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एड्स से लड़ाई में कंजूसी से मायूसी

३० नवम्बर २०११

पिछले एक दशक में एड्स के खिलाफ संघर्ष में अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तकनीक के मामले में शानदार कामयाबी हासिल की है लेकिन इस मामले में जिस तरह से पैसों की कमी आ रही है, उससे संयुक्त राष्ट्र तक मायूस है.

तस्वीर: dapd

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि एड्स पैदा करने वाला वायरस एचआईवी वैज्ञानिकों और स्वास्थ्य जानकारों के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है लेकिन एड्स मुक्त समाज बनाने का मौका अब भी हमारे हाथ में है. हर साल एक दिसंबर को अंतरराष्ट्रीय एड्स दिवस मनाया जाता है.

पैसों की कमी

लेकिन इस मामले में सबसे बड़ी मुश्किल पैसों की आ रही है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दान करने वालों ने हाल के दिनों में हाथ खींचने शुरू कर दिए हैं और अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट ने इसमें और मुश्किल खड़ी कर दी है. साल 2009 में एड्स से बचाव के लिए दुनिया भर के लोगों ने 15.9 अरब डॉलर जमा किए थे, जो 2010 में घट कर 15 अरब डॉलर रह गया. संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि साल 2015 तक उसे 20-22 अरब डॉलर की जरूरत होगी लेकिन इतने पैसे जुटते नहीं दिख रहे हैं.

तस्वीर: AP

एड्स, टीबी और मलेरिया से संघर्ष करने वाले अंतरराष्ट्रीय कोष ने पिछले हफ्ते ही कहा है कि वह इन बीमारियों से लड़ रहे देशों को आगे आर्थिक सहायता नहीं कर सकता है और 2014 तक उन्हें कोई पैसा नहीं दिया जाएगा. सेव द चिल्ड्रेन संगठन के कैंपेन डायरेक्टर पैट्रिक वॉट का कहना है, "जब तक ग्लोबल फंड अपना काम तेज नहीं करता, ऐसे विश्व की कल्पना नहीं की जा सकती, जहां कोई भी बच्चा एचआईवी के खतरे के बिना पैदा हो."

वैज्ञानिक रिपोर्टों में पाया गया है कि वक्त रहते अगर एचआईवी संक्रमित व्यक्ति का इलाज शुरू कर दिया जाए, तो इस वायरस से संक्रमित होने वाले नए लोगों की संख्या में काफी कमी आ सकती है. एचआईवी और एड्स मामलों के डब्ल्यूएचओ निदेशक गॉटफ्राइड हिर्नशल का कहना है, "यह एक अच्छा साल है क्योंकि जिन क्षेत्रों में हम मामले कम होता देखना चाहते हैं, वहां ऐसा हो रहा है."

तस्वीर: Bilderbox

लक्ष्य शून्य मौतें

यूएनएड्स की रिसर्च ने बुधवार को जो आंकड़े जारी किए हैं, उसके मुताबिक एचआईवी संक्रमण घटा है. 2001 में नए संक्रमणों की संख्या 31 लाख थी, जो 2010 में घट कर 27 लाख रह गई है. हिर्नशल का कहना है कि हमारी कोशिश शून्य संक्रमण और एचआईवी की वजह से शून्य मौतें है और यह कुछ सालों बाद ही सही लेकिन सच्चाई साबित हो सकती है.

पर उन्हें भी पैसों की कमी का खतरा दिख रहा है. उन्होंने कहा, "इस साल अभी ही हमारे पास सात अरब डॉलर की कमी हो गई है." एड्स से संघर्ष के लिए जिन देशों ने शुरू में पैसा दिया था, वे हाल के दिनों में आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं और इस वजह से उन्होंने हाथ तंग कर लिया है.

तस्वीर: AP

प्रभावी कार्यक्रम

एक दिसंबर को विश्व एड्स दिवस से एक दिन पहले बुधवार को यूएनएड्स की जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि एड्स से जुड़े इलाज और बचाव कार्यक्रम बहुत ज्यादा प्रभावी साबित हो रहे हैं. यूएनएड्स के डिप्टी डायरेक्टर पॉल डे ले ने कहा, "2011 में बड़े बदलाव हुए. नई वैज्ञानिक उपलब्धियों और राजनीतिक इच्छाशक्ति की वजह से एड्स के खिलाफ संघर्ष में काफी मदद मिली. लेकिन घटते संसाधन से इस किए कराए पर पानी फिर सकता है."

सवाल यह है कि क्या विश्व अभी भी एड्स की गंभीरता को समझ पा रहा है या नहीं.

रिपोर्टः रॉयटर्स/एएफपी/ए जमाल

संपादनः महेश झा

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