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एक प्रोफेसर की मौत: उसने सीमा क्यों लांघी?

८ मई २०१८

उसके पास डॉक्टरेट की डिग्री थी. विश्वविद्यालय में संविदा पर पढ़ाने का काम था, एक शानदार भविष्य उसके सामने खड़ा उसका इंतजार कर था. उसने जिस लड़की से शादी की थी, उसकी उम्र मुश्किल से बीस साल होगी.

Indien Kaschmir Unruhen
तस्वीर: Reuters/D. Ismail

यह है वह सवाल, जिससे जम्मू एवं कश्मीर के समाजशास्त्री और राजनेता जूझ रहे हैं. कश्मीर के लोग 33 साल के असिस्टेंट प्रोफेसर मुहम्मद रफी भट की मौत को समझ नहीं पा रहे हैं. शोपियां जिले में रविवार को आतंकवादियों से सुरक्षाबलों की मुठभेड़ में रफी का मारा जाना तर्क की कसौटी पर खरा नहीं उतर पा रहा है.

उसके समाजशास्त्र विभाग के विद्यार्थी बता रहे हैं कि "वह बेहद नरमी से बोलने वाले, विनम्र और हमेशा दूसरों की मदद के लिए तैयार रहते थे." विद्यार्थियों का कहना है कि कॉलेज में बीते 18 महीने में उनके टीचर ने कभी भी, एक भी क्लास मिस नहीं की.

तस्वीर: Reuters/D. Ismail

कश्मीर में ऐसे कितने ही युवा हुए हैं जो हिंसा की धारा में बह गए. लेकिन, एक समाजशास्त्री ने अपना नाम नहीं बताने की शर्त पर कहा, "यह तो उस समाजशास्त्री का मामला है जिसके बारे में अनुमान लगाया जा सकता है कि वह उस समाज के विविध पहलुओं को अच्छी तरह से समझता रहा होगा जिसमें वह रहता था."

उनका कहना है कि फिर भी यह हुआ है और इसका होना बता रहा है कि जिस समाज में हम रह रहे हैं, उसमें कुछ तो गड़बड़ है. भट का ताल्लुक उत्तरी कश्मीर के चुंदुना गांव के एक गरीब परिवार से था. पढ़ाई करना और आगे बढ़ते हुए डॉक्ट्रेट हासिल करना आसान नहीं था. अपनी पीएचडी पूरी करने के दौरान किताबों और जर्नल के पैसे जमा करने के लिए उसने राज्य के भेड़ विकास विभाग में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की नौकरी भी की थी.

करीब 18 साल पहले उसने आतंकवादियों का हाथ थामने की कोशिश की थी लेकिन सुरक्षाकर्मियों ने उसे रोक लिया था. यह तब की बात है जब वह दिशा की तलाश में लगा एक किशोर था. लेकिन, बचपन की इस गलती को आखिर जवानी में दोहराने की क्या वजह रही?

राज्य में सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के वरिष्ठ नेता नईम अख्तर ने कहा, "समाज विज्ञानी एक डॉक्टर की तरह होता है जिसके पास विद्यार्थियों और अन्य लोगों को इस उम्मीद के साथ लेकर जाते हैं कि वह सामाजिक तनावों की तार्किक व्याख्या करे और समाज का माहौल अच्छा बनाने में मददगार बने." उन्होंने कहा कि इसके बावजूद अगर ऐसा व्यक्ति ऐसी मौत चुनता है जैसी भट ने चुनी तो फिर हम सभी को समझने की जरूरत है कि हम किधर जा रहे हैं.

तस्वीर: Getty Images/AFP

भट बीती शुक्रवार को लापता हो गया था और आतंकवादियों से हाथ मिलाने के दो दिन के अंदर ही मारा गया. आतंकियों की तरफ जाने से कुछ ही दिन पहले उसने अपनी कार बेच दी थी. शुक्रवार को अपनी मां को किए गए आखिरी फोन में उसने कहा था कि वह घर लौटेगा और पूछा था कि उन्हें शहर से कुछ मंगाना तो नहीं है. उसने अपनी मां से कहा था कि अगर उसे आने में देर हो जाए तो परेशान मत होना.

शोपियां जिले के बडिगाम गांव में हिजबुल कमांडर सद्दाम पद्दार व तीन अन्य आतंकियों के साथ वह एक घर में था जब सुरक्षा बलों से मुठभेड़ हुई. गोलियां चल रही थीं, उस वक्त उसने अपनी जिंदगी का आखिरी फोन अपने पिता को किया.उसने अपने पिता से कहा, "आपको कभी कोई तकलीफ पहुंचाई हो तो मुझे माफ कर दीजिएगा. मैं अल्लाह के पास जा रहा हूं." इसके बाद फोन कट गया.

उसकी मौत ने कश्मीर को एक ऐसी सच्चाई से रू-ब-रू कराया है जो पहेली जैसी भी है और परेशान करने वाली भी है और जिसका कोई सीधा आसान सा जवाब कहीं से आता दिख नहीं रहा है.

शेख कयूम (आईएएनएस)

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