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एक तिहाई भारतीयों के लिए जिंदगी 'पीड़ा'

३० अप्रैल २०१२

करीब एक तिहाई भारतीय अपने जिंदगी से बहुत ज्यादा दुखी हैं. जीवन को पीड़ा बताने वाले लोगों में निर्धन और अशिक्षित लोगों की संख्या ज्यादा है. लेकिन कुछ पैसे वाले और शिक्षित लोग भी जिंदगी को पीड़ा मान रहे हैं.

तस्वीर: Rabin Chakrabarti

गैलप ग्रुप ने एक सर्वे के जरिए लोगों की मनोदशा जानने की कोशिश की. सर्वे में करीब 5,000 लोगों का इंटरव्यू किया गया. इंटरव्यू देने वालों की उम्र 15 साल से ज्यादा थी. 73 फीसदी लोगों ने माना कि सरकार में भ्रष्टाचार काफी हद तक फैल चुका है. हालांकि 2011 में ऐसा मानने वाले लोग 80 फीसदी थे

सामाजिक और आर्थिक वर्गीकरण के आधार पर किए गए सर्वे में 31 फीसदी लोगों ने माना कि उनकी जिंदगी एक 'पीड़ा' है, जिसे वह भुगत रहे हैं. इन लोगों से जब आय, मौजूदा जीवन स्तर और भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछा गया तो वे बेहद निराश हो गए. आय, शिक्षा और रोजगार जीवन स्तर पर सबसे ज्यादा असर डाल रहे हैं.

हालांकि सर्वे में एक नई बात भी सामने आई. 2006 में 35 फीसदी लोग कह रहे थे कि उनके पास खाना खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है. छह साल बाद हुए सर्वे में ऐसे लोगों की संख्या 13 फीसदी रह गई है.

तस्वीर: Naomi Conrad

अमेरिका में भी गैलप से ऐसा ही सर्वे किया. वहां 54 फीसदी लोग जीवन को उन्नतशील मान रहे हैं. 43 फीसदी जिंदगी को संघर्ष की तरह देखते हैं. तीन फीसदी पीड़ा मानते हैं.

आर्थिक मंदी का असर दुनिया भर के युवाओं की मनोदशा पर पड़ा है. गैलप के मुताबिक दुनिया भर के एक तिहाई युवाओं ने 2011 में हरसंभव बचत की. ज्यादा आय वालों ने ज्यादा बचत की. ज्यादा बचत करने वालों में सब सहारा क्षेत्र के देश और पूर्वी एशियाई देशों के युवा रहे. इन लोगों ने 40 फीसदी पैसा बचाया.

ओएसजे/एनआर (एपी)

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