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एक कप में मिला समूचा क्रिकेट

३ अप्रैल २०११

नुवान कुलसेखरा की उस गेंद को धोनी देर तक निहारते रहे, जो उनके बल्ले की चोट खाकर पहले ऊंचे आसमान में गई और फिर हजारों दर्शकों के बीच गिर कर गुम हो गई. साढ़े पांच औंस की इस सफेद गेंद ने सुनहरा इतिहास लिख दिया.

तस्वीर: DW

अचानक सब खामोश हो गए. यह ऐसी तस्वीर है, जो दशकों जेहन में बनी रहेगी. एक गेंद पहले तक धोनी को भी पता नहीं होगा कि वह क्या कर रहे हैं. सामने खड़े युवराज को भी मालूम न होगा कि इतिहास के पन्नों पर उनकी बातें कैसे लिखी जाएंगी. क्षण भर को धोनी भी जड़वत हो गए, युवराज भी.

होश तो तब आया, जब पैवेलियन में बैठा क्रिकेट का जादूगर दोनों हाथ उठाए उछलता कूदता मैदान पर उतर आया. 38 साल के सचिन तेंदुलकर 18 साल के बच्चे की तरह झूमने लगे. धीर गंभीर क्रिकेटर अचानक अलहड़ किशोर की तरह साथियों को गले लगाने लगा. भारतीय क्रिकेट टीम को तब समझ आई कि उन्होंने वर्ल्ड कप जीत लिया है.

एक अरब भारतीयों का सपना सच हुआ. टीम इंडिया का सपना सच हुआ और लगातार छठी बार में क्रिकेट के भीष्म पितामह सचिन तेंदुलकर का सपना सच हुआ. वानखेड़े स्टेडियम नीले रंग से नहा गया. कोच गैरी कर्स्टन टीम के लड़कों के साथ बच्चे बन गए. थप्पड़ के लिए मशहूर भज्जी की आंखों से आंसू बह निकले, जिन्हें छिपाने की उन्होंने कोई कोशिश नहीं की. पूरा ड्रेसिंग रूम रात 11 बजे दूधिया रोशनी में नहाता मैदान पर उतर आया.

कोई तीन घंटे पहले इसी ग्राउंड पर मातम का माहौल था, जब क्रिकेट के युगपुरुष भारत का जहाज बीच भंवर में छोड़ आउट हो गए थे. सचिन के आउट होने के बाद हजारों लाखों भारतीय क्रिकेट प्रेमियों ने टेलीविजन बंद कर दिए थे. 33,000 दर्शकों से भरा स्टेडियम गम के सन्नाटे में डूब गया था लेकिन अद्भुत संभावनाओं वाले खेल क्रिकेट ने तीन घंटे में तस्वीर बदल दी. भंवर में पड़ा जहाज किनारे लग चुका था और खेवैया कोई और नहीं इसका कप्तान महेंद्र सिंह धोनी था.

रात की गुलाबी ठंडक का नामोनिशान नहीं था. क्रिकेट के इस महासमर में विजय पताका फहराने वाली सेना युद्ध के मैदान पर राज कर रही थी और थोड़ी दूरी पर विपक्षी खेमे के महारथी एक कोने में कभी नम आंखों से उनकी खुशियां देख रहे थे, तो कभी ढलक पड़ने वाले आंसू को कैमरे की नजरों से बचा जाने के लिए सिर नीचे कर लिया करते थे. विरोधी खेमे का सेनापति महेला जयवर्धने विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि उनकी वीरता भरी सेंचुरी व्यर्थ हो चुकी है. दोनों ही टीमों को इससे पहले भी फाइनल में हारने का अहसास था. 2003 में भारत और 2007 में श्रीलंका फाइनल में ऑस्ट्रेलिया से हार चुकी थी. महेला तब कप्तान हुआ करते थे. दोनों ही टीमों में कम से कम पांच ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्हें उस हार की टीस बरसों से सता रही थी. लेकिन हर विजय के साथ एक पराजय जुड़ी होती है. आज पराजय श्रीलंका के हिस्से में आई, जिसके कप्तान कुमार संगकारा ने भी मान लिया कि जीत की हकदार तो दूसरी टीम ही थी.

अब बारी तिरंगे में लिपटने की थी. मैदान पर जश्न मनाने की थी. थोड़ी दूर दौड़ने भागने के बाद राजा को सम्मान देने की सुध आई. विराट कोहली ने साथियों के साथ मिल कर सचिन तेंदुलकर को कंधे पर उठा लिया और बाद में हट्टे कट्टे यूसुफ पठान ने अपने दम पर ही सचिन को कंधे पर बिठा मैदान कर चक्कर लगाया.

खुशी में झूमते विराट कोहली ने कहा, "आज तो हमें उस शख्स को अपने कंधे पर उठा लेने दो, जिसने 21 साल से भारतीय क्रिकेट को अपने कंधों पर उठा रखा है."

विराट कोहली की जितनी उम्र है, सचिन उतने साल से अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेल रहे हैं.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः ओंकार सिंह जनौटी

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