ऊंटों के लिए ब्यूटी पार्लर
१४ अप्रैल २०१२ बाड़मेर के ब्यूटी पार्लर में शाहरुख नाम के ऊंट और हेमा नाम की ऊंटनी को सजाने की तैयारी चल रही है. ब्यूटीशियन का काम कर रहे हैं गोरबंद कैमल पार्लर के मालिक प्रताप राम जिनका पारिवारिक धंधा ही ऊंटों को सजाना और संवारना है. यह पुश्तैनी धंधा अब नए जमाने के साथ बदलने लगा है.
नाम नया, काम पुराना
काम तो हालांकि वही पुराना है पर नाम अब बदलने लगे हैं. गोदना अब टैटू कहा जाता है जबकि पहरावन अब कॉस्टयूम कहलाने लगा है. बालों की कटाई अब हेयर कटिंग हो चुकी है जबकि पारंपरिक आभूषण अब ज्वेलरी कहलाने लगे है. इन नामों के साथ ही "उष्ट्र सज्जा" करने वाले पारंपरिक ऊंट पालक अब कैमल ब्यूटी पार्लर के संचालक बन गए हैं.
इन्हीं में से एक प्रताप राम अपनी मार्केटिंग स्किल का राज खोलते हुए बताते हैं, "बाबूजी अब ऊंट पालना फायदे का धंधा तो रहा नहीं, इसलिए ब्यूटी पार्लरों के माध्यम से नए-पुराने ऊंटों को ही कुछ नया रूप देने का प्रयास किया जा रहा है ताकि पर्यटकों को लुभाया जा सके."
एक जमाने में ऊंट राजस्थान में घर-घर की जरूरत होते थे. रेगिस्तान में संचार और यातायात के साधन के रूप में सिर्फ ऊंटों का ही इस्तेमाल किया जाता था, यहां तक की खेतों में जुताई का काम भी ऊंट ही करते थे. पर अब न तो ऊंट ही बच रहे हैं और ना ही ऊंट पालने वाले और ऐसे में ऊंटों के ब्यूटी पार्लर कुछ नया करने में जुटे हुए हैं.
पुराने जमाने में ऊंटों के इस तरह के सैलून नहीं थे और उन्हें पालने वाले खुद ही ऊंटों के बाल काटते थे. ग्रामीण क्षेत्रों में सभी लोग एक जगह पर जमा होकर ऊंटों के बाल सामूहिक रूप से काटते थे पर अब यह काम कैमल सैलूनों में किया जाने लगा है.
कैसा होता है पार्लर
अगर आप ये सोच रहे हैं कि ऊंटों के पार्लर में फैशियल या मैनीक्योर अथवा पैडीक्योर होता है तो ऐसा नहीं है. पार्लर के नाम पर एक ऊंट गाड़ी होती है जिसमें पेटियों में लोहे के कुछ औजार रखे होते हैं. कैंचियों और उस्तरों की मदद से बालों की विशेष कटिंग की जाती है और ऊंटों को खास लुक देकर आकर्षक बनाया जाता है. ऊंटों के शरीर पर तरह-तरह के टैटू बनाए जाने का चलन भी जोरों पर है.
यह टैटू हाथी-घोड़े, फूल पत्तियों के चित्रों से लेकर अंग्रेजी भाषा के आई लव यू जैसे जुमलों से बनाये जाते है. प्रताप राम के अनुसार टैटू बनाने के 500 से 700 रुपये तक आसानी से मिल जाते हैं. इन टैटुओं को कभी उकेरा जाता है तो कभी गोदा भी जाता है. तरीका कोई भी इख्तियार किया जाये, काम तो विशेषज्ञ को ही करना पड़ता है. ऊंट को एक बार सजाने के पांच सौ से लेकर पांच हज़ार रुपये लिए जा सकते हैं. वैसे दो-तीन रूप सज्जा विशेषज्ञ चार से पांच घंटे में एक ऊंट को छैल-छबीला बना डालते हैं.
पार्लर ही क्यों?
संचार, कृषि और यातायात के आधुनिक साधनों और संसाधनों के बढ़ते प्रभाव ने ऊंटों का महत्व बहुत कम कर दिया है. एक जमाना था जब ऊंट की कीमत लाखों में लगती थी पर अब तो इन्हें बेचना ही बहुत मुश्किल हो गया है. अगर आपको अपना ऊंट को बेचना है तो उसकी सुन्दरता को बढाने के लिए आखिर पार्लर की शरण में जाना ही पड़ेगा. पर्यटकों को लुभाने में तो आज भी ऊंट कामयाब हैं और कैमल सफारी में इन की भूमिका को नजरंदाज नहीं किया जा सकता. पर इस के लिए ऊंट का खूबसूरत दिखना बहुत जरूरी है.
जैसलमेर निवासी लखी राम ने पिछले साल पुष्कर में लगने वाले पशु मेले से एक ऊंट पंद्रह हजार में खरीदा था. राईका जाति का होने के कारण ऊंट पालने की समझ तो उनमें थी. उन्होंने उसे खिला पिला कर तंदुरस्त किया और उसे सुंदर बनाने के लिए बाड़मेर में एक ब्यूटी पार्लर में ले गए.
पार्लर में न सिर्फ रेगिस्तान के इस जहाज की खूबसूरत कतरन की गयी बल्कि उस पर आकर्षक दिखने वाले टैटु भी उकेरे गए. पार्लर वाले ने अपने ही किसी जान पहचान वाले से ऊंट को पहनाये जाने वाले सुन्दर कपड़े, रत्न जड़ित मालाएं और श्रृंगार का सामान भी दिलवा दिया. इस बदले परिवेश ने लखी राम के पंद्रह हज़ार के ऊंट की काया बदल डाली. होली के बाद लगे एक पशु मेले में लखी राम के ऊंट के बोली बत्तीस हजार लग चुकी है लेकिन उन्हें अभी और ऊंची कीमत का इंतजार है.
रिपोर्ट: जसविंदर सहगल, बाड़मेर (राजस्थान)
संपादन: एन रंजन