एकेपी की हार एर्दोआन की हार
८ जून २०१५तुर्की के मतदाताओं ने अपनी बात कह दी है. रविवार को हुए चुनावों में दो स्पष्ट पराजित हैं और एक स्पष्ट विजेता. हारने वालों में राष्ट्रपति रेचेप तय्यप एर्दोआन और उनके द्वारा हर तरह की मदद पाने वाली धार्मिक अनदारवादी पार्टी एकेपी है. इसके विपरीत कुर्द पार्टी एचडीपी ने पहली बार 10 प्रतिशत की बाधा पार कर ली है और उसके प्रतिनिधि अंकारा की नेशनल एसेंबली में पहुंचे हैं.
चुनाव के नतीजे एर्दोआन के लिए शर्मनाक हार हैं. उन्होंने तुर्की को राष्ट्रपति शासन वाला बनाने का अपना लक्ष्य हासिल करने के लिए सारा दांव एक पत्ते पर लगा दिया था. देश के राष्ट्रपति के रूप में अपनी तटस्थता के कर्तव्य को तोड़कर उन्होंने हफ्तों तक सारे देश में एकेपी के लिए चुनाव प्रचार किया. विपक्षी नेताओं पर हमला करने से भी वे बाज नहीं आए. मतदाताओं ने एर्दोआन और उनके उत्तराधिकारी अहमत दावुतोग्लू को राजनीतिक लक्ष्यों को पाने के लिए धर्म का इस्तेमाल करने की भी सजा दी है.
एकेपी ने 2002 में एर्दोआन के नेतृत्व में 34 प्रतिशत मत पाकर पहली भारी जीत हासिल की थी. लेकिन चार साल पहले संसदीय चुनावों में 50 प्रतिशत मत पाने और पिछले साल राष्ट्रपति चुनावों में 52 प्रतिशत मत पाने के बाद उसे इन चुनावों में सिर्फ 41 प्रतिशत से संतोष करना पड़ा है. एर्दोआन ने देश का संविधान बदल कर राष्ट्रपति पद्धति लागू करने के लिए दो तिहाई बहुमत की उम्मीद की थी, जो अब सपना ही रहेगा. स्पष्ट हार ने एकेपी को सरकार बनाने के लिए साथी चुनने पर मजबूर कर दिया है. नहीं तो उसे विपक्ष की भूमिका में जाना होगा जिसका पार्टी के भविष्य पर अनिश्चित असर होगा. 20 साल से कभी ताकतवर रही पार्टियां पार्टी प्रमुख के राष्ट्रपति बनते ही बेमानी हो गई हैं.
कुर्द पार्टी एचडीपी
चुनावों की असली विजेता कुर्दों की पार्टी एचडीपी है, लेकिन उसे आराम से बैठना और खुद को बेहतर समझने की भूल नहीं करनी चाहिए. नहीं तो अगले चुनावों में उसे फिर से संसद से बाहर होना पड़ सकता है. पार्टी के दोनों सह अध्यक्ष सलाहत्तीन देमिर्तास और फिगेन युक्सेकदाग को पता होना चाहिए कि उनकी पार्टी की सफलता में एर्दोआन की एकेपी सहित सभी पार्टियों के समर्थकों के वोटों का योगदान है. अपनी सत्ता को और पुख्ता करने तथा तुर्की को बहुलतावादी लोकतंत्र से दूर ले जाने की एर्दोआन की योजना के खिलाफ समाज के सभी हिस्सों में बड़ा विरोध था.
एचडीपी को उसके नाम के साथ जुड़े इस दावे पर खरा उतरना होगा कि वह सभी लोगों को लिए खुली लोकतांत्रिक पार्टी है. उसे लोगों को यह विश्वास दिलाना होगा कि वह उग्रपंथी कुर्द संगठन पीकेके का राजनीतिक धरा नहीं है. 1984 से पीकेके और सरकारी सैनिकों के बीच लड़ाई में 40,000 लोगों की मौत के बाद वामपंथी और दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी एचडीपी को संसद से बाहर करने के हर मौके की तलाश में रहेंगे. उग्र दक्षिणपंथी इस बात को शायद ही स्वीकार करेंगे कि उनकी पार्टी एमएचपी और एचपीडी को लगभग बराबर सीटें मिली हैं. 16 साल से गिरफ्तार पीकेके नेता अबहुल्लाह ओएचलान को छुड़ाने की कोशिश एचडीपी के लिए घातक साबित हो सकती है.
दवा कितनी भी कड़वी हो, एर्दोआन और एकेपी को निगलना पड़ रहा है. तीनों विपक्षी पार्टियों की हेकड़ी उतनी ही खतरनाक होगी. उन्हें एर्दोआन और एकेपी के राजनीतिक अहंकार का फायदा मिला है, जिन्हें मतदाताओं ने फिलहाल नकार दिया है.