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एक ख्वाब तैरता है सायना की आंखों में

विवेक कुमार (संपादन: एस गौड़)७ सितम्बर २०१०

वह छोटी सी है...महज 20 साल की. लेकिन उसके कारनामे बहुत बड़े हैं. बैडमिंटन कोर्ट बिना खास कोशिश के उनकी चपलता दर्शनीय होती है, तो बैडमिंटन की ‘चिड़िया’उसके इशारों पर नाचती है. दर्शक मंत्रमुग्ध से उसे देखते हैं.

सायना नेहवालतस्वीर: AP

खिताबों की उसने ढेरी लगा रखी है और उम्मीदों का पहाड़ उसके साथ खड़ा रहता है. पहले सिर्फ भारत जानता था, लेकिन अब पूरी दुनिया उसे जानती है, सायना नेहवाल के नाम से. सायना कॉमनवेल्थ खेलों में भारत की सबसे बड़ी उम्मीद हैं.

तस्वीर: UNI

ओलंपिक में मेडल से वह बस एक कदम पीछे रहीं. लेकिन उनसे पहले तो क्वॉर्टर फाइनल तक भी कोई नहीं पहुंच पाया. सायना ने विश्व स्तर के तीन बड़े खिताब जीते हैं. साल 2009 में जब उन्होंने चीन की चमत्कारी खिलाड़ी वांग लिन को हराकर इंडोनेशियाई ओपन जीता, तो भारत में खुशी से ज्यादा हैरत फैली. क्योंकि इससे पहले तो किसी ने सोचा ही नहीं था कि कोई भारतीय लड़की सुपर सीरीज जीत लाएगी. जैसे टेनिस में ग्रैंड स्लैम होता है,

उसी तरह बैडमिंटन में सुपर सीरीज होता है और जिस देश में लोग बैडमिंटन को शाम के वक्त टाइम पास करने का खेल समझते हों, वहां सुपर सीरीज जीतने की उम्मीदें तो भरे पूरे क्रिकेट स्टेडियमों के कोनों में पड़ी रहती हैं.

तब बहुत से लोग भारत की टेनिस स्टार सानिया मिर्जा की वजह से उनके नाम को लेकर बहुत उलझन में पड़ते थे. लेकिन सायना के लिए यह बस शुरुआत थी. 2010 में उन्होंने सिंगापुर ओपन और इंडोनेशियाई ओपन दोनों खिताब जीतकर लोगों को समझा दिया कि उनकी पहचान क्या है.

बैडमिंटन कोर्ट पर इंडोनेशिया और चीन का ही सिक्का चलता है, लेकिन इन दिग्गजों की भीड़ के बीच एक भारतीय है, जिसे ये चैंपियन भी सलाम करते हैं. सायना इस वक्त दुनिया की तीसरे नंबर की खिलाड़ी हैं. इतिहास में पहली बार कोई भारतीय महिला इस रैंकिंग तक पहुंची है.

लेकिन उनकी निगाहें तो अर्जुन की तरह नंबर पर एक पर ही टिकी हैं. पर एक सुनहरा सपना है जो आजकल उनकी आंखों में तैर रहा है. कॉमनवेल्थ खेलों में भारत के लिए मेडल जीतने का सपना.

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