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उल्कापात का पहली बार अंत पर्यंत अवलोकन

२१ अप्रैल २००९

पृथ्वी पर हर वर्ष हज़ारों ऐसे छोटे-बड़े पिंड गिरते रहते हैं, जिन्हें उल्काएँ कहा जाता है. उनका कुल वज़न औसतन दस हज़ार टन होता है. हाल ही में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी आकाशीय पिंड को आदि से अंत तक देखा गया.

वायुमंडल में प्रवेश करता क्षुद्रग्रहतस्वीर: esa

उत्तरी सूडान के रेगिस्तानी आकश में उस समय सुबह की लाली फूटने ही वाली थी. तभी आग के एक दहकते हुए गोले में कोई 37 किलोमीटर की ऊँचाई पर ज़ोरदार धमका हुआ. अमेरिकी वैज्ञानिकों ने 19 घंटे पहले ही इस गोले को पहचान लिया था. उस पर लगातार नज़र टिकाए हुए थे. वह 80 टन भारी किसी ट्रक जितना बड़ा, पत्थर की चट्टान जैसा एक पिंड था. उसे एक नाम भी दे दिया गया था-- 2008 TC3. 2008 इसलिए, क्योंकि उस दिन तारीख़ थी, 7 अक्टूबर 2008. अमेरिकी अंतरिक्ष अधिकरण नासा के डॉनल्ड येमैन्स बताते हैं:

" इस तरह के अधिकतर पिंड पथरीले होते हैं. जब वे कोई 30 मील दूर रह जाते हैं, तब उनके पृथ्वी की तरफ वाले अगले भाग पर पिछले भाग की अपेक्षा हवा का दबाव और उसके साथ घर्षण इतना बढ़ जाता है कि वे टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं और हम आग का एक चमकीला गोला देखते हैं."

उल्कापिंड एक क्षुद्रग्रह था

2008 TC3 का सूडान के नूबिया मरुस्थल में जहां विस्फोट हुआ था, वैज्ञानिक शीघ्र ही वहाँ पहुँचे. खारतूम विश्वविद्यालय के छात्र भी उनकी मदद करने पहुँच गये. 29 किलोमीटर के दायरे में सब कुछ छान मारा. 47 ऐसे छोटे-बड़े टुकड़े मिले, जो इस उल्कापात के गवाह थे. उनका सम्मिलित वज़न क़रीब चार किलो था.

कैलीफ़ोर्निया के SETI इंस्टीट्यूट के पीटर जेनिस्केंस का कहना था, "किसी ऐसे क्षुद्रग्रह के टुकड़े प्रयोगशाला में लाने का यह अपूर्व अवसर था, जिसे हमने अंतरिक्ष में पहले ही देख लिया था." विस्फोट के समय लिये गये चित्रों के आधार पर इन वैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया कि इस क्षुद्रग्रह का व्यास क़रीब चार मीटर रहा होना चाहिये. वह 12.8 किलोमीटर प्रति सेकंड की गति से ज़मीन से टकराया होगा. उसके टुकड़ों के विश्लेषण से पता चला कि वह सौरमंडल के क्षुद्रग्रहों वाले तथाकथित एकोनड्राइट (Achondrite) वर्ग एक सदस्य रहा होना चाहिये.

जनवरी 2003 में स्पेन में देखा गया एक उल्कापाततस्वीर: AP

साढ़े चार अरब वर्षों से अपरिवर्तित

एकोनड्राइट ऐसे चट्टानी क्षुद्रग्रह हैं, जो सौरमंडल बनने की आरंभिक सामग्री से बने हैं. साढ़े चार अरब वर्ष लंबे अपने अब तक के जीवनकाल में उन में शायद ही कोई परिवर्तन आया है. इस तरह कह सकते हैं कि अक्टूबर 2008 में सूडान में गिरा क्षुद्रग्रह अपने साथ साढ़े चार अरब वर्ष पुरने उस ज़माने का एक संक्षिप्त इतिहास ले कर आया है, जब हमारा सौरमंडल अपने शैशवकाल में था. उस के अध्ययन से पता चल सकता है कि हमारी पृथ्वी पर की चट्टानें कब और कैसे बनी होंगी.

2008 TC3 बहुत ही असामान्य, बारीक दानों वाली, रंध्रदार और भुरभुरी सामग्री का बना है. पृथ्वी पर इससे पहले मिले उल्कापिंडों में इस तरह की सामग्री नहीं मिलती. स्पेक्ट्रोस्कोपिक, यानी वर्णक्रम-मापनों और संरचना-विश्लेषणों के अनुसार 2008 TC3 क्षुद्रग्रहों के एक बहुत ही दुर्लभ और काफ़ी कुछ अज्ञात उपवर्ग से संबंध रखता है.

लंबे समय से पहेली

कैलीफ़ोर्निया के SETI इंस्टीट्यूट की ग्रह-वैज्ञानिक जेनिस बिशप कहती हैं कि " एफ़ वर्ग के क्षुद्रग्रह लंबे समय से एक पहेली रहे हैं. खगोलविद अपने दूरदर्शियों की सहायता से उनके वर्णक्रम के अनूठेपनों को तो जान सके थे, लेकिन 2008 TC3 के पहले उस जैसा ऐसा कोई उल्कापिंड हमारे हाथ नहीं लगा था, जिसकी हम प्रयोगशाला में जांच-परख कर सकते."

खगोलशास्त्री उन सभी ब्रह्मांडीय पिंडों को मीटियोराइट, यानी उल्कापिंड कहते हैं, जो पृथ्वी की सतह तक पहुँच पाते हैं. इस तरह के जो लगभग 10 हज़ार पिंड प्रतिवर्ष पृथ्वी तक पहुँच पाते हैं, वे अधिकतर पृथ्वी के वायुमंडल की घनी परतों में हवा के साथ रगड़ खाने से जल कर भस्म हो जाते हैं. बहुत कम उल्कापिंड ही धरती को छू पाते हैं और जब छूते हैं, तब रेत के नन्हे-से कण या किसी कंकड़ से बड़े नहीं रह जाते.

उल्कापिंडों से हम कितने सुरक्षित

सांख्यिकी की दृष्टि से हर पांच लाख साल पर कई सौ मीटर बड़ा कोई ऐसा आकाशीय पिंड भी धरती पर गिरता है, जो भीषण तबाही मचा सकता है. लेकिन, जैसा कि नासा के डॉनल्ड येमैन्स बताते हैं, ऐसी किसी आपदा का समय रहते पता लगाने की तैयारी भी कर ली गयी हैः

क्षुद्रग्रह एरोस फ़रवरी 2000 में पृथ्वी के पास से गुज़रातस्वीर: AP

" हम पता लगाने और भविष्यवाणी करने की स्थिति में हैं कि यह पिंड कुछ ही घंटों में कहां ज़मीन से टकरायेगा."

क्षुद्रग्रह 2008 TC3 का पता अमेरिका में स्वचालित दूरदर्शियों के कैटालीना स्काई सर्वे नामक एक ऐसे समूह से चला, जो समय रहते चेतावनी देने के लिए अंतरिक्ष में ऐसे धूमकेतुओं, क्षुद्रग्रहों या उल्कापिंडों की सदा टोह में रहता है, जो भविष्य में पृथ्वी से कभी टकरा सकते हैं.

रिपोर्ट- राम यादव

संपादन- प्रिया एसेलबॉर्न

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