अमेरिका में एप्पल और एफबीआई की लड़ाई में अन्य ऑनलाइन कंपनियां भी कूद पड़ी हैं. एफबीआई की फोन एनक्रिप्शन की मांग को एप्पल डाटा सुरक्षा के लिहाज से गलत मानता है.
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एप्पल का यह मामला अमेरिका में दिसंबर 2015 में हुई शूटिंग से जुड़ा है. कैलिफोर्निया के सैन बेरनारडीनो इलाके में हुई गोलीबारी में 14 लोगों की जान गयी थी और 22 घायल हुए थे. यह हमला पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी सैयद रिजवान फारूक और उसकी पत्नी तशफीन मलिक ने किया था. फारूक सैन बेरनारडीनो इलाके में स्वास्थ्य अधिकारी का काम करता था और इस लिहाज से उसे एक सरकारी फोन भी मिला हुआ था. यह आईफोन 5सी था, जिसके लॉक होने के कारण एफबीआई फोन में मौजूद सारे डाटा तक नहीं पहुंच पा रही है.
उसूलों की जंग
ऐसे में एफबीआई ने एप्पल से ऐसा सॉफ्टवेयर बनाने को कहा है जिससे लॉक्ड फोन को खोला जा सके. आईफोन इसे डाटा सुरक्षा के लिहाज से गलत कदम बता रहा है और इस तरह के किसी भी सॉफ्टवेयर को बनाने के हक में नहीं है. एप्पल के सीईओ टिम कुक ने सोमवार सुबह कंपनी के नाम एक ईमेल लिखा जिसमें उन्होंने समझाया है कि मामला एक फोन को खोलने का नहीं, बल्कि उसूलों का है. उन्होंने लिखा, "यह मामला एक फोन या एक जांच से काफी बढ़ कर है. यहां उन करोड़ों कानून का पालन करने वाले लोगों के डाटा की सुरक्षा दांव पर लगी है और इससे एक खतरनाक मिसाल कायम होगी जिससे सब नागरिकों की आजादी पर खतरा पैदा हो जाएगा."
आईफोन के बारे में कितना जानते हैं?
2016 में पहली बार आईफोन की बिक्री में गिरावट की खबरें आ रही हैं. एप्पल की कुल कमाई का 63 फीसदी हिस्सा आईफोन से आता है. कैसे बनाई आईफोन ने अपने लिए बाजार में खास जगह...
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जी हां, "पर्पल"
जिस समय आईफोन मात्र आयडिया के स्वरूप में ही था, इसका प्रोजेक्ट कोड "पर्पल" था. एप्पल के एक पूर्व प्रबंधक के मुताबिक पर्पल की टीम जिस जगह काम करती थी वह किसी हॉस्टल के कमरे जैसा दिखता था. कमरे में पिज्जा की महक और दीवारों पर फाइट क्लब के पोस्टर.
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समय क्या हुआ है?
स्टीव जॉब्स पहले आईफोन को 29 जून 2007 को सुबह 9:42 बजे दुनिया के सामने लाए. समारोह का समय इस तरह का रखा गया था कि जब लोग नए उत्पाद की तस्वीरें देखें तो डिस्प्ले पर दिखाई दे रहा समय ठीक उस पल असल समय से मैच करे. समय की इस पाबंदी का ख्याल कंपनी हमेशा रखती है. हालांकि 2010 में आईपैड लॉन्च करते समय एक मिनट का अंतर आ गया था.
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नेक्स्ट जनरेशन की तकनीक
यह सही है कि पहला आईफोन 599 डॉलर का था, जो कि उस समय महंगा था. लेकिन एक फोन वह सब कुछ कर सकता था जो तब तक 3000 डॉलर की कीमत वाले विभिन्न उपकरण मिलकर करते थे. आईफोन ने सीडी प्लेयर, कंप्यूटर, फोन और आन्सरिंग मशीन सभी की एक साथ जगह ले ली.
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क्या स्क्रीन पर क्रैक है?
जेब से जल्दी में फोन निकालने में हाथ से फिसला और जमीन पर ढेर. आईफोन की स्क्रीन अक्सर इन घटनाओं में चटख जाती है. लेकिन स्काई डाइवर जैरोड मैककिनी ने 2011 में अपना आईफोन हवा में 13,500 फुट की ऊंचाई से गिरा दिया. उनका दावा है कि इसके बावजूद फोन से कॉल की जा सकती थी.
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आईपैड ने की मदद
2000 के शुरुआती सालों में एप्पल वर्चुअल कीबोर्ड वाला टैबलेट कंप्यूटर बनाने की तैयारी में था. एक दिन जब एप्पल के कर्मचारी अपने फोन की आलोचना कर रहे थे उन्हें आयडिया आया कि टैबलेट वाली ही तकनीक एक खास तरह का फोन बनाने में भी इस्तेमाल की जा सकती है. वे जुट गए क्रांतिकारी स्मार्टफोन को बनाने में.
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ढेरों आईफोन
एप्पल 2007 से करीब 90 करोड़ आईफोन बेच चुका है. लेकिन चीन में आर्थिक मंदी के चलते एप्पल ने पहली बार चेतावनी दी है कि उसकी 2016 के पहले क्वार्टर की बिक्री 2015 के मुकाबले कम हो सकती है. हालांकि लोगों में एप्पल की दीवानगी में कमी नहीं आई है.
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प्यार भी नफरत भी
एप्पल और सैमसंग की दुशमनी दुनिया जानती है. दोनों कंपनियों के बीच पेटेंट को लेकर सालों से कई बड़े स्तर के मुकदमे चल रहे हैं. हालांकि दूसरी ओर रिपोर्टों के मुताबिक सैंमसंग आईफोन के लिए कंप्यूटर चिप का निर्माण भी करता है.
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इसके विपरीत एफबीआई के निदेशक जेम्स कॉमी ने रविवार को राष्ट्र सुरक्षा के आधिकारिक ब्लॉग "लॉफेयर" पर लिखा कि यह मामला एक नई कानूनी मिसाल पेश करने का नहीं है, बल्कि "पीड़ितों और न्याय" से जुड़ा है. उन्होंने लिखा, "चौदह लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया और बहुत से लोगों का जीवन और उनके शरीर बर्बाद हो गए. हम उन्हें कानून के तहत एक विस्तृत और पेशेवर जांच देने के लिए जिम्मेदार हैं."
गेट्स बनाम जकरबर्ग
माइक्रोसॉफ्ट के बिल गेट्स ने इस पर एफबीआई का पक्ष लेते हुए कहा है कि आतंकी गतिविधियों की जांच में तकनीकी कंपनियों को सरकार का साथ देने के लिए बाध्य होना चाहिए. फायनेंशियल टाइम्स अखबार को दिए इंटरव्यू में उन्होंने कहा, "यह एक विशेष मामला है जिसमें सरकार आपके जरिए सूचना तक पहुंचना चाह रही है. वह आपसे कोई सामान्य नियम बदलने को नहीं कह रही है, बल्कि एक खास मामले में ऐसा कर रही है."
दुनिया के सबसे बड़े ब्रांड
हर साल दुनिया भर की कंपनियों के ब्रांड परखे जाते हैं. उनकी वित्तीय कामयाबी और लोगों में उनकी स्वीकार्यता को लेकर उनका मूल्य तय किया जाता है. देखते हैं कि इस साल कौन सी कंपनियां सबसे आगे रहीं.
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गूगल से शुरुआत
इंटरनेट की दिग्गज कंपनी गूगल हमेशा सबसे आगे की पंक्ति में रहती है. इस साल तो इसने ब्रांडिंग के मामले में भी बाजी मार ली. गूगल ग्लास और कुछ अहम साझीदारी की बदौलत इसकी ब्रांड वैल्यू 158 अरब डॉलर से ज्यादा की हो गई.
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तीन साल बाद
स्टीव जॉ़ब्स के सपनों की कंपनी एप्पल को लगातार तीन साल टॉप पर रहने के बाद दूसरी सीढ़ी पर उतरना पड़ा है. इसकी ब्रांड वैल्यू पिछले साल 20 फीसदी गिर गई, जिसका यह नतीजा निकला.
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जबरदस्त आईबीएम
लगभग 108 अरब डॉलर की ब्रैंडिंग के साथ आईबीएम तीसरे नंबर पर है. इस सर्वे में ग्राहकों की भी राय ली जाती है.
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माइक्रोसॉफ्ट का बिजनेस
बिल गेट्स की कंपनी अभी भी सबसे आगे की पांत में खड़ी है. पिछले साल इसके मूल्य में 30 फीसदी का इजाफा हुआ और यह लगभग 90 अरब डॉलर का ब्रांड बन गया है.
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स्वाद का ब्रांड
अमेरिकी फास्ट फूड कंपनी मैकडोनाल्ड का स्वाद कैसा होता है, यह तो हमेशा विवाद का विषय रहेगा. लेकिन सर्वे में पाया गया कि इसका मूल्य 85 अरब डॉलर है और यह पांचवें नंबर पर है.
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ठंडा मतलब...
सिर्फ भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में ठंडा मतलब कोका कोला ही होता है. अपनी प्रतिद्वंद्वी कोल्ड ड्रिंक कंपनियों को कोसों पीछे छोड़ने वाली कोका कोला की बाजार में कीमत 80 अरब डॉलर है.
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जर्मनी को जगह
जहां इंटरनेट में अमेरिका और भारत की धूम है, वहीं जर्मन प्रोग्राम एसएपी ने अलग जगह बनाई है. जर्मनी की मशहूर टेलीकॉम, मर्सिडीज और सीमेंस के साथ यह भी शीर्ष 100 कंपनियों में है.
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फेसबुक की वैल्यू
धमाकेदार कामयाबी हासिल करने के मामले में फेसबुक का जवाब नहीं. करीब 68 फीसदी विकास के साथ यह सबसे ज्यादा मूल्य वाली कंपनियों में शामिल हो गई है.
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पीछे पीछे ट्विटर
जब फेसबुक का नाम लिया जाता है, तो जुबान से ट्विटर भी खुद ब खुद निकल जाता है. 19 अरब डॉलर के साथ यह भी फेसबुक के पीछे चल रहा है.
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गेट्स से अलग फेसबुक के मार्क जकरबर्ग, ट्विटर के जैक डॉरसी और गूगल के सुंदर पिचाई ने एप्पल का समर्थन किया है. मार्क जकरबर्ग ने बार्सिलोना में पत्रकारों से बात करते हुए कहा, "मुझे नहीं लगता कि एनक्रिप्शन के इन तरीकों से सुरक्षा बढ़ाई जा सकती है और ना ही मेरे अनुसार यह सही तरीका है." जकरबर्ग ने कहा कि वे मानते हैं कि बड़ी नेट्वर्किंग कंपनियों के पास आतंकी या अन्य किस्म के हमलों को रोकने की जिम्मेदारी भी है, "अगर हमारे पास सरकार के साथ मिल कर आतंवाद के खिलाफ काम करने का मौका होगा, तो हम उन मौकों का जरूर इस्तेमाल करेंगे."
राजनीतिक दबाव
इस बीच एप्पल का कहना है कि सरकार उस पर राजनीतिक दबाव बनाने की कोशिश कर रही है. कानून मंत्रालय ने अदालत के उस फैसले को भी सार्वजनिक किया है, जिसमें लिखा गया है कि एप्पल को एफबीआई का साथ देते हुए फोन को एनक्रिप्ट करना होगा. एप्पल का आरोप है कि अदालत के फैसलों को आम तौर पर सील लगा कर रखा जाता है और इसे सार्वजनिक करना केवल दबाव बनाने की प्रक्रिया का हिस्सा है. एप्पल अपने बयान पर अटल है कि एक फोन का एनक्रिप्शन करने से सभी फोनों की सुरक्षा में सेंध लग सकती है.
आईबी/आरपी (रॉयटर्स,एएफपी)
इंटरनेट में कैसे रहें सतर्क
आप इंटरनेट में इस वक्त इस वेबसाइट पर ये तस्वीरें देख रहे हैं, यह बात सिर्फ आप ही नहीं जानते. इंटरनेट में मौजूद हैकर भी आपको यह करते देख रहे हैं. जानिए कैसे रहें इंटरनेट में सतर्क.
तस्वीर: Fotolia/davidevison
अमेरिकी खुफिया एजेंसी एनएसए ने केवल अमेरिकी नागरिकों और नेताओं की ही नहीं, बल्कि दुनिया भर के लोगों की जासूसी की. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल के मोबाइल फोन की जासूसी पर काफी बवाल खड़ा हुआ.
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फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों के पास आपकी अलग अलग जानकारी होती है. पूरी जानकारी को कंपनी का हर सदस्य नहीं देख सकता है. उनके पास आपका नियमित डाटा होता है, वे आपके मेसेज नहीं खोल सकते हैं.
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लेकिन जब खुफिया एजेंसी के पास आपके कंप्यूटर पर चल रहे माइक्रोसॉफ्ट प्रोसेसर से लेकर आपके गूगल, फेसबुक और दूसरे अहम अकाउंट की जानकारी होती है तो उनके पास सब कुछ होता है.
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इन एजेंसियों के पास ऐसे सॉफ्टवेयर होते हैं कि वे जब चाहें आपके कंप्यूटर से खुद अपने कंप्यूटर को जोड़ कर आपकी हर हरकत का पता कर सकते हैं.
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हालांकि अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित कानून के अनुसार केवल जिस व्यक्ति पर शक है, उसके अकाउंट से जुड़ी जानकारी के लिए खुफिया एजेंसी को पहले अदालत से अनुमति लेनी होती है. इसके आधार पर उन्हें इंटरनेट कंपनियां सर्वर तक की पहुंच देती हैं.
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थोड़ी बहुत इंटरनेट जासूसी सभी देशों की सरकार करती है. यह देश की सुरक्षा के लिए अहम भी है. इसमें कंप्यूटर के डाटा के साथ साथ आपके फोन की सारी जानकारी भी मौजूद है.
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बड़े कैमरे से कोई आप पर नजर रखे तो आप उस से बच भी सकते हैं, लेकिन जासूसी ऐसे स्तर पर हो रही है कि आईक्लाउड और एयर एंड्रॉयड जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल भी सुरक्षित नहीं है.
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ऐसा नहीं है कि ये मामले यहीं थम जाएंगे. ऐसे सिस्टम की कमी है जो निजता को पूरी तरह सुरक्षित रखने के लिए आश्वस्त कर सके.