जर्मनी की धुर राष्ट्रवादी पार्टी अल्टरनेटिव फॉर जर्मनी (एएफडी) देश भर में ऐसे ऑनलाइन पोर्टल स्थापित करना चाहती है जहां स्कूली बच्चे ऐेसे शिक्षकों की निंदा कर सकते हैं जो पार्टी के खिलाफ बात करते हैं.
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एएफडी स्कूली छात्रों को अपने शिक्षकों की निंदा करने का मौका देना चाहती है. इसके तहत छात्र ऐसे शिक्षकों की खुली निंदा कर सकते हैं जो कक्षा में राजनीतिक विचारधाराओं से जुड़ी बातें करते हैं. हाल में पार्टी ने हैम्बर्ग में "न्यूटरल स्कूल्स" के नाम से एक ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया था. इस पोर्टल के तहत स्कूल स्टाफ के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा सकती है जो राजनीतिक तटस्थता को दरकिनार करते हुए पार्टी की आलोचना करते हैं.
स्थानीय मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक एएफडी ऐसे प्लेटफॉर्म देश के नौ अन्य राज्यों में शुरू करना चाहती है. इसमें बवेरिया, बाडेन वुर्टेमबर्ग, ब्रांडनबुर्ग और सेक्सनी प्रमुख हैं. कई शिक्षक समूहों, राजनेताओं समेत राजनीतिक दलों ने इस पोर्टल के खिलाफ आवाज उठाई है. बाडेन व्युर्टेमबर्ग राज्य के मुख्यमंत्री विनफ्रीड क्रेचमन ने कहा, "एएफडी खुली निंदा करने की प्रथा को स्थापित कर रही है जो एकदलीय शासन पद्धति की तरफ बढ़ता कदम है."
जर्मन एजुकेशन यूनियन (जीईडब्ल्यू) और देश के सबसे बड़े शिक्षक संगठन, जर्मन टीचर एसोसिएशन ने भी इस योजना का विरोध किया है. जीईडब्ल्यू बोर्ड की सदस्य इल्का होफमन ने एक स्थानीय अखबार से कहा, "शिक्षकों को डरना चाहिए, यह एक डरावनी बात है." जर्मन टीचर एसोसिएशन के अध्यक्ष हाइंत्स-पेटर मायडिंगर मानते हैं कि ये योजना, "बच्चों का शोषण करने वाली और निंदा को बढ़ावा देने वाली" है.
वहीं एएफडी इसे निंदा से जुड़ा नहीं मानती. पार्टी के वरिष्ठ सदस्य बेर्ड बाउमन ने कहा कि ऐसे ऑनलाइन पोर्टल का निंदा से कुछ लेना-देना नहीं हैं. उन्होंने कहा कि एएफडी ने ऐसे सबूत जुटाए हैं जो दिखाते हैं कि शिक्षकों को स्कूलों में अपने राजनीतिक विचार जाहिर करने के लिए मजबूर होना पड़ता है, ऐसे विचार एएफडी की कट्टरपंथी और अमानवीय तस्वीर पेश करते हैं.
बवेरिया राज्य के चुनावों में पार्टी की उम्मीदवार काटरीन एबनर-श्टाइनर का कहना है कि इस स्कीम का मकसद तटस्थता कानून को लेकर जागरूकता फैलाना है, और वह राज्य में इस स्कीम का स्वागत करेंगी. हालांकि बहुत से जर्मनों के लिए दूसरे के भेद सार्वजनिक रूप से उजागर करना, इतिहास के काले अध्यायों मसलन नाजी काल या कम्युनिस्ट जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक को याद करना अहम सबक है. शरणार्थी विरोधी नीतियों का समर्थन करने वाली एएफडी को साल 2017 के आम चुनावों में 13 फीसदी वोट मिले थे. एएफडी इस वक्त जर्मन संसद में सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है.
इन देशों में नहीं है शिक्षकों की कमी
दुनिया ने शिक्षा के तमाम लक्ष्य तय किए हैं लेकिन दुनिया के कई देश शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं. हालांकि कुछ ऐसे देश भी हैं जहां ये टीचर-स्टूडेंट अनुपात सबसे अच्छा है. मतलब इन देशों में शिक्षकों की कोई कमी नहीं है.
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10. पोलैंड
साल 2015 में जारी यूनेस्को के आंकड़ें बताते हैं कि देश में साक्षरता दर तकरीबन 99.8 फीसदी है. प्राइमरी स्कूलों में हर 10 बच्चों पर यहां एक शिक्षक है. आंकड़ों के मुताबिक देश की शिक्षा प्रणाली काफी विकसित है और स्कूलों में बच्चों पर पूरा ध्यान दिया जाता है.
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9. आइसलैंड
मानवाधिकारों के मामले में अच्छा देश माने जाने वाला आइसलैंड शिक्षा और साक्षरता के स्तर में काफी आगे है. यहां भी हर 10 स्कूली बच्चों पर 1 शिक्षक मौजूद है. देश में 6 से 16 साल तक के बच्चों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य है. आइसलैंड में हर बच्चे को पूरी तरह से मुफ्त और अच्छी शिक्षा का अधिकार प्राप्त है.
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8. स्वीडन
स्वीडन की शिक्षा प्रणाली बेहद उन्नत और विकसित मानी जाती है जिसकी बानगी देश के उच्च साक्षरता दर में साफ झलकती है. शिक्षा प्रणाली यह सुनिश्चित करती है कि हर बच्चे को ऐसी शिक्षा मिले जिससे उसका चहुंमुखी विकास हो. यही कारण है कि स्वीडन के स्कूलों में शिक्षकों की संख्या सबसे अधिक है. यहां भी तकरीबन हर 9-10 बच्चों पर एक शिक्षक होता है.
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7. एंडोरा
फ्रांस और स्पेन के पास बसे इस यूरोपीय देश की साक्षरता दर तकरीबन 100 फीसदी है. देश में 6-16 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. स्थानीय भाषा एंडोरन के अलावा फ्रेंच और स्पेनिश भाषा भी यहां के स्कूलों में पढ़ाई जाती है. यहां के प्राइमरी स्कूलों में हर 9 छात्रों पर एक शिक्षक है.
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6. क्यूबा
साल 2015 में जारी यूनेस्को के आंकड़ें बताते हैं कि इस देश की साक्षरता दर 99.7 फीसदी है. यहां सरकार अपने बजट का 10 फीसदी हिस्सा देश की शिक्षा व्यवस्था के लिए आवंटित करती है. प्राइमरी स्तर तक की स्कूली शिक्षा अनिवार्य है. यहां भी हर 9 बच्चों पर एक शिक्षक है.
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5. लक्जमबर्ग
पश्चिमी यूरोप के इस छोटे से देश लक्जमबर्ग में शिक्षा प्रणाली बेहद संगठित है. यहां 4-16 साल के बच्चों के लिए स्कूल जाना अनिवार्य है. देश के अधिकतर स्कूलों में मुफ्त शिक्षा दी जाती है. यहां भी हर नौ छात्रों पर एक शिक्षक होता है.
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4. कुवैत
साल 2013 में जारी विश्व बैंक के आंकड़ें बताते हैं कि मध्य एशियाई देश कुवैत में साक्षरता दर 96 फीसदी है. यहां प्राइमरी और इंटरमीडिएट स्तर तक की शिक्षा कानूनी रूप से अनिवार्य है. देश की नागरिकता प्राप्त बच्चों के लिए सरकारी स्कूल में शिक्षा मुफ्त है. प्राइमरी स्तर के स्कूलों में यहां हर 9 बच्चों पर एक शिक्षक है.
तस्वीर: DW
3. लिष्टेनश्टाइन
जर्मन भाषा बोलने वाले मध्य यूरोप के इस देश में वयस्क साक्षरता दर लगभग 100 फीसदी है. देश न केवल अपनी अच्छी स्कूली शिक्षा के लिए जाना जाता है बल्कि यहां शिक्षकों को अच्छा वेतन भी मिलता है. देश की कुल जनसंख्या साल 2013 के आंकड़ों मुताबिक महज 36 हजार के करीब है.
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2. बरमूडा
कैरेबियाई द्वीप बरमूडा भी साक्षरता के मामले में काफी आगे है. देश की वयस्क साक्षरता दर तकरीबन 98 फीसदी है. देश में 5-18 साल के बच्चों के लिए अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान है. साथ ही देश के 60 फीसदी बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं. देश के प्राइमरी स्कूलों में हर सात छात्र पर एक शिक्षक है.
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1. सैंट मैरिनो
चारों ओर इटली से घिरे इस छोटे से देश में वयस्क साक्षरता दर तकरीबन 98 फीसदी है. यहां हर छह छात्रों पर एक शिक्षक है. इस देश की शिक्षा व्यवस्था इटली की शिक्षा व्यवस्था पर आधारित है.