"लेखक मुरुगन मर गया"
१५ जनवरी २०१५पेरुमल मुरुगन के फैसले पर रोष है क्योंकि लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए खतरा मान रहे हैं. मुरुगन ने यह फैसला अपनी एक किताब के खिलाफ पिछले कई दिनों से हो रहे विरोध प्रदर्शनों के बाद लिया है. उनका नया उपन्यास मोधोरुबागन या एक हिस्सा औरत एक संतानहीन दंपत्ति और स्थानीय परंपरा के अनुसार महिला की अनजाने मर्द के साथ गर्भवती होने की कोशिशों के बारे में है. हिंदू राष्ट्रवादी गुटों ने इस किताब के किलाफ उस शहर में सड़कों पर प्रदर्शन किए हैं जहां मुरुगन रहते हैं. यह उपन्यास 2010 में ही तमिल में छपा था लेकिन 2013 में अंग्रेजी में प्रकाशित हुआ.
पेरुमल मुरुगन ने लेखन छोड़ने की घोषणा करते हुए कहा कि वे अपनी किताबों को वापस ले रहे हैं. उन्होंने प्रकाशक और पुस्तक विक्रेताओं को नुकसान की भरपाई करने का आश्वासन दिया. इस बीच स्थानीय प्रशासन और विरोध कर रहे गुटों द्वारा किताब के कुछ हिस्सों को हटाने की मांग के बाद मुरुगन का उपन्यास दुकानों से हटाया जा रहा है. उपन्यास का विरोध करने वालों का कहना है कि उपन्यास के कुछ हिस्से अपमानजनक हैं. उग्र प्रदर्शनों के कारण मुरुगन मंगलवार से ही भूमिगत हो गए हैं. प्रकाशक कन्नान सुंदरम ने कहा है कि उन्हें पिछले महीने से धमकी भरे फोन कॉल मिल रहे थे.
मुरुगन की न लिखने की घोषणा पर भारत के सांस्कृतिक जगत में हंगामा हो रहा है. प्रसिद्ध इतिहासकार रामचंद्रगुहा ने अपने ट्वीट में इसे तमिलनाडु और भारत के लिए उदासी का दिन बताया है.
महाराष्ट्र के वरिष्ठ पत्रकार निखिल वागले ने लिखा है
और साहित्य आलोचक नीलंजना रॉय की राय है
यह पहला मौका नहीं है जब अनुदारवादी हिंदू संगठनों ने किसी लेखक को चुप करवाने या किताब पर प्रतिबंध लगवाने की कोशिश की है. पिछले साल पेंग्विन इंडिया ने इतिहासकार वेंडी डोनिगर की हिंदुत्व पर किताब को धार्मिक गुटों के विरोध के बाद नष्ट कर दिया था. 2011 में गुजरात सरकार ने महात्मा गांधी पर जोसेफ लेवीवेल्ड की किताब पर रोक लगा दी थी. किताब पर हुए रिव्यू में संकेत दिया गया था कि गांधीजी के समलैंगिक संबंध थे.
एमजे/आईबी (एपी)