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एक दूसरे की तरफ मुस्कुराते भारत और जर्मनी

२ अक्टूबर २०११

संस्कृति, दर्शन और भाषा भारत और जर्मनी के रिश्ते को इतिहास से वर्तमान तक लाती है. आपसी कारोबार और बदलते वैश्विक समीकरण कहते हैं कि चुनौतियों के बावजूद दोनों देशों को भविष्य में भी साथ चलना होगा.

तस्वीर: AP

भारत और जर्मनी के रिश्ते पारंपरिक रूप से मजबूत रहे हैं. व्यापार, आपसी सहयोग और सांस्कृतिक क्षेत्र में यूरोप और एशिया के इन दो देशों ने एक दूसरे को सम्मान भी दिया है और सहयोग भी. द्वितीय विश्वयुद्ध के फौरन बाद भारत ने सबसे पहले जर्मनी के साथ युद्ध खत्म करने का एलान किया.

पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी सोवियत संघ और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का प्रमुख मोहरा रहे. लेकिन 1990 तक भारत के संबंध पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी के साथ बेहतर रहे. 1950 के दशक में जर्मनी के शांतिपूर्ण एकीकरण का सपना भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भी देखा. 1956 में नेहरू पश्चिमी जर्मनी आए और तत्कालीन चांसलर कोनराड आडेनावर के साथ मुलाकात कर उन्होंने जर्मनी के दो हिस्सों को शांति से मिलाने का आह्वान किया. जर्मनी की मदद से ही 1956 में आईआईटी मद्रास की स्थापना हुई.

बर्लिन में भारतीय कलाकार सुदर्शनतस्वीर: AP

भारत के मिसाइल और विमान उद्योग को खड़ा करने में भी जर्मन इंजीनियरों की भूमिका रही. मिसाइल मैन के नाम से मशहूर भारत के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम को लड़ाकू विमानों के मशहूर जर्मन इंजीनियर कुर्त टांक ने बारीकियां सिखाई. मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग में डायरेक्टर रहे टांक बाद में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स से जुड़े. भारत में बना पहला बमवर्षक विमान हिंदुस्तान मारुत का डिजायन टांक ने ही तैयार किया. 

कठिन परीक्षा

1998 में दोनों देशों के संबंधों की पहली अग्नि परीक्षा हुई. भारत ने दूसरी बार पोखरण में परमाणु परीक्षण किए. भारत के पीछे पीछे पाकिस्तान ने भी परमाणु हथियारों का परीक्षण कर दिया. दो विश्वयुद्ध झेल चुके और परमाणु हथियारों का विरोध करने वाले जर्मनी ने भारत के परमाणु परीक्षण की खुल कर निंदा की. अमेरिका, जापान और जर्मनी ने भारत पर कई तरह के आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए. अगले पांच-छह सालों तक दोनों देशों के रिश्ते नाजुक बने रहे.

आर्थिक प्रतिबंधों का भारत पर ज्यादा असर नहीं पड़ा. ज्यादातर प्रतिबंध पांच साल के भीतर हटा लिए गए. इस दौरान भारत सरकार ने विदेशी निवेशकों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए. भारत ने लगातार भरोसा दिलाते हुए कहा कि वह परमाणु अस्त्रों का इस्तेमाल पहले नहीं करेगा.

बर्लिन में फैन्स से घिरे शाहरुखतस्वीर: AP

अब कहां हैं रिश्ते

भारत और जर्मनी के बीच परमाणु परीक्षणों से ऊपजी कड़वाहट खत्म होने में करीब आठ साल का वक्त लगा. 2006 में दुनिया में मशीनों के सबसे बड़े मेले हेनोवर मेसे का मेजबान भारत बना. भारत को फ्रैंकफर्ट बुक फेयर की मेजबानी भी मिली. इन कोशिशों से संबंध पटरी पर लौटने लगे. फिर 2008 में जर्मन चासंलर अंगेला मैर्केल भारत दौरे पर आईं. इस दौरान दोनों देशों के बीच तकनीक, रक्षा, आपसी व्यापार और एनवायरंमेंट इंजीनियरिंग के क्षेत्र में कई समझौते हुए. नई दिल्ली में इंडो-जर्मन साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर की स्थापना की गई. सेंटर का मकसद ऊर्जा, पर्यावरण, कोयला और वॉटर टेक्नोलॉजी को बढ़ावा देना है.

आर्थिक रिश्ते

आपसी व्यापार के क्षेत्र में जर्मनी भारत का सबसे बड़ा यूरोपीय साझीदार है. टेलीकम्युनिकेशन, इंजीनियरिंग, एनवायरंमेंट टेक्नोलॉजी, फूड प्रोसेसिंग, केमिकल एंड फार्मास्युटिकल्स में दोनों देशों के बीच गहरे रिश्ते हैं. हाल के बरसों में दोनों देशों के बीच व्यापार जबरदस्त ढंग से बढ़ा है. 2008-09 की वैश्विक मंदी के बाद भारत के जर्मन निर्यात में 21.5 फीसदी का उछाल देखा गया. भारतीय निर्यात इस वक्त 6.2 अरब यूरो का है. जर्मनी भारत से कॉटन टेक्सटाइल, हैंडलूम, वुलन टेक्सटाइल, लेदर, आईटी सेवाएं और कृषि उत्पाद खरीदता है.

इसके बदले भारत जर्मनी से अत्याधुनिक इंजीयनियरिंग उपकरण और तकनीक खरीदता है. आधारभूत संरचना को दुरुस्त करने में भारतीय कंपनियां जर्मन मशीनों की ही मदद लेती है. दिल्ली की मेट्रो रेल बनाने में जर्मन तकनीक और मशीनों का बड़ा योगदान रहा है. भारत में स्वच्छ ऊर्जा, स्वच्छ पेयजल और पर्यावरण को बचाने के लिए चलाई जा रही कई योजनाएं भी जर्मनी के सहयोग से चल रही है.

भारत के पर्वतीय इलाकों की जलवायु काफी हद तक जर्मनी की जलवायु जैसी ही है. हिमालय क्षेत्र में खेती को ज्यादा उन्नत बनाने के लिए भी अक्सर जर्मन वैज्ञानिकों की मदद ली जाती रही है.

भारत और जर्मनी के पास एक दूसरे को देने के लिए काफी कुछ है. दोनों देशों को इसका एहसास है. नई दिल्ली और बर्लिन चाहते हैं कि उनकी दोस्ती और परवान चढ़े. जर्मन तकनीक का लोहा दुनिया मानती है. भारत को तेजी से आर्थिक विकास करने के लिए जर्मनी की मशीनें और तकनीक चाहिए. जर्मनी भी तेजी से उभरते भारत के आर्थिक विकास का लाभ उठाना चाहता है.

इसी साल कुछ महीने पहले जब जर्मन चासंलर अंगेला मैर्केल दूसरी बार भारत दौरे पर गईं तो मुलाकात की गर्मजोशी से कई बातें साफ भी हो गईं. दोनों देश 2012 तक आपसी व्यापार को 30 अरब यूरो तक पहुंचाना चाहते हैं.

कूटनीतिक संबंध

यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद जर्मनी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य नहीं है. सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के बावजूद भारत भी सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है. दोनों देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ढांचे में बदलाव करने की मांग करते हुए स्थायी सदस्यता देने की मांग कर रहे हैं. दोनों देश सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता चाह रहे देशों के संगठन जी4 के सदस्य हैं. नई दिल्ली और बर्लिन एक दूसरे का रास्ता रोकने के बजाए ढांचे में बदलाव करते हुए बड़ा मार्ग तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं. दोनों देशों के शीर्ष नेता और विदेश मंत्री साल भर में कई बार मिल रहे हैं.

सामरिक रणनीति के बदलते समीकरणों पर ध्यान दिया जा रहा है. आतंकवाद और अफगानिस्तान जैसे मुद्दों पर राय एक जैसी बनती जा रही है. बीते साल जर्मन चांसलर ने पहली बार खुलकर कहा कि पाकिस्तान आतंकवाद की नीति बंद करे. भारतीय प्रधानमंत्री के साथ नई दिल्ली में साझा प्रेस वार्ता में मैर्केल ने कहा कि राजनीतिक विवादों को आतंकवाद से नहीं सुलझाया जाता. जर्मन चासंलर ने आतंकवाद से लड़ने में भारत को भरपूर मदद का भी आश्वासन दिया.

जर्मनी भारतीय सेना को यूरो फाइटर बेचना चाहता है. दोनों देशों की सेनाएं भी अब साझा सैन्य अभ्यास करने लगी हैं. साहित्य और सांस्कृतिक संबंध दोनों देशों के अब भी मजबूत बने हुए हैं. कूटनीतिक और आर्थिक रिश्ते संबंधों को और मजबूती से बांध रहे हैं.

रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: महेश झा

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