिर जी ने दान दी है. दूसरा हिस्सा डॉक्टर वसुधा डालमिया ने दिया है जो कि कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी, बर्कले में हिन्दी साहित्य पढ़ा रही है. उन्होंने मुंशी नवल किशोर प्रेस की काफी लघु पत्रिकाएं दी हैं."

उर्दू में पुराण

19 वीं सदी के मध्य से पहले से 20 वी सदी तक एक ऐसा वर्ग था, जो लगातार कम भी हुआ, ये हिंदू धर्म के लोग जो उर्दू यानी नास्तालिक लिपि भाषा के जरिए हिंदू धर्म के बारे में जानकारी प्राप्त करते थे. अमिय कहते हैं, "महाभारत का अनुशासन पर्व, लिंग पुराण या ऐसे कई प्रकाशन मुंशी नवल किशोर प्रेस के उर्दू में उपलब्ध हैं. ये प्रकाशन हमारी उस रूढ़ि को तोड़ते हैं जो समय के साथ भाषा में आ गई हैं."

कर्मेन्दु शिशिश वेबसाइट के बारे में बताते हुए दिव्यराज अमियतस्वीर: DW

ऑडियो विजुअल प्रोजेक्ट

लघु पत्रिकाओं के डिजिटलाइजेशन के अलावा कर्मेन्दु शिशिर शोधागार का एक और प्रोजेक्ट है जिसके तहत इन लघु पत्रिकाओं की आखिरी पीढ़ी पर फिल्म बनाएंगे. जिससे पुराना माहौल फिर से तैयार करेंगे. अमिय इस बारे में जानकारी देते हैं, "निराला जी की साथियों से बहस. समय का मिजाज, अड़ियलपन और इन सबके बीच में आधुनिक हिन्दी साहित्य का निर्माण. हर शाम भांग के साथ मिठाई और बैठक, चर्चाएं, निराला का चांदनी रात में विहार. परिमल और प्रगतिवादियों का गुट. इस माहौल को हम ऑडियो विजुअल प्रोजेक्ट के जरिए फिर से तैयार करना चाहते हैं. साथ ही एक साहित्य विडियो भी बनाना चाहते हैं."

अंतरराष्ट्रीय पटल पर हिन्दी

बातचीत के दौरान ट्यूबिंगन विश्वविद्यालय के दिव्यराज अमिय ने बताया कि हिन्दी का सबसे पहले अंग्रेजी से संवाद हुआ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर. उसके बाद सूरीनाम में वह डच भाषा से मिली, मॉरिशस में फ्रांसीसी भाषा से और फिर फिजी में उसका संवाद स्थानीय भाषा हुआ. इसके अलावा भारतीय भाषाओं और बोलियों (परिभाषा के अनुसार जिले बोली कहते हैं) से उसका संपर्क बना. आदिवासी इलाकों में हिंदी का मुंडारी, खासी, भीली और अंडमान निकोबार से संबध स्थापित हुआ है. आप्रवासी भारतीय जो हिन्दी उर्दू बोलते लिखते हैं उनका अपना अलग साहित्य लगातार तैयार हो रहा है.

सारिका की प्रतितस्वीर: DW

4,500 पत्रिकाएं

दिव्यराज अमिय ने संकलन दिखाया और बताया कि यूनिवर्सिटी में चांद नाम की पत्रिका महादेवी वर्मा के संपादन में निकलती थी."चित्रपट 30 के दशक में निकलने वाली पहली साप्ताहिक हिंदी फिल्म पत्रिका थी. इसे ऋषभ चरण जैन संपादित करते थे. पहल ज्ञान रंजन जबलपुर से निकालते थी. इन सबकी विस्तृत सूची बनाई है. इसके एक संकलन में अनुदित कविताएं हैं. 41वें अंक में आइवरी कोस्ट के कवि की भी रचनाएं अनुदित की गई हैं."

युद्धरत आम आदमी एक पत्रिका है जिसमें आदिवासियों के लिखे साहित्य का हिन्दी में अनुवाद किया जाता है और फिर इसे हिन्दी में प्रकाशित किया जाता है. फरीदाबाद मजदूर समाचार जो कि गुडगांव से निकलता है. इसे मजदूर खुद निकालते हैं.1980 के दशक में यह शुरू हुआ. अमिय बताते हैं, "मजदूर समाचार बिकता नहीं है. पैसे रुपये को खत्म करने की बात है इसलिए वह खुद इसे प्रकाशित करते हैं और मुफ्त बांटा जाता है."

कर्मेन्दु शिशिर की वेबसाइटतस्वीर: DW

अगली पत्रिका के बारे में वह बताते हैं, "शेष नाम की पत्रिका उर्दू से हिंदी में अनुवाद करती हैं. इसे राजस्थान से हसन जमाल निकालते हैं. इसमें इराक, मध्यपूर्व के इलाकों से, अरबी, फारसी से अनुदित कहानियां हिन्दी में मिल जाएंगी. हसन जमाल की पत्रिका अहम है. इसके सारे अंक हम ऑनलाइन करना चाहते हैं. सार संसार नाम की पत्रिका अमृत मेहता निकालते हैं. वह मूल यूरोपीय भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद करते हैं.लघु पत्रिकाओं की एक बड़ी दुनिया है जिसके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते हैं. उनके लिए एक माउस क्लिक पर काफी सारी जानकारी उपलब्ध हो सकेगी, दुनिया में कहीं भी कभी भी."

रिपोर्टः आभा मोंढे,ट्यूबिंगन

संपादनः ए जमाल

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