असम की रहने वाली दिव्या उस दिन को बुरा सपना समझ कर भूल जाना चाहती हैं जिस दिन दिल्ली में एक "अच्छे घर के बेटे" ने उनकी इज्जत लूटी. लेकिन कई बार खुदकुशी की कोशिश कर चुकी दिव्या के लिए इस दुःस्वप्न को भुलाना आसान नहीं.
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दिव्या की जंग 2009 में शुरू हुई. उस दर्दनाक दिन को याद करते हुए वह बताती हैं, "मैं उससे फेसबुक पर मिली थी. कई हफ्तों तक वह कोशिश करता रहा कि मैं उससे मिलूं. फिर एक दिन मैंने हां कह ही दी." दिव्या ने रेस्त्रां में मिलने की बात की लेकिन लड़का घर पर ही मिलना चाहता था, "वह 24 साल का था, मुझे लगा मां बाप के साथ ही रहता होगा. वैसे भी काफी अच्छी जगह में रहने वाला, बड़े घर का लड़का था वह." दिव्या जब वहां पहुंची तो घर में लड़के के माता पिता तो नहीं दिखे, हां एक नौकर जरूर था. उसे भी लड़के ने कुछ लेने बाहर भेज दिया.
आज दिव्या मानती हैं कि उस वक्त वह नादान थीं क्योंकि उसके बाद जो हुआ, उसने दिव्या की जिंदगी बदल कर रख दी, "उसने मुझे पकड़ कर सोफे पर फैंक दिया और धमकाया कि अगर मैंने शोर मचाया तो वो पूरा दिन मेरे साथ बलात्कार करेगा." दिव्या बताती हैं कि उनके साथ बलात्कार के दौरान हर मुमकिन तरीका अपनाया गया, "मैं उस वक्त कुंवारी थी, इसलिए उसे जबरदस्ती करने में आधा घंटा लगा." यह कहते कहते दिव्या शून्य में खो सी जाती हैं, "बहुत खून बहा, मैं सुन हो गयी थी. फिर उसने मुझे कहा कि उसने इस सबका वीडियो बनाया है और अगर मैंने अपनी जबान खोली तो वो वीडियो लीक कर देगा."
टू फिंगर टेस्ट
डरी हुई दिव्या ने किसी से कुछ नहीं कहा. आज भी उस लम्हे को याद कर वह सहम जाती हैं, "मेरे मन में पहला ख्याल यही आया कि मेरे माता पिता, मेरे दोस्त, समाज मेरे बारे में क्या सोचेंगे." वह अपनी जुड़वां बहन से भी इस बात को छिपाने की कोशिश करती रही. लेकिन कुछ दिन बाद दिव्या ने हिम्मत जुटाई. बहन उसे पुलिस के पास ले गयी. वहां से उसे जांच के लिए अस्पताल भेजा गया. विवादास्पद 'टू फिंगर टेस्ट' कर बलात्कार की पुष्टि की गयी. दिव्या डॉक्टर की संवेदनहीनता को देख कर हैरान थी, "डॉक्टर ने कॉरिडोर के उस पार से आवाज लगाई, उस लड़की को लाओ जिसका रेप हुआ है."
जिस वक्त दिव्या का टेस्ट हुआ, ना केवल उसके जननांग पर चोट थी, बल्कि शरीर पर जगह जगह नील भी पड़े हुए थे. डॉक्टर ने यह सब रिपोर्ट में भी लिखा. लेकिन अदालत में जब यही रिपोर्ट पेश की गयी, तो डॉक्टर मुकर गयी. उसने कहा कि वह ऐसी किसी रिपोर्ट के बारे में नहीं जानती, "वह बिक चुकी थी."
शादी का प्रस्ताव
अदालत तक पहुंचना भी आसान नहीं था. जैसे जैसे खबर फैली आस पड़ोस के लोग दिव्या को अजीब सी नजरों से देखने लगे. हालात यहां तक पहुंच गए कि दिव्या और उनकी बहन को दिल्ली छोड़ कर जाना पड़ा. कुछ वक्त बाद जब वह दिल्ली लौटीं तो उन्होंने खुद को अकेला पाया, "मेरे दोस्तों ने मुझसे बात करना छोड़ दिया था, वे बलात्कार पीड़ित से संपर्क नहीं रखना चाहते थे."
जब मुकदमा शुरू हुआ तो दिव्या की जान पहचान वालों को धमकी भरे फोन आने लगे. इसके बाद अपराधी ने परिवार को पैसा दे कर चुप कराना चाहा. जब इससे भी बात नहीं बनी तो वकील ने अपराधी से शादी का प्रस्ताव रखा. जब दिव्या ने इससे भी इंकार कर दिया, तो वकील ने अदालत में यह साबित करना शुरू कर दिया कि दिव्या की स्वीकृति से ही संबंध बने. दिव्या बताती हैं कि वकील की दलील का अंदाज कुछ ऐसा होता था जैसे "इसका बलात्कार कौन करना चाहेगा?"
2011 में "सबूतों के अभाव" में दोषी को छोड़ दिया गया. लेकिन दिव्या ने अब भी हिम्मत नहीं हारी है. उनकी वकील रेबेका जॉन बिना पैसा लिए उनका मुकदमा लड़ रही है. रेबेका दिव्या जैसी और भी लड़कियों की मदद कर रही हैं. दिव्या मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने के लिए तैयार है. न्याय के इंतजार में भले ही उनके करीबी लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया, बुरे सपने अब भी उनके साथ हैं, "हां, बुरे सपने तो अब भी आते हैं, पर अब मैंने उनसे निपटना सीख लिया है."
क्यों होते हैं बलात्कार?
भारत में रोजाना औसतन 92 महिलाओं का बलात्कार होता है. जब भी किसी महिला के साथ यह जघन्य अपराध होता है, कभी सवाल उसके कपड़ों तो कभी देर रात घर से बाहर रहने पर उठाए जाते हैं. क्या महिलाओं पर बंदिशें लगाना ही है उपाय?
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तन ढकने की जरूरत
मानव सभ्यता की शुरुआत से ही मौसम की मार से बचने के लिए शरीर को ढकने की जरूरत महसूस की गई. बीतते समय के साथ जानवरों की छाल पहनने से लेकर आज इतने तरह के कपड़े मौजूद हैं. जीवनशैली के आसान होने के साथ साथ कपड़ों के ढंग भी बदले हैं और अब यह अवसर, माहौल, पसंद और फैशन के हिसाब से पहने जाते हैं. फिर पूरे बदन को ढकने वाले कपड़ों पर जोर क्यों?
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अंग प्रदर्शन यानि बलात्कारियों को न्यौता
भारत में बलात्कार के ज्यादातर मामलों में पाया गया है कि पीड़िता ने सलवार कमीज और साड़ी जैसे भारतीय कपड़े पहने हुए थे. उनपर हमला करने वाले पुरुषों ने अपनी सेक्स की भूख के कारण संतुलन खो दिया. ऑनर किलिंग के कई मामलों में किसी महिला को सबक सिखाने के मकसद से उस पर जबरन यौन हिंसा की गई और फिर जान से मार डाला गया. इन सबके बीच कपड़ों पर तो किसी का ध्यान नहीं गया.
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कानून का डर नहीं
संयुक्त राष्ट्र ने 2013 में एशिया प्रशांत क्षेत्र में किए अपने सर्वे में पाया गया कि सर्वे में शामिल हर चार में एक पुरुष ने अपने जीवन में कम से कम एक बार किसी महिला का बलात्कार किया है. इनमें से 72 से लेकर 97 फीसदी मामलों में इन पुरुषों को किसी कानूनी कार्यवाई का सामना नहीं करना पड़ा था.
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मनोरंजन का साधन हैं यौन अपराध
उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ इतने ज्यादा यौन अपराधों का कारण प्रदेश की पुलिस ने वहां मोबाइल फोनों के बढ़ते इस्तेमाल, पश्चिमी देशों के बुरे असर और छोटे कपड़ों को ठहराया. लोगों को सुरक्षा देने की अपनी जिम्मेदारी में पूरी तरह विफल पुलिस का कहना है कि मनोरंजन के बहुत कम साधन होने के कारण पुरुष यौन अपराधों को अंजाम देने लगते हैं.
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महिलाओं से मिल रही है चुनौती
सड़कों, ऑफिसों या किसी सार्वजनिक स्थान पर कई बार महिलाओं के कपड़े नहीं बल्कि उनके चेहरे से झलकता आत्मविश्वास, स्वच्छंद रवैया और अब तक पुरुषों के कब्जे में रहे कई क्षेत्रों में उनकी पहुंच कई पुरुषों को बौखला रही है. सदियों से स्थापित पुरुषसत्तात्मक समाज के समर्थक ऐसी औरतों को सामाजिक संतुलन को बिगाड़ने का जिम्मेदार मानते हैं और यौन हिंसा कर उन्हें समाज में उनकी सही जगह दिखाने की कोशिश करते हैं.
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महिलाओं को ज्यादा बड़ा खतरा किससे
दुनिया के सबसे युवा देश में आज बलात्कार महिलाओं के खिलाफ चौथा सबसे बड़ा अपराध बन चुका है. नेशनल क्राइम ब्यूरो की 2013 रिपोर्ट बताती है कि साल दर साल दर्ज होने वाले इन करीब 98 फीसदी मामलों में बलात्कारी पीड़ित का जानने वाला था. ज्यादातर मामले जो प्रकाश में आते हैं वे सार्वजनिक जगहों पर अनजान लोगों द्वारा किए गए होते हैं जिस कारण इस सच्चाई पर ध्यान नहीं जाता.
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एक कदम आगे, दो कदम पीछे
एक ओर पहले के मुकाबले ज्यादा लड़कियां पढ़लिख रही हैं और कार्यक्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं. दूसरी ओर इस कारण वे शादी और बच्चे देर से पैदा कर रही हैं. भारत में शादी के पहले शारीरिक संबंध बनाने के मामले समाज के लिए असहनीय और खतरा बताए जाते हैं. इस कारण बहुत से युवा पुरुष को अपनी यौन इच्छा पूरी करने का कोई स्वस्थ तरीका नहीं मिलता और कई बार यही यौन हिंसा का कारण बनता है.
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हिंसा का चक्र गर्भ से ही शुरु
भारत में अजन्मे बच्चे की लिंग जांच कर मादा भ्रूण को गर्भ में ही मार देने की घटनाएं आम हैं. जो लड़कियां जन्म ले पाती हैं वे संख्या में इतनी कम हैं कि समाज का संतुलन बिगड़ गया है. स्त्री-पुरुष अनुपात के मामले में भारत 1970 से भी नीचे आ गया है. इसके अलावा बाल विवाह, कम उम्र में मां बनना, प्रसव से जुड़ी मौतें और घरेलू हिंसा के लिए भी क्या छोटे कपड़ों को ही जिम्मेदार मानेंगे.