यूएन रिफ्यूजी एजेंसी के अनुसार अपने देशों में उत्पीड़न और हिंसक संघर्ष से भाग कर केवल एक साल में ही करीब 6.53 करोड़ विस्थापित हुए हैं. साल 2015 के यह आंकड़े विस्थापितों का नया रिकॉर्ड हैं.
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सीरिया और अफगानिस्तान के संकटपूर्ण हालात ने 2015 में रिफ्यूजी और आंतरिक विस्थापन के शिकार हुए लोगों की तादाद में रिकॉर्ड इजाफा किया है. एक साल पहले 2014 में 6 करोड़ विस्थापितों के साथ दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे अधिक लोग प्रभावित हुए थे. साल 2015 के आखिर तक दर्ज हुए आंकड़े उसके भी पार पहुंच गए. यूएनएचसीआर ने अपनी ग्लोबल ट्रेंड्स रिपोर्ट में बताया है कि 2015 में कुल 6.53 करोड़ लोग विस्थापित हुए.
यूएन एजेंसी ने बताया कि पिछले साल हर मिनट औसतन 24 लोग विस्थापित हुए यानि हर दिन करीब 34,000 लोग. ठीक दस साल पहले 2005 में यह आंकड़ा हर मिनट केवल 6 लोगों का था. 2011 में सीरिया युद्ध शुरु होने के समय से ही वैश्विक विस्थापन में 50 फीसदी बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है. आधे से ज्यादा रिफ्यूजी केवल तीन देशों सीरिया, अफगानिस्तान और सोमालिया के हैं.
कहां से आ रहे हैं शरणार्थी
यूरोप को अप्रत्याशित संख्या में आ रहे शरणार्थियों के व्यवस्थित पंजीकरण में कामयाबी नहीं मिली है. जर्मनी द्वारा सितबंर में शरणार्थियों के लिए सीमा खोलने से पहले अगस्त तक करीब छह लाख लोगों ने ईयू में शरण का आवेदन दिया.
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1. सीरिया
यूरोपीय सांख्यिकी दफ्तर के अनुसार सबसे ज्यादा शरणार्थी सीरिया से हैं. इस साल सीरिया के करीब सवा लाख लोगों ने शरण का आवेदन दिया है जो कुल आवेदन का 20 फीसदी है.
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2. कोसोवो
दूसरे नंबर पर सर्बिया से अलग होकर देश बनने वाला कोसोवो हैं जहां से करीब 66 हजार लोगों ने शरण का आवेदन दिया है. वे आर्थिक मुश्किलों की वजह से यूरोपीय देशों में बसना चाहते हैं.
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3. अफगानिस्तान
पिछले साल पश्चिमी सेनाओं की वापसी के बाद अफगानिस्तान में सुरक्षा की स्थिति बिगड़ी है और शरणार्थियों की संख्या बढ़ी है. इस साल करीब 63 हजार लोग यूरोप में शरण का आवेदन दे चुके हैं.
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4. अलबानिया
यूरोपीय देशों में शरण चाहने वालों में चौथे नंबर पर अलबानिया के लोग हैं जहां के करीब 43 हडार लोगों ने आवेदन दिया है. अलबानिया के लोग भी आर्थिक मुश्किलों से भाग रहे हैं.
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5. इराक
जिन देशों के लोगों को शरण मिलने की सबसे ज्यादा संभावना है उनमें सीरिया और एरिट्रिया के अलावा इराक भी है. इराक के करीब 34 हजार लोगों ने शरण के लिए आवेदन दिया है.
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6. एरिट्रिया
अफ्रीकी देश एरिट्रिया के करीब 27 हजार लोग यूरोपीय संघ के देशों में शरण लेना चाहते हैं. वे बेहतर जिंदगी की चाह में भूमध्य सागर के रास्ते जान की बाजी लगाकर यूरोप पहुंचने की कोशिश करते हैं.
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7. सर्बिया
कभी सर्बिया की वजह से शरणार्थी यूरोप आ रहे थे. अब सर्बिया के लोग भी ईयू में अपना भविष्य संवारना चाहते हैं. और रास्ता नहीं होने के कारण करीब 22 हजार लोगों ने शरण पाने के लिए आवेदन दिया है.
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8. पाकिस्तान
आतंकवाद और पिछड़ेपन में उलझे पाकिस्तान के बहुत से लोगों के लिए भी देश से भागना बेहतर जिंदगी का एकमात्र रास्ता है. शरण के आवेदकों में करीब 20 हजार पाकिस्तान से हैं.
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9. सोमालिया
यूरोप आने वाले शरणार्थियों में चोटी के दस देशों में सोमालिया भी शामिल है. सोमालिया जहां सरकार का तंत्र पूरी तरह खत्म हो चुका है, वहां से 13 हजार लोगों ने शरण पाने के लिए आवेदन दिया है.
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10. यूक्रेन
यूरोप में गृहयुद्ध झेल रहा यूक्रेन भी लोगों के भागने की समस्या से जूझ रहा है. वहां से भी करीब 13 हजार लोगों ने यूरोपीय संघ में शरण पाने की इच्छा जताई है.
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रिपोर्ट की एक और बेहद चिंताजनक बात यह रही कि 2015 के कुल विस्थापितों में आधे से अधिक बच्चे थे. इनमें से कई अपने अभिभावकों से बिछड़ चुके थे. ऐसे 98,400 अकेले बच्चों का शरण लेने के लिए अनुरोध दर्ज हुआ है.
जेनेवा स्थित यूएन संस्था ने यूरोप समेत विश्व भर के नेताओं से दुनिया के कई इलाकों में जारी युद्ध रोकने की कोशिश करने को कहा है. यूएन हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजी फिलिपो ग्रांडी ने कहा, "मुझे आशा है कि जबरन विस्थापन से प्रभावित लोगों का संदेश नेताओं तक पहुंचे. हमें तुरंत कार्रवाई चाहिए, संघर्षों को रोकने के लिए फौरी राजनीतिक कार्रवाई." ग्रांडी ने साफ किया कि विस्थापित अपने साथ जो संदेश लेकर आ रहे हैं वो यह है कि "अगर आप समस्याएं नहीं सुलझाते, तो समस्याएं आप तक पहुंच जाएंगी."
25 लाख लोगों के साथ लगातार दूसरे साल तुर्की में सबसे अधिक रिफ्यूजियों को शरण मिली. इसके बाद पाकिस्तान और लेबनान दूसरे और तीसरे नंबर पर रहे. 4.08 करोड़ लोग अपने ही देश में आंतरिक विस्थापन के शिकार हुए. पिछले एक साल में केवल यूरोप में ही 10 लाख लोग पहुंचे, जिससे ईयू में राजनीतिक संकट की स्थिति पैदा हो गई. कई यूरोपीय देशों ने अपनी सीमा पर बाड़ें लगवा दीं और बाहर से आए लोगों की अबाध आवाजाही पर नियंत्रण करने की कोशिशें कीं. यूएन एजेंसी के प्रमुख ग्रांडी का कहना है कि ऐसी यूरोपीय नीतियों से दुनिया भर में एक गलत उदाहरण पेश हो रहा है.
कैसा है शरणार्थियों का रमजान
दुनिया भर के मुसलमानों के लिए रमजान का महीना श्रद्धा और त्याग का संदेश लेकर आता है. संकटग्रस्त देशों सीरिया, इराक और अफगानिस्तान के कई मुसलमान अपने दिन रिफ्यूजी कैंपों में बिताने को मजबूर हैं.
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प्रार्थना का महीना
अपने परिवार के टेंट के बाहर बैठी अफगानिस्तान की फरीदा इफ्तार के पहले के घंटे अपनी छोटी सी कुरान पढ़ते हुए बिताती है. सूर्य के उगने और अस्त होने के बीच रोजे रखने वाले मुसलमान खाना-पानी कुछ भी नहीं लेते. एथेंस के बाहर रित्सोना में बसे शिविर में करीब 800 लोग रह रहे हैं.
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पैकेट तैयार करते
श्टेफनी पोप (बाएं) इको 100 नाम की संस्था से जुडी स्वयंसेवी हैं. उनकी संस्था रिफ्यूजियों की मदद के लिए काम करती है. साथ में सुलेमान इनिड दमिश्क से आए एक रिफ्यूजी हैं. दोनों मिलकर खजूर से भरे करीब 150 बैग तैयार कर रहे हैं, पानी के साथ इन्हें खाकर पारंपरिक रूप से रोजा तोड़ा जाता है.
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दान का सरप्राइज
सीरिया के दो लड़के संयुक्त अरब अमीरात के दूतावास से भेजी गई भेंट लेते हुए. रित्सोना शरणार्थी कैंप में किसी को इसकी उम्मीद नहीं थी कि तभी वहां 100 किलो सूखे खजूर पहुंचे.
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खास जरूरतें पूरी
कई स्वयंसेवी खाने की चीजें बांटने के काम में लगे हैं. रमजान के महीने में आम भोजन के अलावा खास चीजें जैसे दही से बनने वाला पेय आयरान, खजूर और अनार का जूस भी बांटा जा रहा है.
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जैसे तैसे जुगाड़
कैंपों में सारी सुविधाओं से लैस किचन की सुविधा ना होने के कारण जो मिले उससे काम चलाया जाता है. जैसे सीरिया के कामिश्लो से आई नाजा हुरु लकड़ी जलाकर किसी तरह चावल पकाती हुई. उनके परिवार के 9 लोग कैंप में हैं.
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परिवार का साथ
नाजा का दामाद हसन रसूल खुद भी चार बच्चों का पिता है. पास के ही एक टेंट से आते संगीत को सुनकर अपने बेटे के साथ डांस करते हुए.
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रोजा तोड़ना
नाजा का परिवार शाम को रोजा तोड़ने के लिए एक साथ इफ्तार करने बैठता है. घर में बना चावल और साथ में सूप. इसके अलावा ग्रीस में उन्हें सलाद और बैंगन भी मिल गया था. यह सब परिवार मिल बांट कर खाता है.
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प्रार्थना का वक्त
शरणार्थी कैंप में ही एक खाली पड़े मकान में अस्थाई मस्जिद बना दी गई है. उसी मस्जिद की दीवार पर रखी कुरान को लेकर नमाज पढ़ने की तैयारी में एक रोजेदार.
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ऐसे ढलता है दिन
रात होने से पहले दिन की आखिरी नमाज पढ़ने बैठा एक मुसलमान व्यक्ति. रित्सोना कैंप में रहते हुए भी रमजान का महीना पूरी श्रद्धा और प्रार्थना से बिताते हैं शरणार्थी.