अमेरिका ने कहा है कि वह इस्तांबुल में लापता हुए सऊदी पत्रकार के मुद्दे पर सऊदी अरब पर आर्थिक दबाव डालेगा. सऊदी अरब भी पलटवार करने की बात कह रहा है. इससे दो करीबी दोस्तों के बीच टकराव के आसार पैदा हो गए हैं.
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अमेरिका इस बात पर विचार कर रहा है कि अगर यह बात साबित हो जाती है कि सऊदी एजेंटों ने पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या की है, तो फिर सऊदी अरब के खिलाफ कौन से कदम उठाए जा सकते हैं. सऊदी सरकार और खासकर क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के आलोचक रहे खाशोगी इस महीने के शुरू में इस्तांबुल के सऊदी कॉन्सुलेट में जाते दिखे थे और उसी के बाद से लापता हैं.
ट्रंप ने जोर देकर कहा है कि अगर साबित हुआ कि खशोगी की हत्या के पीछे सऊदी अरब का हाथ है, फिर उसे 'कड़ी सजा' भुगतनी होगी. उन्होंने इस बारे में चर्चा करने के लिए अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉमपेयो को सऊदी अरब भी रवाना किया.
दूसरी तरफ, सऊदी अरब ऐसे सभी आरोपों को 'झूठ' बता कर खारिज कर रहा है. उसका कहना है कि अगर अमेरिका या फिर दूसरे पश्चिमी देशों ने सऊदी अरब के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगाए, तो फिर सऊदी अरब भी पलटवार करने से पीछे नहीं हटेगा.
इन देशों में आज भी है राजा का शासन
दुनिया भर में लोकतांत्रिक शासन की बात होती है. हालांकि अब भी कई देश हैं जहां पूरी तरह से राजा का शासन है. इन देशों में राजा की इच्छा ही सर्वोपरि है कोई संविधान या फिर कोई और चीज उसके ऊपर नहीं है. एक नजर ऐसे देशों पर.
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ब्रुनेई
ब्रुनेई में सुल्तान हाजी हसनाल बोल्किया मुइज्जाद्दीन वदअउल्लाह का शासन है. ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ के बाद वो दुनिया में चले आ रहे सबसे पुराने शाही वंशज हैं जिसके हाथ में सत्ता की बागडोर है. हालांकि ब्रिटेन में अब लोकतंत्र है और देश का कामकाज जनता के चुने हुए प्रतिनिधि संभालते हैं.
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ओमान
ओमान के सुल्तान हैं कबूस बिन सइद अल सइद. उन्होंने 1970 में अपने पिता सइद बिन तैमूर को गद्दी से हटा कर सत्ता की कमान अपने हाथ में ली. वह अल बू सईद वंश के चौथे शासक हैं. 1970 में जब तख्तापलट के जरिए सत्ता संभाली तो वह अरब जगत के सबसे युवा शासक थे.
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सऊदी अरब
अरब जगत के दूसरे सबसे बड़े देश पर शाह सलमान बिन अब्दुलअजीज अल सऊद का शासन है जो देश के प्रधानमंत्री भी हैं. वे अपने भाई नायेफ बिन अब्दुलअजीज अल सउद के निधन के बाद देश के सुल्तान बने. फिलहाल देश में शासन उनके नाम पर उनके बेटे क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान चला रहे है, जो देश के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री भी हैं.
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संयुक्त अरब अमीरात
सात अमीरातों के संघ संयुक्त अरब अमीरात पर खलीफा बिन जायेद बिन सुल्तान अल नाह्यान का शासन है जो यहां के राष्ट्रपति और अबू धाबी के अमीर हैं. वह 2004 से ही इस पद पर काबिज हैं. इससे पहले उनके पिता जायेद बिन सुल्तान अल नाह्यान यहां के शासक थे.
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स्वाजीलैंड
दक्षिण अफ्रीका के देश स्वाजीलैंड पर इंगेवेनयामा मस्वाती तृतीय का शासन है, वे स्वाजी शाही परिवार के मुखिया हैं. वह स्वाजीलैंड के पूर्व राजा सोभुजा द्वितीय के बेटे हैं. 1986 में महज 18 साल की उम्र में जब उन्होंने देश की बागडोर संभाली तब वो दुनिया के सबसे युवा शासक थे.
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अब तक यह साफ नहीं है कि सऊदी अरब के खिलाफ अमेरिका क्या कदम उठाएगा, लेकिन मार्को रूबियो जैसे प्रभावशाली अमेरिकी सांसद कहते हैं कि सऊदी अरब को होने वाली हथियारों की बिक्री अमेरिका रोक सकता है. वहीं रिपब्लिकन सीनेटर जेफ फ्लेक कहते हैं कि यमन संकट में उलझे सऊदी अरब की सेना को मिलने वाली अमेरिकी सैन्य मदद भी रोकी जा सकती है.
अमेरिका की निजी कंपनियां पहले ही सऊदी अरब पर लग रहे खशोगी की हत्या के आरोपों पर अपना रुख सख्त कर चुकी हैं. जेपी मॉर्गन, जेमी डायमन के साथ साथ फोर्ड जैसी कंपनियों के मुखिया सऊदी अरब में होने वाले निवेशकों के सम्मेलन में ना जाने का फैसला कर चुके हैं.
जर्मनी की माइंत्स यूनिवर्सिटी में अरब दुनिया पर शोध संस्थान के निदेशक ग्युंटर मायर का कहना है, "वैश्विक निवेशक सऊदी अरब के साथ अपने समझौतों पर दोबारा गंभीरता से विचार कर रहे हैं क्योंकि उन पर मीडिया के साथ साथ अपने ग्राहकों का भी दबाव है."
बदलाव को कितना तैयार सऊदी अरब
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दूसरी तरफ, सदर्न डेनमार्क यूनिवर्सिटी में मध्य पूर्व अध्ययन केंद्र के प्रोफेसर मार्टिन बेक कहते हैं कि सऊदी अरब भी अमेरिका की तरफ से प्रतिबंध लगाए जाने की स्थिति में पलटवार कर सकता है और वह तेल का उत्पादन घटा सकता है. वह कहते हैं, "अगर सऊदी अरब अपने तेल उत्पादन में कटौती कर दे, तो इससे तेल के बाजार में खलबली मच सकती है जिससे एकदम से दाम बढ़ सकते हैं."
उनके मुताबिक इससे अमेरिकी लोग भी प्रभावित होंगे. मायर कहते हैं कि सऊदी अरब अमेरिकी अर्थव्यवस्था में अपना निवेश घटाने की बात भी सोच रहा है, जो अभी 800 अरब डॉलर के आसपास है. सऊदी अरब ने अमेरिका में होटल, मैन्यूफैक्चरिंग और रियल एस्टेट सेक्टर में निवेश किया है.
बहरहाल जानकारों का मानना है कि दोनों तरफ से सख्त रुख अपनाए जाने के बावजूद उनके बीच आर्थिक मोर्चे पर रिश्ते ज्यादा प्रभावित होने की कम ही आशंका है. मायर कहते हैं, "मुझे नहीं लगता कि ट्रंप सऊदी अरब के खिलाफ कड़े प्रतिबंध लगाएंगे. जनता का दबाव होगा लेकिन यह इतना भी नहीं है कि उन्हें तुरंत कोई सख्त कदम उठाना पड़े."
रिपोर्ट: वेसले डॉकरी/एके
सऊदी अरब-ईरान के बीच पिसता यमन
अरब दुनिया में शुमार यमन की गिनती दुनिया के गरीब देशों में होती है. साल 2011 के बाद से देश में राजनीतिक खींचतान जारी है. हालात बिगड़े और साल 2015 से यहां गृहयुद्ध शुरू हो गया है. एक नजर इस युद्ध की वजहों पर.
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कब हुई शुरुआत
देश के आंतरिक मसलों से शुरू हुआ यह युद्ध आज कई मुल्कों के बीच की लड़ाई बन गया है. साल 2011 में अरब वसंत की लहर जब यमन पहुंची तो साल 1978 से यमन की सत्ता पर काबिज अली अबदुल्लाह सालेह को हटाने की आवाज उठने लगी. उस वक्त हुए सत्ता परिवर्तन में राष्ट्रपति की कुर्सी अबेदरब्बो मंसूर हादी को मिल गई और तब से वही देश के राष्ट्रपति हैं.
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नई सरकार की नाकामी
नए राष्ट्रपति हादी को सत्ता मिलने से पूर्व राष्ट्रपति सालेह का वफादार खेमा नाराज हो गया. हादी सरकार के सामने भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, खाद्य संकट जैसी बुनियादी समस्याएं भी थीं. साथ ही अल कायदा जैसे आंतकी गुटों से निपटना भी उसके लिए एक चुनौती था. कुल मिलाकर स्थिरता की उम्मीद से जिस नई सरकार का गठन किया गया था वह असल काम करने में नाकाम रही.
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कहां से लगी चिंगारी
नई सरकार की इस प्रशासनिक नाकामी का फायदा उठाते हुए हूथी विद्रोहियों ने देश के उत्तरी प्रांत सदा और उसके आसपास के इलाके पर कब्जा कर लिया. हूथी विद्रोही यमन के अल्पसंख्यक शिया जैदी मुसलमानों की नुमाइंदगी करते हैं. साल 2000 के दौरान इन हूथी विद्रोहियों ने उस वक्त राष्ट्रपति रहे सालेह की फौज के खिलाफ कई लड़ाइयां लड़ी लेकिन ये संघर्ष उत्तरी यमन के सूबे सदा तक ही सीमित रहे.
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दुश्मन-दुश्मन हुए साथ
अब तक हूथी विद्रोही, सालेह को अपना दुश्मन मानते थे. लेकिन हादी सरकार को सत्ता से हटाने के लिए सालेह खेमे ने हूथी विद्रोहियों से हाथ मिला लिया. दुश्मनों की इस दोस्ती का असर हुआ और साल 2014 में हूथी विद्रोही और सालेह की फौज ने मिलकर यमन की राजधानी सना पर नियंत्रण स्थापित कर लिया. इसके बाद यमन के दूसरे सबसे बड़े शहर अदन को लक्ष्य बनाया गया.
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शिया-सुन्नी युद्ध
शिया मुसलमानों की नुमाइंदगी करने वाले हूथी विद्रोहियों के बढ़ते प्रभाव के चलते साल 2015 में सऊदी अरब, यमन के इस गृहयुद्ध में हादी सरकार को समर्थन देने लगा. सऊदी अरब, ईरान पर हूथियों का साथ देने का आरोप लगाता है. ईरान और सऊदी अरब के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. सऊदी अरब कहता है कि ईरान, अरब जगत पर अपना असर बढ़ाने के लिए ऐसा कर रहा है.
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सऊदी अरब के साथ
सऊदी अरब का साथ सुन्नी बहुल कतर, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, मिस्र, जोर्डन जैसे देश सीधे-सीधे दे रहे हैं. इसके अलावा सेनेगल, मोरक्को, सूडान भी इसके साथ हैं. अमेरिका, ब्रिटेन समेत कई यूरोपीय देशों से सऊदी अरब को हथियार और अन्य सहायता भी मिलती है. वहीं दूसरी तरफ ईरान हूथी विद्रोहियों का साथ देने से इनकार करता है.
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पूर्व राष्ट्रपति की हत्या
हूथी विद्रोहियों का साथ देने वाले यमन के पूर्व राष्ट्रपति सालेह ने साल 2017 में हूथियों का तीन साल पुराना साथ छोड़ने की घोषणा की थी. साथ ही कहा था कि वह सऊदी अरब और विद्रोहियों के बीच वार्ता के पक्ष में हैं. सालेह के इस प्रस्ताव को सऊदी अरब ने भी सकारात्मक ढंग से लिया था. लेकिन हूथी विद्रोहियों ने सालेह पर धोखे का आरोप लगाते हुए उनकी हत्या कर दी थी.
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अलगाववादियों की भूमिका
इन सब के बीच यहां अलगाववादियों की भी भूमिका बहुत अहम है. साल 1990 में दक्षिणी और उत्तरी यमन को मिलाकर यमन राष्ट्र का गठन किया गया था. लेकिन अब भी दक्षिण यमन के क्षेत्र में अलगाववादी भावना शांत नहीं हुईं हैं. अलगाववादी पहले हूथी विद्रोहियों के खिलाफ सरकार का समर्थन करते थे. लेकिन अब ये गुट सरकार पर भ्रष्टाचार और भेदभाव का आरोप लगाते हैं जिसके बाद तनाव बढ़ा है.
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आतंकी संगठनों की सक्रियता
आतंकी गुट अल कायदा और इस्लामिक स्टेट से जुड़े चरमपंथी संगठन भी दोनों पक्षों पर हमला करते रहते हैं. साल 2015 से शुरू हुए इस गृहयुद्ध में अब तक आठ हजार से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं और 42 हजार से भी अधिक लोग घायल हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक यमन में दो करोड़ से भी अधिक लोगों को तत्काल मदद की जरूरत है. देश के इस आंतरिक संकट ने मानवीय त्रासदी का रूप ले लिया है.
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आज के हालात
देश की मौजूदा सरकार फिलहाल अदन को अपना ठिकाना बनाए हुए है. लेकिन अदन की सरकारी इमारतों पर अलगाववादियों का कब्जा है. वहीं राजधानी सना में हूथी विद्रोहियों का कब्जा है. जमीनी स्तर पर यमन में हालात बहुत खराब है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों मुताबिक देश में महामारी शुरू होने के बाद से हैजे के चलते अब तक दो हजार से अधिक मौतें हो चुकी हैं.