हैती में शनिवार को आए भूकंप ने फिर सैकड़ों जानें ले लीं. ऐसा क्या है कि हैती में आने वाले भूकंप इतनी तबाही मचाते हैं?
तस्वीर: Joseph Odelyn/AP/dpa/picture alliance
विज्ञापन
हैती में शनिवार को आए भूकंप में सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों घायल हो गए. 11 साल पहले भी ऐसा ही एक भूकंप आया था जिसमें दसियों हजार लोग मारे गए थे. 2010 के उस भूकंप में एक लाख इमारतें क्षतिग्रस्त हुई थीं.
हैती में ऐसा क्या है कि वहां आने वाले भूकंप इतनी तबाही मचाते हैं. पेश है, एक पड़ताल...
क्यों आते हैं हैती में इतने भूकंप?
पृथ्वी की अंदरूनी परत में एक टेक्टॉनिक प्लेट के ऊपर दूसरी रखी होती है. ये प्लेट हिलती डुलती या खिसकती रहती हैं और उसे ही भूकंप कहते हैं. हैती जहां है, वहां दो प्लेट एक दूसरे से मिलती हैं. नॉर्थ अमेरिकी प्लेट और कैरेबियाई प्लेट के सिरे के ठीक ऊपर हैती है.
हैती और डॉमिनिकन रिपब्किल के साझे द्वीप हिस्पैन्योला के ठीक नीचे कई दरारें हैं. हर दरार का व्यवहार अलग होता है. अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के शोधकर्ता रिच ब्रिग्स बताते हैं, "हिस्पैन्योला के ठीक नीचे दो प्लेट एक दूसरे से टकराती हुई गुजरती हैं. यह वैसा ही है जैसे शीशे के स्लाइडिंग डोर की ट्रैक में पत्थर फंस जाए. फिर उसका आना जाना ऊबड़ खाबड़ हो जाएगा.”
विज्ञापन
अब भूकंप क्यों आया?
शनिवार को जो भूकंप आया था, उसकी तीव्रता 7.2 आंकी गई थी. माना जा रहा है कि यह एनरिकीलो-प्लैन्टेन दरार के करीब हुई हलचल की वजह से आया. अमेरिकी भूगर्भीय सर्वेक्षण संस्थान (USGS) के मुताबिक यह दरार हैरती के दक्षिण-पश्चिम में टिबरोन प्रायद्वीप के नीचे से गुजरती है.
इसी जगह 2010 का भयानक भूकंप आया था. और अनुमान है कि 1751 और 1860 के बीच कम से कम तीन भूकंप इसी दरार के कारण आए थे. उनमें से दो ऐसे थे जिन्होंने राजदानी पोर्ट ओ प्राँ को तहस नहस कर दिया था.
इतने विनाशकारी क्यों होते हैं हैती के भूकंप?
इसकी कई वजह हैं. सबसे पहली बात तो यह कि हैती के नीचे सक्रियता बहुत ज्यादा है. फिर वहां, आबादी का घनत्व भी काफी है. देश में एक करोड़ दस लाख से ज्यादा लोग रहते हैं. वहां की इमारतों को चक्रवातीय तूफानों को झेलने लायक तो बनाया जाता है लेकिन वे भूकंप रोधी नहीं होतीं.
हैती की इमारतें कंक्रीट की बनाई जाती हैं जो तेज हवाओं को झेल सकती हैं लेकिन जब धरती हिलती है तो उनके गिरने का, उनके गिरने की वजह से विनाश का खतरा ज्यादा होता है.
तस्वीरों मेंः गैंगवार में फंसी महिलाएं
हैती में गैंगवार की कीमत चुकातीं महिलाएं और बच्चे
यूनिसेफ की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक हैती की राजधानी पोर्ट ओ प्रिंस में हथियारबंद गुटों में हिंसक झड़पों के बाद से 8,500 महिलाओं और बच्चों को मजबूरन अपना घर छोड़ना पड़ा है. आखिर हैती में संकट की वजह क्या है, जानिए.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. N. Chery
पोर्ट ओ प्रिंस में गैंगवार
राजधानी में पिछले दो हफ्तों से जारी गैंगवार की वजह से करीब साढ़े आठ हजार महिलाओं और बच्चों को अपना घर छोड़ सुरक्षित स्थानों पर जाना पड़ा है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) के मुताबिक पोर्ट ओ प्रिंस में इलाकों के कब्जे को लेकर छिड़ी लड़ाई के कारण सैकड़ों परिवारों को जला दिए या नष्ट किए गए घरों को छोड़ना पड़ा है.
तस्वीर: Estailove ST-Val/REUTERS
संघर्ष के साथ जी रहे लोग
जिन लोगों ने अपना घर छोड़ दिया है वे अस्थायी शिविरों में रह रहे हैं, जहां मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. शिविरों में साफ पानी, खाना और कंबल का संकट है. संयुक्त राष्ट्र की बाल एजेंसी के लिए हैती के प्रतिनिधि ब्रूनो माएस के मुताबिक, ''लड़ाई में हजारों बच्चे और महिलाएं फंस गई हैं.''
तस्वीर: Luis Acosta/AFP/Getty Images
नौ महीने, 14,000 विस्थापन
यूएन की इस रिपोर्ट के मुताबिक पोर्ट ओ प्रिंस में जारी हिंसा की वजह से नौ महीनों में 14,000 के करीब लोग विस्थापित हुए हैं. छोटे बच्चों के साथ परिवार को जमीन पर सोना पड़ रहा है. उनके साथ कुछ जरूरी सामान ही है.
तस्वीर: Yuri Cortez/AFP
2018 से 12 नरसंहार
हैती के राष्ट्रीय मानवाधिकार रक्षा नेटवर्क के निदेशक पियरे एस्पेरोयोंस के मुताबिक हथियारबंद गिरोह देश के लगभग 60 प्रतिशत हिस्से को नियंत्रित करते हैं. क्षेत्र में 2018 के बाद से 12 नरसंहारों की सूचना मिली है. हालांकि, उन्होंने कहा कि वह विशेष रूप से हिंसा में सबसे हालिया उछाल के बारे में चिंतित हैं.
तस्वीर: Reuters/A. Martinez Casares
हर दिन बिगड़ती स्थिति
इलाके से हर रोज हिंसा की रिपोर्ट्स आ रही हैं. गैंग्स काफी शक्तिशाली हैं और वे हिंसक वारदात को अंजाम दे रहे हैं. एस्पेरोयोंस के मुताबिक आने वाले दिनों में स्थिति और बिगड़ने वाली है.
पिछले हफ्ते हैती राष्ट्रीय पुलिस के महानिदेशक ने लोगों से हथियारबंद गिरोहों के खिलाफ एकजुट होने की अपील की थी. उन्होंने कहा था, ''सभी क्षेत्रों के सहयोग का समय आ गया है.''
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/D. N. Chery
कोरोना महामारी के बीच हिंसा से बढ़ी चिंता
हैती कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच इस नई चुनौती से जूझ रहा है. अधिकारियों का कहना है कि लोग चिकित्सा सहायता के लिए अपने घरों से इस डर से बाहर नहीं जा रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि वे गोलीबारी के शिकार हो जाएंगे.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Michel Jean
7 तस्वीरें1 | 7
2010 में भूकंप का केंद्र पोर्ट ओ प्राँ के नजदीक था और उसने भयानक तबाही मचाई थी. हैती की सरकार ने मरने वालों की संख्या तीन लाख बताई थी जबकि अमेरिकी सरकार की एक रिपोर्ट में 46 हजार से 85 हजार के बीच लोगों के मरने की बात कही गई थी.
इनकॉरपोरेटेडे रीसर्च इंस्टिट्यूशंस फॉर सीस्मोलॉजी में जियोलॉजिस्ट वेंडी बोहोन कहती हैं, "एक बात हमें समझनी चाहिए कि कुदरती आपदा कुछ नहीं होती. यह एक कुदरती घटना है जिसे आपकी व्यवस्था संभाल नहीं पाती.”
क्या भविष्य में भी ऐसा होगा?
भूगर्भ विज्ञानी कहते हैं कि भूकंप का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता. यूएसजीएस के गैविन हेज कहते हैं, "हम इतना जानते हैं कि ऐसा भूकंप अगली दरार में भी ऐसी ही हलचल पैदा कर सकता है. और ऐसी हलचल कम तैयार जगहों पर भारी तबाही मचा सकती है.”
संघर्ष करता हैती
05:01
This browser does not support the video element.
हैती में भूकंप-रोधी इमारतों का निर्माण एक चुनौती है. पश्चिमी गोलार्ध के इस सबसे गरीब देश के पास इतने संसाधन भी नहीं हैं. अभी तो देश पिछले भूकंप की तबाही से भी नहीं उबरा है. 2016 के चक्रवात मैथ्यू ने भी हैती को काफी नुकसान पहुंचाया था. फिर पिछले महीने देश के राष्ट्रपति की हत्या हो गई, जिससे वहां राजनीतिक कोलाहल भी मचा है.
नॉर्दन इलिनोई यूनिवर्सिटी में मानवविज्ञानी प्रोफेसर मार्क शूलर कहते हैं, "हैती में तकनीकी ज्ञान है. प्रशिक्षित आर्किटेक्ट हैं. नगरयोजना बनाने वाले हैं. वहां समस्या नहीं है. समस्या है धन की और राजनीतिक इच्छाशक्ति की.”
वीके/सीके (एपी)
तस्वीरेंः किन देशों पर पड़ रही है मौसम की मार
किन देशों को पड़ रही है मौसम की मार
बॉन में चल रहे जलवायु सम्मेलन के दौरान जर्मनी की गैरलाभकारी संस्था जर्मनवॉच ने ग्लोबल क्लाइमेट इंडेक्स, 2018 जारी किया. यह ऐसे देशों की सूची है जहां जलवायु परिवर्तन का असर सबसे अधिक रहा.
तस्वीर: Reuters/Jitendra Prakash
हैती
रिपोर्ट के मुताबिक हैती की अर्थव्यवस्था सितंबर 2016 के मैथ्यू और निकोल चक्रवात के चलते बुरी तरह प्रभावित हुई है.
तस्वीर: AFP/Getty Images/E. Santelices
जिम्बाब्वे
अल नीनो जैसी मौसमी दशाओं के चलते देश में सूखा पड़ा जिसके चलते कृषि को खासा नुकसान हुआ.
तस्वीर: Reuters/B. Stapelkamp
3. फिजी
सम्मलेन की अध्यक्षता कर रहे फिजी की अर्थव्यवस्था को भी जलवायु परिवर्तन का खामियाजा भुगतना पड़ा. चक्रवात विंस्टन के चलते यहां काफी तबाही मची
तस्वीर: NU-EHS/C. Corendra
श्रीलंका
बीते साल मई के रोआनू तूफान ने देश की तटीय क्षेत्रों को बहुत अधिक प्रभावित किया. जिसके चलते बड़े हिस्से सूखाग्रस्त भी रहे
तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Wanniarachchi
वियतनाम
वियतनाम में साल 2016 में सूखा पड़ा, जिसे पिछले 100 सालों का सबसे भयंकर सूखा कहा गया.
तस्वीर: Getty Images/AFP
भारत
भारत में 2 हजार लोग प्राकृतिक आपदाओं के चलते मारे गये. साथ ही दक्षिणी भारत में चेन्नई के निकट आये चक्रवात वर्धा ने बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित किया.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Rout
ताइवान
ताइवान में जोरदार ठंड के चलते 85 लोगों की मौत हो गयी. साल 2016 में इस क्षेत्र में यहां 6 टायफून आये थे.
तस्वीर: Getty Images/B.H.C.Kwok
रिपब्लिक ऑफ मैसेडोनिया
साल 2016 के दौरान मैसेडोनिया में तापमान -20 डिग्री तक कम हो गया. यहां बाढ़ ने भी काफी लोगों को प्रभावित किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/G. Licovski
बोल्विया
साल 2016 में बोलिविया की राजधानी ला पेज में जबरदस्त सूखा पड़ा. साथ ही भूस्खलन ने लोगों को सीधे तौर पर प्रभावित किया.
तस्वीर: AP
अमेरिका
अमेरिका के उत्तरी और दक्षिणी कैरोलाइना में बाढ़ और तूफान में कई जानें गयी. पिछले कुछ समय से अमेरिका में जलवायु परिवर्तन का असर सीधे तौर पर नजर आ रहा है.