एक बच्चे की नीति खत्म करेगा चीन
१५ नवम्बर २०१३सत्ताधारी कम्युनिस्ट पार्टी ने इसके संकेत दिए हैं. पार्टी ने इसके अलावा "लेबर कैंपों से दोबारा शिक्षा" के अपने विवादित कार्यक्रम को भी खत्म करने का फैसला किया है. नए नेता शी जिनपिंग की अगुवाई में अगले एक दशक में चीन की छवि इन आर्थिक और सामाजिक बदलाव के जरिए बदलने की योजना तैयार की जा रही है.
सरकारी दस्तावेजों में कहा गया है कि अगर मां या बाप में से कोई इकलौता है, तो वह खुद एक से ज्यादा बच्चे पैदा कर सकता है. लेकिन इसकी शर्त यह भी है कि उनकी पहली संतान एक लड़की होनी चाहिए. हालांकि सरकार ने यह भी कहा कि 1978 में एक बच्चे की जो नीति लागू की गई, उससे देश की जनसंख्या वृद्धि रोकने में काफी मदद मिली.
गलत हथकंडे अपनाए
हालांकि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इसे लागू करने के लिए कई गलत हथकंडे भी अपनाए गए और महिलाओं का जबरदस्ती गर्भपात भी कराया गया. लोगों पर भारी जुर्माना किया गया. आलोचकों का कहना है कि इसकी वजह से चीन में लैंगिक अनुपात भी बहुत गड़बड़ाया. पिछले साल यानी 2012 में हर 100 लड़कियों पर 118 लड़कों का जन्म हुआ. इसके अलावा महिला भ्रूण हत्या की खबरें भी आती रहीं.
इससे पहले जनगणना अधिकारियों ने चेतावनी दी थी कि चीन में काम करने वाली आबादी घटनी शुरू हो गई है और इसमें लगभग 34 लाख लोगों की कमी आई है.
चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने लिखा, "जन्म नीति को धीरे धीरे इस हिसाब से दुरुस्त किया जाएगा कि लंबे वक्त में चीन की आबादी में संतुलन आए." मौजूदा कानून के तहत ज्यादार दंपतियों को एक से ज्यादा बच्चे पैदा करने की अनुमति नहीं है, हालांकि कुछ लोगों को छूट मिली हुई है.
बीजिंग में कोलंबिया ग्लोबल सेंटर के सेहत विशेषज्ञ योआन काउफमन का कहना है कि इस बदलाव का लंबे वक्त से इंतजार था, "चीन में ज्यादा आबादी की चिंता अब नहीं है. दंपतियों के बच्चों की संख्या कम हो रही है. वे अपनी जगह की भरपाई भी नहीं कर रहे हैं."
बंद होंगे पुलिस कैंप
पार्टी सम्मेलन में जिन बड़े बदलावों का फैसला किया गया, उसके तहत विवादित लेबर कैंपों को भी खत्म किए जाने की बात है. इस नियम के तहत पुलिस बिना मुकदमे के लोगों को सालों तक कैंप में काम करने की सजा दे सकती है. 'लाओजिआओ' नाम का यह कार्यक्रम काफी नापसंद किया जाता है और आरोप लगते रहे हैं कि इसकी वजह से भी चीन में मानवाधिकार हनन के मामले सामने आते रहे हैं.
यह सिस्टम 1957 में लागू हुआ था, जिसके तहत पुलिस का एक पैनल लोगों को अदालती मुकदमे के बगैर "शिक्षा" देता था. संयुक्त राष्ट्र की 2009 की एक रिपोर्ट का दावा है कि लगभग दो लाख चीनियों को ऐसी जगहों पर कैद करके रखा गया है. मानवाधिकार संगठनों ने बदलाव का स्वागत किया है लेकिन चेतावनी भी दी है कि यह देखना जरूरी है कि इसकी जगह कौन सा सिस्टम लागू किया जाएगा.
एजेए/एमजी (डीपीए, एएफपी)