1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

एक जनरल की मौत पर क्यों रो पड़े खमेनेई

04:50

This browser does not support the video element.

८ जनवरी २०२०

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई अमेरिका के हमले में मारे गए कासिम सुलेमानी की मौत से बहुत आहत हैं. अपनी कठोरता के लिए विख्यात खमेनेई को रोते देखना सबको हैरान कर रहा है. बहुत से लोग इसे खमेनेई के लिए राजनीति से अलग निजी नुकसान मान रहे हैं.

ईरान और दुनिया के लोगों ने ऐसा नजारा इससे पहले शायद कभी नहीं देखा. इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान का जर्रा जर्रा जिसकी मजबूत सरपरस्ती में सांस लेता है उसे बिलखते देख पूरी दुनिया हैरान है. हालांकि इससे यह अंदाजा हो जाता है कि कासिम सुलेमानी की मौत से इस देश और उसके हुक्मरानों पर क्या बीत रही है.

कोई हैरत नहीं कि कासिम सुलेमानी के गृहनगर अहवाज में जब उनका जनाजा चला तो सड़कों पर लोगों का समंदर उमड़ पड़ा. जहां तक नजर गई सिर्फ काले कपड़े पहने लोग ही नजर आए. ईरान में पहली बार किसी शख्स के लिए एक से ज्यादा शहरों में अंतिम यात्रा निकाली गई है. लोग बताते हैं कि आधुनिक ईरान में ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया. यहां तक कि 1989 में  इस्लामिक क्रांति के जनक अयातोल्लाह रोहुल्ला खोमैनी की मौत के समय भी नहीं. 

कासिम सुलेमानी की मौत की खबर आने के तुरंत बाद खमेनेई परिजनों को दिलासा देने सीधे उनके घर जा पहुंचे. बीते सालों में ऐसा कभी और हुआ हो ऐसा याद नहीं आता. देश में सर्वोच्च नेता खमेनेई निजी तौर पर बेहद संजीदा रहते हैं और बहुत सीमित लोगों की ही उन तक पहुंच है. उनका किसी के घर जाना तो बहुत दूर की बात है. 

हालांकि सुलेमानी की बात कुछ और है. सुलेमानी के घर से आने के बाद ही खमेनेई ने तीन दिन के राष्ट्रीय शोक का एलान किया. बीते 21 सालों से ईरान की रेवॉल्यूशनरी आर्मी की एलीट कुद्स फोर्स का नेतृत्व कर रहे सुलेमानी ना सिर्फ ईरान के प्रमुख सिपहसलार थे बल्कि देश के सर्वोच्च नेता अयातोल्लाह खमेनेई के भी बेहद करीब थे. सेना के दूसरे जनरलों से अलग ईरान में उन्हें आदेश देने या फिर उनसे सवाल करने का हक सिर्फ खमेनेई को था. देश की सरकार उनके फैसलों में दखल नहीं देती थी.  

जाहिर है कि बीते दशकों में दोनों ने साथ मिल कर एक दूसरे के मंसूबों को आगे बढ़ाने में भरपूर सहयोग किया. 1980 से 88 के बीच चले ईरान इराक जंग का उन्हें नायक माना जाता है. मध्यपूर्व के देशों में ईरान समर्थित मिलिशिया को खड़ा करने की पूरी इबारत भी कासिम सुलेमानी ने लिखी है. इराक, सीरिया, लेबनान, फलस्तीन, यमन समेत तमाम ऐसे इलाके हैं जहां ईरान समर्थित लड़ाके उनके इशारों पर हमलों को अंजाम देने से लेकर सरकारों की किस्मत तय करने तक की कूवत रखते हैं. 

सीरिया में असद अपनी सरकार बचा पाए इसमें बड़ी भूमिका ईरान समर्थित मिलिशिया की ही थी. इराक पर अमेरिकी हमले के बाद जब सद्दाम हुसैन की सरकार का पतन हुआ तो बदली परिस्थितियों में सत्ता ईरान समर्थित नेताओं के हाथ में चली गई. इसी तरह लेबनान में हिज्बुल्ला की मर्जी के बगैर किसी सरकार का चल पाना मुमकिन नहीं. फलस्तीन में हमास के राजनीति में उतर जाने के बाद चरमपंथी कार्रवाइयों की कमान अब ईरान समर्थित इस्लामिक जिहाद के हाथों में जा रही है. सुलेमानी इन भूराजनैनिक परिस्थितियों के प्रमुख रणनीतिकार थे और यही वजह है कि उन्हें ईरान के दूसरे सबसे ताकतवर शख्स  के रूप में देखा जाता था. 

1979 की क्रांति के बाद सुलेमानी ईरान की सेना के अकेले ऐसे अधिकारी थे जिन्हें ऑर्डर ऑफ जुल्फकार से नवाजा गया. इस मौके पर खमेनेई ने उनके लिए एक सुखद जिंदगी की कामना की थी और यह भी कहा था कि अभी कई और सालों तक देश को उनकी जरूरत है. 

खमनेई और सुलेमानी के रिश्ते की कई निजी परतें भी जब तब दिखाई देती रही हैं. ईरान की मीडिया में कई बार ऐसी तस्वीरें सामने आई हैं जिनमें खमेनेई सुलेमानी को अपने सीने से लगाए दिखे. इन तस्वीरों में खमेनेई को कभी सुलेमानी का माथा तो कभी उनके गाल चूमते हुए भी देखा गया. सुलेमानी का परिवार भी खमेनेई के साथ कई बार नजर आया है. 
सुलेमानी की मौत से ईरान अभी गमजदा है लेकिन दुनिया को इस मातम में उस गुस्से की आहट भी सुनाई दे रही है जो आने वाले दिनों में ना जाने किस रूप में सामने आए. 

_______________

हमसे जुड़ें: WhatsApp | Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें