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एफडीआई पर कुरुक्षेत्र बनता बंगाल

३ अक्टूबर २०१२

खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के मुद्दे पर पश्चिम बंगाल भारत का कुरुक्षेत्र बनता नजर आ रहा है. ममता बनर्जी इसके खिलाफ लड़ाई को दिल्ली तक ले जाने के बाद अब पूरे देश में फैलाने की योजना बना रही हैं.

तस्वीर: DW

ममता ने पिछले महीने केंद्र सरकार के फैसले के बाद ही इसे वापस लेने का अल्टीमेटम दिया था. जब केंद्र ने इस मामले में ममता के दबाव के आगे झुकने से इनकार किया तो ममता ने अपने आधा दर्जन मंत्रियों से इस्तीफे दिला कर उससे समर्थन ही वापस ले लिया. ममता ने कोलकाता में ही एफडीआई के विरोध में विशाल रैली निकाली. उसके बाद वह इस लड़ाई को इस सप्ताह दिल्ली ले गई हैं. वहां एक रैली में उन्होंने केंद्र को चेतावनी दी है कि तृणमूल कांग्रेस संसद के अगले सत्र में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव भी पेश कर सकती है. ममता ने केंद्र पर आरोप लगाया है कि वह किसानों के हितों को न देखकर वालमार्ट जैसी अमेरिकी कंपनियों के लिए काम कर रहा है. तृणमूल ने इस मुद्दे पर पटना और लखनऊ समेत देश के तमाम प्रमुख शहरों में विरोध प्रदर्शन और धरने की योजना बनाई है.

कांग्रेस का जवाबी वार

तस्वीर: DW

ममता ने एफडीआई के मुद्दे पर अगर आस्तीनें चढ़ा ली हैं तो कल तक राज्य में उनकी सरकार में शामिल रही कांग्रेस भी अब उनको आंखें दिखाने लगी है. ममता जिस दिन एफडीआई के विरोध में दिल्ली में प्रदर्शन कर रही थी उसी दिन कांग्रेस कोलकाता में ममता के घर के ठीक बगल में आयोजित पार्टी की रैली में उनका पुतला जला रही थी. कांग्रेस ने ममता पर दिखावे के लिए इस मुद्दे पर केंद्र का विरोध करने का आरोप लगाया है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य कहते हैं, "एफडीआई से किसानों को फायदा होगा. उनको अपने उत्पादों की वाजिब कीमतें मिलेंगी. लेकिन ममता यह सब जानते हुए भी बेवजह इसका विरोध कर रही हैं." कांग्रेस ने ममता के खिलाफ अपनी लड़ाई उनके घर से ही शुरू की है. रैली में तमाम नेताओं ने बागी तेवर दिखाते हुए ममता को जम कर खरी-खोटी सुनाई. सांसद दीपा दासमुंशी कहती हैं, "ममता अपनी आलोचना करने वाली हर आवाज का गला घोटने का प्रयास कर रही हैं."

सीपीएम भी मैदान में

तस्वीर: DW

तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस में लगातार बढ़ती दूरियों से उत्साहित सीपीएम भी अब इस मौके को भुनाने में जुट गई है. यही वजह है कि ममता के दिल्ली में प्रदर्शन के दौरान ही उसने भी यहां एक रैली आयोजित कर डाली. इसमें तमाम नेताओं ने ममता पर दौहरा रवैया अपनाने और राज्य के विकास को उपेक्षित करने का आरोप लगाया. पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य कहते हैं, "राज्य में एक महिला मुख्यमंत्री के रहते महिलाएं बेहद असुरक्षित हैं. महिलाओं के खिलाफ अत्याचार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. लेकिन इस पर ध्यान देने के बजाय मुख्यमंत्री चुनावी राजनीति में जुटी हैं." दरअसल, ममता ने एफडीआई का विरोध करते हुए जिस तरह केंद्र से नाता तोड़ लिया उससे सीपीएम की रणनीति को झटका लगा है. वह इस मुद्दे पर पिछड़ गई है. इसलिए उसने ममता को ही निशाने पर ले लिया है.

असमंजस में किसान

बंगाल में राजनीतिक दल एफडीआई के मुद्दे पर भले ही एक दूसरे को पछाड़ने में जुटे हों, किसानों और छोटे व्यापारी इस मुद्दे पर साफ बंटे हुए हैं. बर्दवान जिले में आलू की खेती करने वाले तन्मय मंडल कहते हैं, "सुना है अमेरिकी कंपनी के यहां आने से हमें अपनी फसल की समुचित कीमत मिलेगी. अभी तो बिचौलिए ही असली मुनाफा लूट लेते हैं. हमारी तो उत्पादन लागत भी वसूल नहीं होती." बांकुड़ा के एक व्यापारी ज्योतिर्मय दास कहते हैं कि बाजार में प्रतियोगिता बढ़ने पर फायदा तो किसानों और व्यापारियों को ही होगा. "बड़ी कंपनियों से मुझे तो अपने कारोबार पर कोई खतरा नहीं नजर आता." लेकिन उत्तर दिनाजपुर में अनानास की खेती करने वाले धीरेन मान्ना को डर है कि विदेशी कंपनियां उनकी फसल औने-पौने दामों पर खरीद कर भारी मुनाफा कमाएंगी. वह कहते हैं, "मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर आगे क्या होगा? हर राजनीतिक दल अलग-अलग तरीके से इसकी व्याख्या कर रहा है."

तस्वीर: DW

तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस और सीपीएम के तेवरों से साफ है कि आने वाले दिनों में यह लड़ाई और तेज होगी. ममता की ओर से अविश्वास प्रस्ताव पेश करने के बारे में पूछने पर बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने मंगलवार को कोलकाता में कहा कि जब तक आंकड़े अपने पक्ष में नहीं हों, तब तक ऐसा कोई प्रस्ताव पेश करना बेमतलब है. बीजेपी फिलहाल इस मुद्दे पर ममता का मन भांपने में जुटी है. एफडीआई की आंच पर सिंकती राजनीति की अलग-अलग रोटियों के बीच बंगाल के किसान और छोटे व्यापारी कभी इस पार्टी का मुंह ताक रहे हैं तो कभी उस पार्टी का.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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