1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

एड्स से जंग में आगे बढ़ा भारत

३० नवम्बर २०१३

पिछले कुछ सालों में भारत ने एचआईवी से लड़ाई में अच्छे नतीजे दिखाए हैं. हालांकि संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ का कहना है कि एड्स के कारण दुनिया भर में किशोर वर्ग में मौतों की संख्या बढ़ी है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

यूनिसेफ ने एड्स की समस्या से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय संगठनों से और आर्थिक मदद की मांग की है. 1980 से पहले इस भयानक बीमारी के बारे में लोग जानते भी नहीं थे. देखते देखते यह एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय समस्या बन गई. 2012 में एड्स के साथ जी रहे युवाओं की संख्या 21 लाख थी. एड्स के बारे में लोगों को जागरुक बनाने के मकसद से हर साल 1 दिसंबर 'वर्ल्ड एड्स डे' के रूप में मनाया जाता है.

इसी सप्ताह आई यूनिसेफ की रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले सात सालों में 10 से 19 साल आयु वर्ग के लोगों में एचआईवी के कारण होने वाली मौतों में पचास फीसदी वृद्धि हुई है. 2013 में तैयार हुई रिपोर्ट के अनुसार साल 2012 में दुनिया भर में एक लाख दस हजार युवाओं की मौत एड्स के कारण हुई. 2005 में ऐसे लोगों की संख्या 71000 थी.

भारत में सफलता

संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी यूएनएड्स की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि एंटी रेट्रोवाइरल इलाज की मदद से भारत में पिछले कुछ समय में काफी सुधार देखने को मिला है. यूएनएड्स के मुख्य कार्यकारी निदेशक डॉक्टर लुइज लाउरेस ने पिछले पांच सालों में इस इलाज से निपटने की दिशा में भारत के कदमों तारीफ की. उन्होंने कहा, "यह राष्ट्र का जिम्मेदार रवैया और सुनियोजित अभियान दिखाता है."

यूनिसेफ ने एड्स से निपटने के लिए और आर्थिक मदद की मांग की है.तस्वीर: AP

संयुक्त राष्ट्र एजेंसी के अनुसार भारत में एंटी रेट्रोवाइरल इलाज पा रहे लोगों की संख्या 2007 से 2009 के बीच बढ़ी और फिर 2009 से 2012 के बीच इनकी संख्या में फिर बढ़ोतरी पाई गई.

जीवन रक्षक दवाइयों का इस्तेमाल करने वाले देशों में भारत अब दूसरे स्थान पर है. इस समय देश में साढ़े छह लाख एचआईवी संक्रमित लोग इलाज पा रहे हैं. कोशिश हो है कि जल्द ही इस कार्यक्रम से दस लाख लोगों की मदद की जा सके.

राष्ट्रीय एड्स अनुसंधान संस्थान की जनवरी 2013 में आई रिपोर्ट के अनुसार 2011 में एचआईवी से संक्रमित लोगों की संख्या 20 लाख थी. इन आंकड़ों के आधार पर भारत को एचआईवी मामलों में दुनिया में तीसरे स्थान पर पाया गया था. दक्षिण एशिया के आधे मामले भारत में ही मौजूद हैं.

लक्ष्य

संयुक्त राष्ट्र ने 2000 में एड्स के खिलाफ मुहिम में अपने लिए एक लक्ष्य निर्धारित किया था. इसके अनुसार अगर गरीब लोगों की संख्या आधी हो जाए तो 2015 तक एड्स को फैलने से रोका जा सकता है. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए कई प्रयास भी जारी हैं.

इस वैश्विक समस्या से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 5.5 अरब डॉलर की और आर्थिक मदद की मांग की है.

आधी हो सकती है परेशानी

यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक एंथनी लेक ने कहा, "अगर संयुक्त प्रयासों की मदद से ज्यादा प्रभावशाली कदम उठाए जाएं तो 2020 तक हम युवाओं में इसके फैलने को आधा कर सकते हैं." उन्होंने कहा, जरूरत इस बात की है कि तुरंत ही प्रभावशाली तरीकों की मदद से उन किशोरों को बचाया जा सके जो इसकी चपेट में आसानी से आ जाते हैं. इन तरीकों में कॉन्डोम का इस्तेमाल और एंटी रेट्रोवाइरल इलाज शामिल है.

एंटी रेट्रोवाइरल इलाज से नवजात शिशुओं में एचआईवी संक्रमण की रोकथाम हो सकी हैतस्वीर: picture alliance/dpa

मां से बच्चे में

एड्स का मां से बच्चे में पहुंच जाना भी एक बड़ी समस्या है. यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार ऐसे मामलों में भारी कमी आई है, जो कि अच्छा संकेत है. 2005 में नवजात शिशुओं में एड्स के पांच लाख चालीस हजार मामले थे, जो कि 2012 में घटकर दो लाख साठ हजार हो गए.

स्तनपान करा रही महिलाओं के जरिए या नवजात शिशुओं में एड्स संक्रमण की रोकथाम में ऑप्शन बी प्लस के नाम से मशहूर एंटी रेट्रोवाइरल इलाज का बड़ा योगदान रहा. इस तरह के इलाज में मां को हर रोज एक गोली खानी होती है जिससे कि मां से बच्चे में बीमारी ना पहुंचे.

कोशिश जारी

लेक ने बताया अंतरराष्ट्रीय समुदाय को चाहिए कि अब तक मिली सफलता से प्रेरणा ले और एचआईवी/ एड्स से लड़ने में ऐसे ही डटे रहा जाए. उन्होंने कहा, "अब हमारे पास वह हथियार है जिसकी मदद से हम एड्स मुक्त पीढ़ियों तक पहुंच सकते हैं."सबसे ज्यादा जरूरी है कि नवजात और छोटे बच्चों को इससे बचाने पर ध्यान दिया जाए.

रिपोर्टः समरा फातिमा (एपी, डीपीए)

संपादनः एन रंजन

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें