औसत भारतीय साल भर में एंटीबायोटिक की करीब 11 गोलियां खाता है. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक एंटीबायोटिक का ज्यादा इस्तेमाल नुकसान पहुंचा सकता है.
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विश्व संवास्थ्य संगठन की चेतावनी के मुताबिक अगर आज इसे रोका नहीं गया तो कल बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है. 2011 में संगठन ने दुनिया भर की सरकारों से अपील की थी कि वे एंटीबायोटिक के इस्तेमाल को नियंत्रित करने के लिए कदम उठाएं.
2014 में भारत में स्थिति और भी खराब पाई गई. 2010 में भारत में 12.9 अरब यूनिट एंटीबायोटिक इस्तेमाल की गई. 2001 में खपत आठ अरब यूनिट थी. लैंसेट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया भर में इस्तेमाल हो रही एंटीबायोटिक की 76 फीसदी खपत ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका में है.
एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरिया और वायरस जैसे सूक्ष्म जीवों से लड़ने के लिए किया जाता है. लेकिन इनके अत्याधिक इस्तेमाल से बैक्टीरिया में एक खास तरह की प्रतिरोधी क्षमता पैदा हो जाती है जिसके चलते बाद में इन दवाओं का उन पर असर बंद हो जाता है. दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण हर साल करीब 25,000 मौतें केवल यूरोप में हो रही हैं. पश्चिमी देश इस खतरे को गंभीरता से ले रहे हैं.
जुलाई में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने चेतावनी दी थी कि बैक्टीरिया के प्रतिरोधी क्षमता प्राप्त कर लेने से हम वापस उस युग में जा सकते हैं जब हम दवाओं के मामले में इतने सफल नहीं थे. भारत में बदलती जीवनशैली के चलते दवा खा लेना लोगों के बीच बड़ी आम बात हो गई है.
गोलियों का साम्राज्य
जर्मन कंपनी बायर 150 साल पुरानी है. सिरदर्द की गोली एस्पिरिन भी बायर का ही कमाल है. लेकिन कंपनी विवादों में भी फंसा रहा है. .
तस्वीर: Bayer AG
जब दो दोस्त मिले...
...तो फ्रीडरिष बायर और उनके दोस्त योहान वेस्कोट ने जर्मनी के वुपरटाल शहर में एक छोटी सी फैक्ट्री बनाई. फ्रीडरिष बायर एंड कंपनी नकली रंग बनाती थी. यारी दोस्ती से बनी दुनिया की सबसे बड़ी दवा कंपनियों में से एक बायर.
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यह आलीशान घर है...
...जर्मन शहर वुपरटाल में. इसके मालिक फ्रीडरिष बायर ने यहीं से कंपनी की शुरुआत की और पास में कंपनी का मुख्यालय बनाया गया. फैक्ट्री में रंगों का उत्पादन किया जाता था जो उस वक्त बहुत महंगे थे.
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यह तीन लोग...
...फैक्ट्री में काम करने वाले मजदूर हैं. उस वक्त बायर के पास केवल तीन मजदूर रखने लायक पैसे थे. दाईं तरफ फैक्ट्री के पहले कर्मचारी हाइनरिश रिटर हैं. 20 साल बाद कंपनी में 300 से ज्यादा मजदूर काम करते थे. आज बायर में एक लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं.
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जब हैंगोवर हो...
...तो 100 साल पहले सुबह को फेनासेटिन ली जाती थी. यह रंगों के उत्पादन के दौरान बनने वाला रसायन है. फेनासेटिन का गलत इस्तेमाल होने का डर रहता है क्योंकि इससे शरीर और उत्तेजित हो जाता है.
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तस्वीर तो ब्लैक एंड व्हाइट है...
...लेकिन इस फैक्ट्री में लाल रंग बनाया जाता था. 19वीं शताब्दी के अंत में बायर ये फैक्ट्रियां खरीदकर इनमें कंपनी के नए दफ्तर बनाने लगा. 1914 तक सभी महाद्वीपों में बायर के दफ्तर बन गए.
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खांसी का इलाज...
...होता है हेरोइन से. डाइऐसेटाइल मॉर्फीन को भी बायर बनाने लगा. विज्ञापनों में इसे ब्लड प्रेशर, बुखार और फेफड़ों की बीमारी का इलाज बताया गया. पहले विश्व युद्ध में घायल सैनिकों को भी दर्द रोकने के लिए दिया गया. दूसरे विश्व युद्ध के बाद हेरोइन को ड्रग्स बताकर प्रतिबंधित कर दिया गया.
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काला साया...
...नाजी शासन का. 1925 से बायर आईजी रंगों की कंपनी का हिस्सा बन गया, जिसने सिक्लोन बी का उत्पादन करने लगा. आउश्वित्स जैसे यातना शिविरों में इस रसायन से हजारों यहूदी कैदियों की हत्या की गई. बायर की फैक्ट्रियों में हजारों यहूदी कैदी मजदूरी करते थे.
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बैक्टीरिया को मारो...
...पेनिसिलिन से. 1950 के दशक में दोबारा बायर आजाद हो जाता है और एलेक्जेंडर फ्लेमिंग की खोज पेनिसिलिन का इस्तेमाल बैक्टीरिया से होने वाली बीमारियों के लिए किया जाता है. टीबी, प्लेग और सिफिलिस, सब के लिए एक इलाज.
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छोटी लड़की की हैं...
...बड़ी बड़ी आंखें. यह बायर का विज्ञापन था ड्रालोन नाम की टेक्सटाइल के लिए. 1959 की इस पत्रिका में दिखाया गया कपड़ा लेकिन अब केवल टेबल क्लॉथ या छतरियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
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सिरदर्द को श्रद्धांजलि...
... देती है लेवरकूजन में बायर की यह इमारत. 1969 में चांद पर जाने वाले अपोलो मिशन में भी एस्पिरिन की पत्ती रॉकेट में साथ गई. 70 देशों में हर साल 11 अरब गोलियां बिकती हैं. लेकिन बच्चों के लिए यह गोली खतरे से खाली नहीं.
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दो दोस्तों की कंपनी...
...150 साल पहले ड्राइंग रूम में बनी थी. अब यहां बायर का बड़ा परिसर है जो लेवरकूजन शहर की पहचान बन गया है. हर साल कंपनी बीमारी से 40 अरब यूरो का मुनाफा कमाती है.
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समस्या की जड़
प्रिंस्टन यूनिवर्सिटी में रिसर्च स्कॉलर एवं लेक्चरर रामानन लक्षमीनारायण के मुताबिक भारत के एक तबके में एंटीबायोटिक के बढ़ते इस्तेमाल की वजह है लोगों की बढ़ती आमदनी. वे आसानी से दवाएं खरीद सकते हैं. दूसरी बड़ी वजह है इन दवाओं का पर्चे के बगैर दवाखानों से मिल जाना. डॉक्टर भी बड़ी आसानी से मरीजों को एंटीबायोटिक दवाएं लिख देते हैं. एक और वजह है भारत में संक्रमण की ज्यादा संभावनाएं. लेकिन उन्हें दवाओं से नहीं बल्कि साफ सफाई से रोकने की जरूरत है. उन्होंने कहा, "लोग यह भूल जाते हैं कि एंटीबायोटिक का भी साइड इफेक्ट हो सकता है और कुछ समय बाद वे असर करना भी बंद कर सकती हैं."
भारतीय जन स्वास्थ्य विभाग के डॉक्टर सुरजीत घोष के मुताबिक कुछ मरीज तो डॉक्टर की सलाह लिए बगैर ही एक ही पर्चे पर बार बार दवाएं खरीदते रहते हैं ताकि वे डॉक्टर की फीस से बच सकें. भारत में स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं पश्चिमी देशों के मुकाबले काफी पिछड़ी हैं. औसतन 1700 मरीजों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है. 29 फीसदी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन बिता रही है.
ऐसी स्थिति में भी इस बात को भी नहीं भुलाया जा सकता कि बिना डॉक्टरी सलाह के बार बार एंटीबायोटिक खाना ऐसे बैक्टीरिया के तैयार होने में मदद कर रहा है जिस पर दवाओं का असर न हो. लक्ष्मीनारायण ने कहा, "हमारे यहां संक्रमण की दर इतनी ज्यादा है कि हम विकसित देशों के मुकाबले कहीं ज्यादा एंटीबायोटिक पर निर्भर होते हैं. इसलिए हमारे यहां इस तरह के ड्रग प्रतिरोधी बैक्टीरिया के भी विकसित होने की ज्यादा संभावना है."
एसएफ/ओएसजे (आईपीएस)
इन चीजों का नशा आपकी जिंदगी को कर सकता है बर्बाद
नशा सिर्फ चरस या गांजे जैसे नशीले पदार्थों का नहीं, काम या खेल का भी हो सकता है. लेकिन लत किसी भी चीज की हो, नुकसान ही पहुंचाती है..
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नशे की गोलियां
अक्सर नींद ना आने पर डॉक्टर नींद की गोली लिखते हैं, लेकिन अगर इनकी आदत लग जाए तो यह शरीर के लिए अच्छा नहीं. कई दूसरे तरह के नशीले पदार्थ भी गोलियों के रूप में आते हैं जैसे एलएसडी.
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कोकीन
कोका पौधे से प्राप्त होने वाला कोकीन कुछ खतरनाक नशों में शामिल है. शरीर में इसकी ज्यादा मात्रा पहुंच जाने से दिल काम करना बंद कर सकता है और मौत हो सकती है.
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शराब
शराब से शरीर को होने वाले नुकसान के बारे में हम हमेशा से सुनते आए हैं. लत लग जाने पर शरीर पर इसका बुरा असर धीरे धीरे दिखाई देता है. ज्यादा शराब से जिगर खराब होने का खतरा रहता है.
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सिगरेट
सिगरेट से फेफड़ों को सीधा नुकसान पहुंचता है. सिगरेट के कारण कैंसर से होने वाली मौतों की तादाद लगातार बढ़ रही है.
भांग का इस्तेमाल कई बार चिकित्सीय कारणों से भी होता है. एक नए कानून के साथ उरुग्वे दुनिया का पहला ऐसा देश बन गया है जहां चरस खरीदना या उगाना अपराध नहीं माना जाएगा.
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हेरोइन
हेरोइन को डायमॉर्फीन के नाम से भी जाना जाता है. इसका इस्तेमाल दर्द निवारक दवाओं में होता है. लेकिन गैर कानूनी तरीके से नशे के लिए इस्तेमाल होने की स्थिति में यह हेरोइन कही जाती है.
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जुआ
जुए का मतलब हमेशा जीत नहीं, कई बार हार भी है. जुए की लत में कई बार लोग इतना कुछ दांव पर लगा देते हैं कि पीछे लौटना मुश्किल हो जाता है.
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कंप्यूटर
आधुनिक युग में एक और बहुत आम नशा कंप्यूटर है. दिन के कई घंटे ईमेल, फेसबुक और गेम खेलने पर खर्च हो जाते हैं.