सलाखों के पीछे 365 दिन. तुर्की की जेल में बंद तुर्क जर्मन पत्रकार डेनिस यूजेल वहां के राजनीतिक बंदियों को आवाज दे रहे हैं. बहुत से लोग उन्हें तुर्की और जर्मनी के संबंधों का बंधक मानते हैं.
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"मैंने पहले भी ऐसे लोगों से बात की है जिन्हें यातना दी गई है या जो यहूदी नरसंहार में जीवित बच गए. लेकिन अब मुझे पता है कि आप इस तरह की कहानियों को अलग तरीके से सुनते हैं यदि आप खुद ऐसी सरकार के कब्जे में हों." ये बात तुर्की की जेल में एक साल से बिना किसी आरोप के बंद यूजेल ने लिखी है जो उनकी गिरफ्तारी की पहली वर्षगांठ पर प्रकाशित हो रही है.
इस्तांबुल के हाइनरिष बोएल न्यास दफ्तर के प्रमुख क्रिस्टियान ब्राकेल कहते हैं, "डेनिस यूजेल ऐसे इंसान हैं जो अपनी रिपोर्टिंग में हमेशा मुखर रहे हैं. उन्होंने दक्षिणपंथियों और वामपंथियों दोनों की आलोचना की है और अत्यंत सख्त विश्लेषण लिखे हैं." 1973 में फ्रैंकफर्ट के निकट तुर्क परिवार में पैदा हुए यूजेल जर्मन दैनिक डी वेल्ट के तुर्की में संवाददाता थे. 14 फरवरी 2017 को पुलिस ने उन्हें हिरासत में ले लिया. उसके बाद गिरफ्तारी का वारंट जारी किया गया. मार्च 2017 से 44 वर्षीय यूजेल सिलिवरी जेल में कैद हैं. अभी तक उनके खिलाफ कोई आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है. बहुत से लोग उन्हें तुर्की सरकार का बंधक मान रहे हैं.
ब्राकेल का कहना है कि तुर्की की सरकार की कटु आलोचना यूजेल के लिए नियति बन गई. "इसके द्वारा शुरू में जर्मनी से कुछ लेने की उम्मीद की गई थी, ये तो पता नहीं लेकिन हर हाल में उनके जरिए ब्लैकमेल की कोशिश तो की ही गई." वारंट जारी करते समय यूजेल पर लोगों को भड़काने और आतंकवादी प्रोपेगैंडा करने का आरोप लगाया गया. उसके सबूत में उनके 8 लेखों को शामिल किया गया जो यूजेल ने अपने अखबार डी वेल्ट में लिखे थे.
तुर्की है पत्रकारों के लिए सबसे बड़ी जेल
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) के आंकड़ों मुताबिक साल 2017 में दुनिया भर के 65 पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की मौत हो गई. बीते 14 सालों के मुकाबले इसमें कमी आई है.
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दुनिया में खतरनाक
आरएसएफ ने अपनी रिपोर्ट में गृह युद्ध से जूझ रहे सीरिया को पत्रकारों के लिए बेहद ही खतरनाक देश बताया है. आरएसएफ के मुताबिक साल 2017 में यहां 12 पत्रकार मारे गए. इसके बाद मेक्सिको का स्थान आता है जहां 11 पत्रकारों को हत्या कर दी गई.
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एशिया में खतरनाक
वहीं एशिया में फिलीपींस को पत्रकारों के लिए सबसे खतरनाक देश बताया गया है. यहां पांच पत्रकारों को गोली मार दी गयी, जिनमें से चार की मौत हो गई. हालांकि ये सिलसिला फिलीपींस के राष्ट्रपति रोड्रिगो डुटेर्टे की एक टिप्पणी के बाद बढ़ा. डुटेर्टे ने कहा था, "आप सिर्फ एक पत्रकार है इसलिए सजा से नहीं बच सकते"
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कम हुए मामले
संस्था के मुताबिक पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में साल 2017 अच्छा माना जा सकता है. रिपोर्ट मुताबिक पिछले 14 सालों में पत्रकारों के खिलाफ होने वाले अपराधों में साल 2017 के दौरान कमी आई है. जो 65 पत्रकार और मीडिया कर्मी इस साल मारे गये, उनमें से 39 की हत्या की गयी वहीं अन्य ड्यूटी पर रहते हुए किसी न किसी परिस्थिति का शिकार बने.
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बेहतर ट्रेनिंग का नतीजा
संस्था ने इस साल पत्रकारों की मौत का संख्या कम रहने का एक कारण परीक्षण को दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अब पत्रकारों को युद्ध क्षेत्र में भेजने के लिए अधिक प्रशिक्षित किया जाता है. साथ ही ऐसे देश जहां उन्हें खतरे का अंदाजा होता है वे वहां से निकल आते हैं.
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यहां गये जेल
तुर्की दुनियाभर के पत्रकारों के लिए साल 2017 में सबसे बड़ी जेल साबित हुई. यहां तकरीबन 42 पत्रकारों को सलाखों के पीछे भेज दिया गया. हालांकि ब्लॉगर्स के मामले में चीन ने सबसे अधिक 52 ब्लॉगर्स को जेल भेज कर अपना ये रिकॉर्ड कायम रखा.
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अन्य जेल
चीन और तुर्की के बाद जिन देशों में पत्रकारों को सबसे अधिक जेल का सामना करना पड़ा उनमें, 24 पत्रकारों के साथ सीरिया, 23 पत्रकारों के साथ ईरान और 19 पत्रकारों के साथ वियतनाम का नंबर आता है.
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भारत के ये मामले
साल 2017 भारत भी पत्रकारों के लिए सुरक्षित साबित नहीं हुआ. सितंबर में कन्नड़ पत्रकार गौरी लंकेश की बेंगलूरु में हत्या कर दी गयी. इसके अलावा त्रिपुरा के पत्रकार शांतनु भौमिक पर एक कार्यक्रम के दौरान अचानक हमला कर दिया गया जिसमें उनकी मौत हो गई. वहीं त्रिपुरा के एक अन्य पत्रकार सुदीप दत्त पर एक झगड़े के दौरान त्रिपुरा स्टेट राइफल्स के एक अधिकारी ने हमला कर दिया था. इसमें उनकी मौत हो गई.
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यूजेल की नई किताब में उनमें से 2 लेखों को शामिल किया गया है. इसमें से एक प्रतिबंधित कुर्द संगठन पीकेके के उपाध्यक्ष के साथ इंटरव्यू है जिसमें उसने स्वीकार किया है कि संगठन के अंदर फांसियांदी गईं. एक और लेख इस बारे में कि राष्ट्रपति रेचेप तय्यप एर्दोवान ने अपनी ताकत का विस्तार कैसे किया है. किताब की प्रकाशक डोरिस आक्राप ने प्रस्तावना में लिखा है, दूसरे देशों में इस तरह के लेखों के लिए पत्रकारिता पुरस्कार मिलता है, लेकिन समकालीन तुर्की में उसकी सजा जेल है.
स्वतंत्र न्यायपालिका?
2016 की गर्मियों में तख्तापलट की कोशिशों के बाद तुर्की में बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुई. उनमें डेनिस यूजेल के साथ 28 जर्मन नागरिक भी हैं. जर्मन विदेश मंत्रालय के अनुसार मानवाधिकार कार्यकर्ता पेटर स्टॉटनर और पत्रकार मेसाले तोलू सहित करीब 8 लोगों को छोड़ा जा चुका है. तुर्की की सरकार बार बार दावा करती है कि वहां की न्याय व्यवस्था स्वतंत्र है. लेकिन हाइनरिष बोएल न्यास के प्रमुख का कहना है कि इसका सवाल ही नहीं उठता.
राजनीतिक हस्तक्षेप के बाद हाल में दो बंदियों को रिहा नहीं किया गया जबकि तुर्की की सर्वोच्च अदालत ने उनकी रिहाई के आदेश दिए थे. इसी तरह का मामला मानवाधिकार संगठन एमनेस्टी इंटरनेशनल की तुर्की शाखा के प्रमुख के साथ भी हुआ जिसकी रिहाई का आदेश कुछ ही घंटों के बाद वापस ले लिया गया. यूजेल के मामले में राष्ट्रपति ने खुद हस्तक्षेप किया, "वह सचमुच एक एजेंट और आतंकवादी है. काहे का पत्रकार. जर्मनदूतावास ने उसे एक महीने तक समर रेसिडेंस में छुपा रखा था."
प्रेस स्वतंत्रता में कौन देश कहां
लोकतांत्रिक देशों में अहम नेताओं के मीडिया विरोधी भाषणों, नये कानूनों और मीडिया को प्रभावित करने की कोशिशों की वजह से पत्रकारों और मीडिया की स्थिति खराब हुई है. यह कहना है रिपोर्टर्स विदाउट बोर्डर्स की ताजा रिपोर्ट का.
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1. नॉर्वे
पिछले साल नंबर 3
तस्वीर: Reuters
2. स्वीडन
पिछले साल नंबर 8
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3. फिनलैंड
पिछले साल नंबर 1
तस्वीर: Getty Images/AFP/T. Charliere
4. डेनमार्क
पिछले साल नंबर 4
तस्वीर: picture-alliance/dpa/K. Navntoft
5. नीदरलैंड्स
पिछले साल नंबर 2
तस्वीर: Reuters/Y. Herman
6. कोस्टा रिका
पिछले साल नंबर 6
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7. स्विट्जरलैंड
पिछले साल नंबर 7
तस्वीर: AP
8. जमैका
पिछले साल नंबर 10
तस्वीर: Reuters/G. Bellamy
9. बेल्जियम
पिछले साल नंबर 13
तस्वीर: Reuters/F. Lenoir
10. आइसलैंड
पिछले साल नंबर 19
तस्वीर: picture alliance/dpa/B. Thor Hardarson
16. जर्मनी
पिछले साल नंबर 16
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31. दक्षिण अफ्रीका
पिछले साल नंबर 39
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Njikizana
40. ब्रिटेन
पिछले साल नंबर 38
तस्वीर: picture-alliance/dpa/PA Wire/A. Devlin
43. अमेरिका
पिछले साल नंबर 41
तस्वीर: picture alliance/ZUMAPRESS/B. Woolston
84. भूटान
पिछले साल नंबर 94
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ Royal Office For Media/ Kingdom of Bhutan
100. नेपाल
पिछले साल नंबर 105
तस्वीर: Reuters/N. Chitrakar
103. ब्राजील
पिछले साल नंबर 104
तस्वीर: Reuters/A.Machado
120. अफगानिस्तान
पिछले साल नंबर 120
तस्वीर: Getty Images/AFP/W. Kohsar
124. इंडोनेशिया
पिछले साल नंबर 130
तस्वीर: Reuters/D. Whiteside
136. भारत
पिछले साल नंबर 133
तस्वीर: Reuters/A. Abidi
139. पाकिस्तान
पिछले साल नंबर 147
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
141. श्रीलंका
पिछले साल नंबर 141
तस्वीर: Getty Images/B.Weerasinghe
146. बांग्लादेश
पिछले साल नंबर 144
तस्वीर: bdnews24.com
148. रूस
पिछले साल नंबर 148
तस्वीर: picture-alliance/dpa/ Y. Kochetkov
155. तुर्की
पिछले साल नंबर 151
तस्वीर: Reuters/Presidential Palace/Y. Bulbul
176. चीन
पिछले साल नंबर 176
तस्वीर: Reuters/T. Peter
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जर्मन सरकार की कोशिश
बाद में राष्ट्रपति एर्दोवान ने यूजेल की रिहाई के बारे में कहा, "किसी हाल में नहीं, जबतक मैं इस पद पर हूं, कभी नहीं." हालांकि क्रिस्टियान ब्राकेल के अनुसार एर्दोवान ने जर्मन विदेश मंत्री जिगमार गाब्रिएल के साथ बातचीत में अनौपचारिक रूप से "डेनिस यूजेल को उन तुर्क सैनिकों के बदले छोड़ने की पेशकश की थी जिन्होंने तख्तापलट में हिस्सा लिया था और जिन्हें जर्मनी में शरण मिली है."
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने भी यूजेल की गिरफ्तारी पर स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाया था. गिरफ्तारी के दो हफ्ते बाद ही मैर्केल ने कहा, "पत्रकारों को अपना काम करने दिया जाना चाहिए. इसलिए हम डेनिस यूजेल के बारे में सोचते हैं जो तुर्की में हिरासत में हैं, जिनकी रिहाई की हम मांग करते हैं, क्योंकि हमें विश्वास है कि उन्होंने स्वतंत्र पत्रकारिता का काम करने के अलावा कुछ भी अलग नहीं किया है. इसे मनवाया जाना चाहिए." चांसलर ने वादा किया कि जर्मन सरकार हर मुमकिन प्रयास करेगी कि ये संभव हो.
खुद को नुकसान पहुंचाए बिना दबाब
आलोचकों का कहना है कि शुरू में जर्मनी ने अपने नागरिक की रिहाई के लिए कोई ज्यादा प्रयास नहीं किया. क्रिस्टियान ब्राकेल भी मानते हैं कि गर्मियों में पहली बार प्रयास हुए. उस समय विदेश मंत्री ने तुर्की के खिलाफ यात्रा की चेतावनी जारी की और कहा कि कर्ज की गारंटी में सख्ती बरती जाएगी. लेकिन अंत में तुर्की में निवेश करने वाले जर्मन उद्यमियों को नुकसान न पहुंचाने के लिए चांसलर दफ्तर की सलाह पर गारंटी की सीमा पर समझौता हुआ.
हालांकि जर्मन आर्थिक तौर पर मजबूत देश है और तुर्की को यूरोप के साथ काम करने वाला संबंध चाहिए क्योंकि उसके साथी लगातार कम होते जा रहे हैं. लेकिन राजनीतिक विश्लेषक ब्राकेल का कहना है कि जर्मनी और तुर्की के बीच आर्थिक, सैनिक और सांस्कृतिक संबंध इतने सघन हैं कि जर्मनी के लिए खुद को नुकसान पहुंचाए बिना तुर्की पर बहुत ज्यादा दबाव डालना मुश्किल है.
प्रेस फ्रीडम? यहां नहीं!
कई देशों में पत्रकारों और ब्लॉगरों को नियमित तौर पर डराया, धमकाया और हमलों का निशाना बनाया जा रहा है. प्रेस फ्रीडम इंडेक्स 2015 में 'रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स' की 180 देशों की सूची में इन देशों का रहा सबसे खराब प्रदर्शन.
तस्वीर: Fotolia/picsfive
अफ्रीका का उत्तरी कोरिया- इरिट्रिया
वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में इरिट्रिया सबसे निचली पायदान पर है. तानाशाही शासन वाले इस पूर्व अफ्रीकी देश के खस्ताहाल की खबरें बाहर नहीं निकलतीं. कई पत्रकारों को मजबूरन देश छोड़ना पड़ा है. इरिट्रिया के बारे में निष्पक्ष जानकारी पाने के लिए पेरिस से चलने वाले रेडियो एरीना को एकलौता स्रोत माना जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/J. Juinen
तानाशाह के इशारे पर
पूरी दुनिया की नजर से छिपे हुए उत्तरी कोरिया में भी प्रेस की आजादी नहीं पाई जाती. शासक किम जोंग उन की मशीनरी मीडिया में प्रकाशित सामग्री पर पैनी नजर रखती है. लोगों को केवल सरकारी टीवी और रेडियो चैनल मिलते हैं और जो लोग अपनी राय जाहिर करने की कोशिश करते हैं, उन्हें अक्सर राजनैतिक कैदी बना दिया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Yonhap/Kcna
तुर्कमेनिस्तान पर नजर
केवल एक अखबार, रिसगाल को छोड़कर देश के लगभग सारे मीडिया संस्थानों के मालिक खुद राष्ट्रपति गुर्बांगुली बर्डीमुहामेदो ही हैं. इस अखबार के संपादकीय भी छपने से पहले जांचे जाते हैं. हाल ही में आए एक नए कानून से लोगों को कुछ विदेशी मीडिया संस्थानों की न्यूज तक पहुंच मिली है. इंटरनेट और तमाम वेबसाइटों पर सरकार की नजर होती है.
तस्वीर: Stringer/AFP/Getty Images
आलोचकों का सफाया
विएतनाम में स्वतंत्र पत्रकारिता का कोई अस्तित्व ही नहीं है. सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी पत्रकारों को बताती हैं कि क्या प्रकाशित होगा. कई मीडिया संस्थानों के पत्रकार, संपादक, प्रकाशिक खुद ही पार्टी के सदस्य हैं. अब ब्लॉगरों पर भी कड़ी नजर रखी जा रही है. पार्टी के विरुद्ध लिखने पर जेल में डाल दिया जाता है.
तस्वीर: picture alliance/ZB/A. Burgi
चीन में नहीं आजादी
रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स का कहना है कि चीन दुनिया में पत्रकारों और ब्लॉगरों के लिए सबसे बड़ी जेल है. किसी भी न्यूज कवरेज के पसंद ना आने पर शासन संबंधित पक्ष के विरुद्ध कड़े कदम उठाता है. विदेशी पत्रकारों पर भी भारी दबाव है और कई बार उन्हें इंटरव्यू देने वाले चीनी लोगों को भी जेल में बंद कर दिया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Schiefelbein
सीरिया में सुलगते हालात
सीरिया में अब तक ऐसे कई पत्रकारों को मौत की सजा दी जा चुकी है, जो असद शासन के खिलाफ हुई बगावत के समय सक्रिय थे. रिपोर्ट्स विदाउट बॉर्डर्स ने सीरिया को कई सालों से प्रेस की आजादी का शत्रु घोषित किया हुआ है. वहां असद शासन के खिलाफ संघर्ष करने वाला अल-नुसरा फ्रंट और आईएस ने बदले की कार्रवाई में सीरिया के सरकारी मीडिया संस्थान के रिपोर्टरों पर हमले किए और कईयों को सार्वजनिक रूप से मौत के घाट उतारा.
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भारत भी पीछे
लोकतांत्रिक और बहुजातीय देश होने के बावजूद भारत प्रेस फ्रीडम की सूची में शामिल 180 देशों में 136वें नंबर पर है. उसके आस पास के देशों में होंडुरास, वेनेज्वेला और चाड जैसे देश हैं.
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चाय पर चर्चा
2018 में दोनों पक्षों ने खुलकर संबंधों को सामान्य बनाने पर ध्यान दिया. विदेश मंत्री जिगमार गाब्रिएल ने तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावुसोलू से उनके चुनाव क्षेत्र में मुलाकात की. उसके बाद कावुसोलू गाब्रिएल से मिलने उनके गृहनगर गोसलार आए जहां उन्हें चाय पिलाते हुए गाब्रिएल की तस्वीर सुर्खियों में रही. कावुसोलू ने गाब्रिएल को दोस्त बताया, एक दोस्त जिससे उन्हें यूरोपीय संघ के साथ कस्टम संधि के विस्तार और सैन्य सहयोग में मदद की उम्मीद है. गाब्रिएल ने कहा कि हथियारों की सप्लाई समस्याओं के समाधान पर ही संभव है और इसमें यूजेल का मामला भी है.
तुर्की की कैद में बंद पत्रकार ने इस पर चिंता व्यक्त की कि वे राजनीतिक मोहरा बन सकते हैं. वकील के जरिए दिए गए इंटरव्यू में यूजेल ने कहा कि वे अपनी आजादी न तो राइनमेटाल के टैंकों की बिक्री के बदले चाहते हैं और न ही सैनिक विद्रोह करने वाले अधिकारियों के बदले. यूजेल ने कहा, "वह गंदी डील के लिए उपलब्ध नहीं हैं." जिगमार गाब्रिएल ने स्पष्ट किया कि गंदी डील की कोई बात ही नहीं थी. क्रिस्टियान ब्राकेल के लिए यह गंदी डील ही होगी यदि यूजेल की रिहाई के बाद तुर्की में मानवाधिकारों के लिए लड़ रहे और जेल मे बंद लोगों की बात ही न हो.