अंतरराष्ट्रीय मेडिकल चैरिटी संस्था डॉक्टर विदआउट बॉर्डर (एमएसएफ) का कहना है कि म्यांमार में हिंसा भड़कने के एक महीने के भीतर 6,700 रोहिंग्या लोग मारे गए.
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म्यांमार में 25 अगस्त को सेना ने रोहिंग्या विद्रोहियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी. इसके बाद वहां से लाखों लोग भाग कर बांग्लादेश पहुंचे. संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने म्यांमार की कार्रवाई को जातीय सफाये का नाम दिया है. लेकिन उन्होंने ऐसा कोई आंकड़ा जारी नहीं किया कि इस दौरान कितने लोग मारे गए.
लेकिन गुरुवार को एमएसएफ ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा, "कम से कम भी मानकर चलें तो 6,700 लोगों के मारे जाने का अनुमान है जिनमें 730 ऐसे बच्चे भी शामिल हैं जिनकी उम्र पांच साल से कम है." संस्था ने यह आंकड़ा छह सर्वेक्षणों के नतीजों के आधार पर जारी किया है जिनके दौरान एक महीने के भीतर विभिन्न रोहिंग्या शरणार्थी शिविरों में 2,434 परिवारों से बात की गयी.
रोहिंग्या: ये घाव अपनी कहानी खुद कहते हैं..
म्यांमार में सेना की कार्रवाई से बचने के लिए लाखों रोहिंग्या भागकर बांग्लादेश पहुंचे हैं. इनमें से कई लोगों के शरीर के निशान उन पर हुए जुल्मों की गवाही देते हैं. समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने कुछ ऐसे ही लोगों की फोटो खींची.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
शाहिद, एक साल
पट्टियों में लिपटी एक साल के नन्हे शाहिद की टांगें. यह तस्वीर दिमाग में जितनी जिज्ञासा पैदा करती है, उससे कहीं ज्यादा त्रासदी को दर्शाती है. शाहिद की दादी म्यांमार के सैनिकों से बचकर भाग रही थी कि बच्चा गोद से गिर गया. यह तस्वीर कॉक्स बाजार में रेड क्रॉस के एक अस्पताल में ली गयी. (आगे की तस्वीरें आपको विचलित कर सकती हैं.)
तस्वीर: Reuters/H. McKay
कालाबारो, 50 साल
50 साल की कालाबारो म्यांमार के रखाइन प्रांत के मुंगदूत गांव में रहती थी. गांव में म्यांमार के सैनिकों ने आग लगा दी. सब कुछ भस्म हो गया है. कालाबारो के पति, बेटी और एक बेटा मारे गये. कालाबारो घंटों तक मरने का बहाना बनाकर लेटी ना रहती तो वह भी नहीं बचती. लेकिन अपना दाया पैर वह न बचा सकी.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
सितारा बेगम, 12 साल
ये पैर 12 साल की सितारा बेगम के हैं. जब सैनिकों ने उसके घर में आग लगायी तो उसके आठ भाई बहन तो घर से निकल गये, लेकिन वह फंस गयी. बाद में उसे निकाला गया, लेकिन दोनों पैर झुलस गये. बांग्लादेश में आने के बाद उसका इलाज हुआ. वह ठीक तो हो गयी लेकिन पैरों में उंगलियां नहीं बचीं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
नूर कमाल, 17 साल
17 साल के नूर कमाल के सिर पर ये घाव हिंसा की गवाही देते हैं. वह अपने घर में छिपा था कि सैनिक आए, उसे बाहर निकाला और फिर चाकू से उसके सिर पर हमला किया गया. सिर में लगी चोटें ठीक हो गयी हैं, लेकिन उसके निशान शायद ही कभी जाएं.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
अनवारा बेगम, 36 साल
अपने घर में सो रही 36 वर्षीय अनवारा बेगम की जब आंख खुली तो आग लगी हुई थी. जलती हुई एक चिंगारी ऊपर गिरी और नाइलोन का कपड़ा उनके हाथों से चिपक गया. वह कहती हैं, "मुझे तो लगा कि मैं बचूगीं नहीं, लेकिन अपने बच्चों की खातिर जीने की कोशिश कर रही हूं."
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मुमताज बेगम, 30 साल
30 साल की मुमताज बेगम के घर में घुसे सैनिकों ने उससे कीमती सामान लेने को कहा. जब मुमताज ने अपनी गरीबी का हाल बताया तो सैनिकों ने कहा, "पैसा नहीं है तो हम तुम्हें मार देंगे." और घर में आग लगा दी. उसके तीन बेटे मारे गये और उसे लहुलुहान कर दिया गया.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
इमाम हुसैन, 42 साल
इमाम हुसैन की उम्र 42 साल है. एक मदरसे में जाते वक्त हुसैन पर तीन लोगों ने हमला किया. इसके अगले ही दिन उसने अपने दो बच्चों और पत्नी को गांव के अन्य लोगों के साथ बांग्लादेश भेज दिया. इसके बाद वह भी इस हालात में कॉक्स बाजार पहुंचा.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
मोहम्मद जुबैर, 21 साल
21 साल के मोहम्मद जुबैर के शरीर की यह हालात उसके गांव में एक धमाके का कारण हुई. जुबैर का कहना है, "कुछ हफ्तों तक मुझे कुछ दिखायी ही नहीं देता था." बांग्लादेश पहुंचने के बाद कॉक्स बाजार के एक अस्पताल में उसका 23 दिनों तक इलाज चला.
तस्वीर: Reuters/J. Silva
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एमएसएफ की मेडिकल डायेक्टर सिडनी वांग ने कहा, "हमने हिंसा के पीड़ितों से म्यांमार में बात की जो अब बांग्लादेश में भीड़भाड़ वाले और गंदे शिविरों में रह रहे हैं."
रोहिंग्या संकट आज दुनिया के सबसे जटिल शरणार्थी संकटों में से एक बन गया है. म्यांमार से बांग्लादेश पहुंचे लोग भयानक कहानियां सुनाते हैं. उनका आरोप है कि म्यांमार की सेना ने उनके सैकड़ों गांवों को राख के ढेर में तब्दील कर दिया. म्यांमार की सेना पर हत्या, बलात्कार और आगजनी के आरोप लगते हैं.
वहीं म्यांमार की सेना का कहना है कि वह कट्टरपंथियों के चलते पैदा खतरों से निपट रही है. म्यांमार रोहिंग्या लोगों को अपना नागरिक नहीं मानता. दशकों से म्यांमार में रह रहे इन लोगों के पास किसी देश की नागरिकता नहीं है.