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ऊर्जा संग्रहण का नया माध्यम मीथेन गैस

९ नवम्बर २०११

सौर और पवन ऊर्जा की अस्थिर आपूर्ति के कारण वैज्ञानिक ऊर्जा भंडारण के नए तरीके खोजने की कोशिश में हैं. जर्मन वैज्ञानिकों का कहना है कि अतिरिक्त बिजली को गैस में बदल देना उसके संग्रहण का अच्छा तरीका है.

तस्वीर: DW

पवन और सैर ऊर्जा क्षेत्र लगातार बढ़ रहे हैं. 2010 में जर्मनी में कई घरों की छतों पर सोलर पैनल लगाए गए और उनसे 8 गीगावॉट बिजली बनी. यह जर्मनी के परमाणु ऊर्जा उत्पादन से ज्यादा है. जर्मन सरकार की ऊर्जा नीति रोड मैप के मुताबिक 2030 तक पवन ऊर्जा पार्क से कम से कम 25 गीगावॉट बिजली का उत्पादन होने लगेगा. अगर जर्मनी में हमेशा सूरज चमकता रहे और हवा चलती रहे तो जर्मनी को किसी और ऊर्जा स्रोत्र की जरूरत नहीं पड़ेगी. लेकिन हर दिन तो हवा से भरपूर और सूरज से दमकता होता नहीं. बदलते मौसम के कारण पवन और सौर ऊर्जा के उत्पादन में फर्क पड़ता है. नवंबर जैसे कुछ महीनों में सूरज चमकता ही नहीं. ऐसी स्थिति में क्या हो. इन सब हालात को देखते हुए जरूरी है कि ऊर्जा का भंडारण किया जाए. अभी तक वैज्ञानिक भंडारण के सक्षम और सस्ते तरीके इजाद करने में सफल नहीं हो सके हैं. ज्यादा ऊर्जा को लंबे समय तक स्टोर करके रख पाना वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती है.

संरक्षण जरूरी

पन बिजली को पंप करके ऊर्जा का संरक्षण करना उतना फायदेमंद नहीं है. और बैटरी जैसे विकल्प बहुत महंगे हैं. लेकिन वैज्ञानिकों को गैस में विकल्प दिखाई दे रहा है. जर्मनी के बाडेन व्युर्टेम्बर्ग में सौर ऊर्जा और हाइड्रोजन शोध केंद्र में शोधकर्ता उलरिष जुबेरब्यूलर पूछते हैं, "कौन सी तकनीक संग्रहण के लिए इस्तेमाल की जा सकती है और उन्हें किस तरह वर्तमान संरचना में शामिल किया जा सकता है." इसका जवाब ढूंढने के लिए जाउबरब्यूलर ने फ्राउनहोफर इंस्टीट्यूट के पवन ऊर्जा और एनर्जी सिस्टम टेकनोलॉजी संस्थान के साथ साझेदारी की है.

अब कोशिश की जा रही है कि सौर और पवन ऊर्जा को प्रभावी तरीके से गैस में तब्दील कर दिया जाए और फिर इसे स्टोर किया जाए. जर्मनी में गैस स्टोर करने की क्षमता काफी है. यहां 200 टेरावॉट घंटे के हिसाब से गैस का संग्रहण किया जा सकता है और यह गैस जर्मनी में कई महीने काम आ सकती है.

वैज्ञानिक फिलहाल श्टुटगार्ट में 25 किलोवॉट वाले संस्थान में शुरुआती परीक्षण कर रहे हैं. पहली बार उन्होंने ऊर्जा का इलेक्ट्रोलिसिस करके मिथेनेशन किया. इस पर पहला प्रयोग 1906 में पाउल साबातिए ने किया था. इलेक्ट्रोलिसिस में इलेक्ट्रिक करंट के जरिए पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ दिया जाता है. इसके बाद मिथेनेशन के जरिए हाइड्रोजन को कार्बन डायोक्सॉइड की मदद से मीथेन में बदला जाता है. स्रोत से मिली ऊर्जा का 60 प्रतिशत मीथेन में बदला जा सकता है. बाकी ऊष्मा में बदल जाता है, इस ऊष्मा को भी काम में लाया जा सकता है. यह प्रयोग 2012 में खत्म हो जाएगा.

कार में भी मीथेनतस्वीर: Solarfuel GmbH

आउडी पवन ऊर्जा पर

इस मीथेन को जमा किया जा सकता है और पॉवर हीटर, औद्योगिक भट्टी या अन्य ऊर्जा संयंत्रों में इस्तेमाल किया जा सकता है और कारों में भी. इस दिशा में पहला प्रयोग हाल ही में किया गया जिसमें कार मीथेन गैस से चलाई गई. इस ई गैस से कारण कार करीब साढ़े चार सौ किलोमीटर चल सकी. आउडी कार कंपनी 2013 तक प्राकृतिक गैस से चलने वाली कार बाजार में लाएगी. कंपनी ने नॉर्थ सी में पवन ऊर्जा के फार्म पहले ही खरीद लिए हैं. एक 3.6 मेगावॉट की विंड टरबाइन एक मिनट में जो ऊर्जा बनाती है वह 300 किलोमीटर कार दौड़ाने के लिए काफी होती है और तो और पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं. इस बीच उत्तरी जर्मनी के वेर्टले में मीथेनेशन सेंटर बनाने का काम शुरू हो गया है. 6 मेगावॉट की क्षमता वाला यह संयंत्र मई 2013 में बन जाएगा. मीथेनेशन संयंत्र बनाना फिलहाल महंगा काम है. लेकिन सोलर फ्युएल के प्रबंध निदेशक ग्रेगोर वाल्डश्टाइन कहते हैं कि स्थिति बदल सकती है. ज्यादा सौर और पवन ऊर्जा के संयंत्र शुरू होने के बाद तकनीक सस्ती हो सकती और किफायती भी. जर्मन सरकार आने वाले साल में 6 गीगावॉट की क्षमता वाला संयंत्र बनाने जा रही है. जैसे जैसे फिर से इस्तेमाल की जा सकने वाली ऊर्जा ज्यादा बनने लगेगी, ये संयंत्र मीथेन गैस से चलने लगेंगे.

रिपोर्टः एल्सा विमेल/आभा मोंढे

संपादनः ए कुमार

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