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एफडीआई और हताश भारतीय उद्योगपति

२ दिसम्बर २०११

रिटेल क्षेत्र में एफडीआई की योजना ने भले ही नेताओं की राजनीति के लिए दरवाजे खोल दिए हों लेकिन भारत का कारोबारी जगत इससे बुरी तरह परेशान है. बड़े उद्योगपती कहते हैं कि नेताओं की वजह से भारत का आर्थिक विकास दांव पर है.

तस्वीर: UNI

संसद के शीत काल का आधा समय एफडीआई की भेंट चढ़ चुका है और संसद में चार दिन की छुट्टी कर दी गई है. अगला सत्र सात दिसंबर को होना है. बीजेपी और दूसरी पार्टियां एफडीआई का विरोध कर रही हैं. लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का कहना है कि वह इसका विरोध भी करेंगी और सरकार के साथ भी बनी रहेंगी. यानी राजनीति के लिए कुछ भी किया जा सकता है.

तस्वीर: AP

टाटा का ट्वीट

भारत के प्रमुख उद्योगपति रतन टाटा ने देश के नेताओं पर अपना गुस्सा उतारा है. उन्होंने ट्वीट किया है, "राजनीतिक मतभेद और निजी स्वार्थ को कभी भी भारत के आर्थिक विकास में आड़े नहीं आने दिया जाना चाहिए." उन्होंने लिखा है, "यह हर भारतीय के लिए राष्ट्रीय गौरव की बात है कि वह भारत के प्राचीन गौरव को स्थापित करने में मदद करे."

रिटेल क्षेत्र में विदेशी निवेश का फैसला इस कदर तूल पकड़ चुका है कि इस बात की भी संभावना जताई जाने लगी है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस फैसले को वापस ले सकते हैं या फिर लंबे वक्त के लिए ठंडे बस्ते में डाला जा सकता है. हालांकि पिछले हफ्ते जब यह फैसला किया गया तो भारत के उद्योग जगत ने इसका स्वागत किया था और भारतीय बाजार भी ऊपर चढ़े थे. कुछ हलकों में यह भी चर्चा चली कि भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को पीछे छोड़ने में यह फैसला कारगर साबित हो सकता है.

तस्वीर: UNI

लेकिन फैसले के बाद जिस तरह से राजनीति शुरू हुई, उसका कोई हिसाब नहीं. भारत के करोड़ों खोमचो वालों और छोटे दुकानदार की भलाई के बारे में बीसियों साल में एक शब्द भी न बोलने वाले नेता अचानक उनके खैरख्वाह बन गए. हर नेता उनका भला सोचने लगा. यहां तक कि बीजेपी की उमा भारती तो यहां तक कह गईं कि अगर कोई विदेशी रिटेल शॉप भारत में खुलता है तो वह अपने हाथों से उसमें आग लगा देंगी.

माल्या की नाराजगी

भारत में संघर्ष कर रहे किंगफिशर एयरलाइंस के मालिक और राज्यसभा सांसद विजय माल्या ने ट्वीट किया, "राजनीति जिस तरह काम करती है, उसे देखना अद्भुत है. पार्टी लाइन से अलग कई नेता इस बात को मानते हैं कि एफडीआई सही कदम है लेकिन उनके लिए पार्टी लाइन पर बने रहना जरूरी है."

बीजेपी ने इस मुद्दे को आड़ बना कर अपनी राजनीति चमकाने की कोशिश की है. कारोबारियों के हक की बात करते हुए पार्टी ने एक दिन भारत बंद का एलान कर दिया, जिसका ठीक ठाक असर हुआ. लेकिन इसका खामियाजा सबसे ज्यादा रिटेल क्षेत्र के छोटे दुकानदारों को ही उठाना पड़ा, जिनकी दुकानें पूरे दिन बंद रहीं और रोजी रोटी के लिए उनके हाथ एक भी धेला नहीं आया. भारत के बड़े उद्योगपति कई मौकों पर खुले तौर पर कह चुके हैं कि अगर भारत को आगे बढ़ना है तो इस तरह की राजनीति से बाज आना होगा. विप्रो के अध्यक्ष अजीम प्रेमजी कह चुके हैं कि सरकार में फैसला लेने की क्षमता रखने वाले नेताओं की बुरी तरह कमी देखी जाती है.

भारत के सबसे अमीर व्यक्ति और रिलायंस इंडस्ट्रीज के मालिक मुकेश अंबानी ने हाल ही में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में भारतीय राजनीति पर सवाल उठाते हुए कहा, "हमें यह नहीं कहना चाहिए कि लोकतंत्र की व्यवस्था में हम पंगु हो जाएंगे. वहां एक पार्टी सत्ता में होती है और एक विपक्ष में, हम कुछ नहीं कर सकते हैं. मुझे इस बात का खतरा सताता रहता है."

रिपोर्टः रॉयटर्स, एएफपी, पीटीआई/ए जमाल

संपादनः एन रंजन

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