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एड्स की दवा पर बहस जारी

३० नवम्बर २०१२

अमेरिका में एचआईवी से बचने की दवा ट्रूवाडा को हरी झंडी मिल गई है. जिन लोगों को संक्रमण का सबसे ज्यादा खतरा है, वह इसे ले सकते हैं. लेकिन क्या इस दवा से एड्स की गंभीरता पर काबू पाया जा सकता है.

तस्वीर: Fotolia/Africa Studio

ट्रूवाडा उन गिनी चुनी दवाइयों में है, जिसे एड्स के रोगी इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन यह बहुत महंगी है. दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि इस दवा से एड्स की महामारी को टाला नहीं जा सकता है और बेहतर है कि इसे जड़ से खत्म करने की कोशिश की जाए. एक साल की खुराक की कीमत करीब आठ लाख रुपये हैं. संक्रमित लोगों के अलावा सेहतमंद लोग भी एचआईवी से बचने के लिए इस दवा का उपयोग कर सकते हैं.

एड्स से बचने के लिए तीन अलग अलग तरह की दवाइयों को मिला कर खास दवा तैयार करनी पड़ती है. बाजार में लगभग एक दर्जन दवा हैं, जिन्हें एड्स के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. इनका प्रभाव कुछ ऐसा होता है कि एड्स के वायरस शरीर में फैलते नहीं हैं.

तस्वीर: AP

खास बात यह है कि इस दवा को दिन भर में सिर्फ एक बार लेना पड़ता है. एड्स पर रिसर्च कर रहे बॉन यूनिवर्सिटी के डॉक्टर युर्गेन रॉकश्ट्रोह कहते हैं कि आसान दवाइयों की जरूरत है, "यह पिछले कुछ सालों की मेहनत का नतीजा है. जैसा कि मैं कहता हूं कि एचआईवी का इलाज संभव है लेकिन हमें ऐसी दवाइयों के बारे में सोचना है, जो आसानी से ली जा सकें और जिनका साइड एफेक्ट न हो."

रिसर्चरों ने हाल के सालों में इस बात को भी तय करने की कोशिश की है कि क्या सेहतमंद लोगों पर भी एचआईवी से बचाव की दवाइयां काम करती हैं. ट्रूवाडा इस दिशा में बड़ा कदम बताया जा रहा है. एसेन यूनिवर्सिटी अस्पताल के श्टीफान एस्सर एचआईवी मरीजों के सेक्शन के हेड हैं. वह बताते हैं सिर्फ सेक्स से पहले इस दवा को नहीं लेना है, बल्कि इसके लिए एक वक्त तय करना है, "हमें पता नहीं होता कि हम कब सेक्स करने वाले हैं. ऐसे में दवा को नियमित रूप से लेने की जरूरत है."

तस्वीर: dapd

लेकिन ट्रूवाडा के साइड एफेक्ट के भी खतरे हैं. रिसर्च में इस बात का भी पता चला है कि महिलाओं के मुकाबले मर्दों में एचआईवी होने का खतरा ज्यादा होता है. इसके अलावा एक से ज्यादा लोगों के साथ सेक्स संबंध रखने वाले पुरुषों में दूसरी बीमारियों का भी खतरा बना रहता है. डॉक्टर रॉकश्ट्रोह कहते हैं, "मेरे विचार से अगर कोई एक से ज्यादा पार्टनर रखने का फैसला करता है, तो उसे बुनियादी सुरक्षा के उपाय करने ही चाहिए. मिसाल के तौर पर कंडोम का इस्तेमाल जरूर करना चाहिए."

एचआईवी के इलाज के लिए 2000 में ट्रूवाडा को हरी झंडी दिखाई गई थी. इसके दो साल बाद यूरोप में भी यह मिलने लगी. यूरोप के डॉक्टरों का मानना है कि इसकी कामयाबी अमेरिका से कम रही है.

रिपोर्टः मार्टिन विंकेलहाइडे/एजेए

संपादनः आभा मोंढे

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