उल्फा बिना शर्त बातचीत को तैयार
५ फ़रवरी २०११यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) चाय और तेल के संसाधनों से संपन्न भारत के असम राज्य में अलग देश के लिए 1979 से लड़ रहा है. इस मुहिम में लगभग दस हजार लोग मारे गए हैं जिनमें ज्यादातर आम लोग शामिल हैं. असम में अकसर विद्रोही गुटों और सुरक्षा बलों के बीच झड़पें होती रही हैं.
उल्फा के विदेश सचिव सशा चौधरी ने गुवाहाटी में पत्रकारों को बताया कि उनके गुट ने अपनी आम परिषद की बैठक में सरकार के साथ बिना शर्त बातचीत शुरू करने का फैसला किया है. उन्होंने कहा, "हम असम और भारत के बीच लंबे समय से चल रहे विवाद का ऐसा हल चाहते हैं जो दोनों पक्षों को स्वीकार हो." समझा जाता है कि उल्फा के चेयरमैन अरबिंद राजखोवा गुरुवार को होने वाली इस बातचीत में अपने पक्ष का नेतृत्व करेंगे. राज्य सरकार के एक अधिकारी ने यह बातचीत होने की जानकारी दी है.
वहीं सरकारी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम या गृह सचिव जीके पिल्लई कर सकते हैं. वैसे केंद्र सरकार की तरफ से अभी इस बारे में कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है. उल्फा के ज्यादातर नेता जमानत पर रिहा कर दिए हैं और सरकार शांति वार्ता के लिए माहौल तैयार करने के लिए उनकी रिहाई को सुगम बना रही है.
अभी इस बारे में उल्फा के कमांडर इन चीफ परेश बरुआ का रुख साफ नहीं है जिनके चीन और म्यांमार की सीमा पर छिपे होने की आशंका है. उल्फा के प्रवक्ता चौधरी ने कहा कि उन्हें इस बात का विश्वास है कि बरुआ भी बातचीत का समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा कि परेश बरुआ आम परिषद की बैठक के फैसलों को मानने के लिए बाध्य हैं. भारत में 1947 में आजादी मिलने के बाद कई अलगाववादी मुहिम चलती रही हैं. उत्तरी राज्य कश्मीर भी अलगाववाद का शिकार है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एस गौड़