एफ-35 और यूरोफाइटर लड़ाकू विमान खरीदने की तैयारी में जर्मनी
१४ मार्च २०२२
जर्मनी एफ-35 और यूरोफाइटर लड़ाकू विमान खरीदने की योजना बना रहा है. यूक्रेन युद्ध के बाद जर्मनी ने रक्षा बजट में भारी बढ़ोत्तरी करने के साथ ही आने वाले सालों में इसे जीडीपी के दो फीसदी से ऊपर रखने का भी एलान किया है.
तस्वीर: Fabrice Coffrini/AFP/Getty Images
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तकरीबन तीन दशकों से जर्मन वायु सेना टॉरनाडो लड़ाकू विमानों से अपना काम चला रही है. ये लड़ाकू विमान अमेरिकी परमाणु हथियारों के साथ हमला करने में सक्षम हैं और इन्हें नाटो की प्रतिरक्षा बनाए रखने के लिए जर्मनी में तैयार किया गया है. यूक्रेन युद्ध के साथ बदली परिस्थितियों में जर्मनी ने अचानक से अपने रक्षा खर्च में भारी बढ़ोत्तरी करने का फैसला किया है.
संसद से जुड़े एक सूत्र ने सोमवार को जानकारी दी है कि सरकार अमेरिका से एफ-35 लड़ाकू विमान खरीदने की योजना बना रही है. इसके अलावा 15 यूरोफाइटर लड़ाकू विमान भी खरीदने की योजना पर भी काम चल रहा है.
एफ 35 और यूरोफाइटर
बीते कई दशकों में यह पहला मौका है कि जर्मनी अपनी सेना को आधुनिक और उन्नत बनाने पर विचार कर रहा है. अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन के बनाए एफ 35 को इस समय दुनिया का सबसे उन्नत लड़ाकू विमान माना जाता है. इसकी खास आकृति और खास कोटिंग की वजह से यह दुश्मन देश के रडार की पकड़ में नहीं आता. वहीं यूरोफाइटर को कई देशों की कंपनियों ने मिल कर बनाया है, जिसमें एयरबस कंपनी भी शामिल है. इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक युद्ध और एस्कोर्ट जैसे दूसरे कामों में हो सकता है.
जर्मनी यूरोफाइटर भी खरीदने पर विचार कर रहा है तस्वीर: AP
जर्मन चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने फरवरी में कहा था कि जर्मनी इस साल सेना पर अतिरिक्त 100 अरब यूरो खर्च करेगा. बीते कई सालों से जर्मन सेना के आधुनिकीकरण का काम अटका हुआ है. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी में दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पहली बार सेना पर होने वाले खर्च में भारी बढ़ोत्तरी की होने की उम्मीद है.
अमेरिका कई सालों से जर्मनी पर रक्षा खर्च बढ़ाने के लिए दबाव डाल रहा है. अमेरिका यूरोपीय देशों से अपनी जीडीपी का कम से कम दो फीसदी रक्षा पर खर्च करने की बात कहता आया है. यूक्रेन युद्ध के बाद जर्मनी ने खर्च बढ़ाने का रास्ता चुना है.
लड़ाकू विमान की साझी परियोजना
हालांकि, एफ-35 की खरीदारी से साझा यूरोपीय लड़ाकू विमान विकसित करने की कोशिशों पर सवाल उठ रहे हैं. फ्यूचर कॉमबैट एयर सिस्टम के नाम से जाने वाले इस विमान को फ्रांस के राफाल और जर्मनी-स्पेन के यूरोफाइटर की जगह लेने के लिए तैयार किया जाना है. 2040 तक इस विमान को तैयार करने लक्ष्य रखा गया है.
जर्मनी के बेड़े में फिलहाल टॉरनाडो लड़ाकू विमान हैं.तस्वीर: Sean Gallup/Getty Images
जर्मन चांसलर ने इस प्रोजेक्ट को लेकर आशंकाओं को पिछले महीने खारिज किया था. उनका कहना है कि संयुक्त यूरोपीय परियोजना अत्यंत जरूरी है. शॉल्त्स का कहना है, "मेरे लिए यह बेहद अहम है कि हम यूरोपीय सहयोगियों के साथ मिल कर अगली पीढ़ी के विमान और टैंक बनाएं." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जर्मन सेना को अपने टॉर्नाडो बेड़े को बदलना होगा क्योंकि यह पुराना हो गया है.
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यह पहली बार है कि यूरोपीय जमीन पर इतने बड़े स्तर की लड़ाई हो रही हो. इसी ने तमाम यूरोपीय देशों को अपनी रक्षा जरूरतों के बारे में नए सिरे से सोचने पर मजबूर किया है.
एनआर/आरएस (एएफपी, डीपीए)
सबसे ज्यादा सैन्य खर्च करने वाले 10 देश
दुनिया भर में सैन्य खर्च लगातार बढ़ रहा है. स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया के बड़े देश अब सुरक्षा तकनीकों पर बड़ी राशि खर्च कर रहे हैं. एक नजर आंकड़ों पर.
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सालाना खर्च
स्वीडन की संस्था सिपरी की सालाना रिपोर्ट बताती है कि साल 2018 में दुनिया भर का सैन्य खर्च करीब 1.822 ट्रिलियन डॉलर मतलब रहा. पिछले साल के मुकाबले यह खर्च 2.6 फीसदी तक बढ़ा है.
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सबसे आगे
सैन्य खर्च बढ़ाने वाले देशों में अमेरिका सबसे आगे है. रिपोर्ट कहती है कि 2017 के मुकाबले 2018 में खर्च 4.6 फीसदी तक बढ़ गया. कुल मिलाकर अमेरिका ने करीब 649 अरब डॉलर रक्षा तकनीकों और सेना पर खर्च किया. रिसर्चरों के मुताबिक पिछले सात सालों में हुई यह पहली बढ़ोतरी है, और भविष्य में इसमें इजाफा हो सकता है.
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चीन
अमेरिका के बाद नंबर आता है चीन का. चीन ने अपना सैन्य खर्च पिछले साल के मुकाबले करीब 5 फीसदी तक बढ़ाया है जो तकरीबन 250 अरब डॉलर तक बैठता है. जानकारों के मुताबिक चीन ने लगातार 24वें साल सैन्य खर्च में बढ़ोतरी की है.
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सऊदी अरब
चीन के बाद तीसरे स्थान पर है सऊदी अरब. सऊदी अरब ने तकरीबन 67.6 अरब डॉलर सैन्य खर्च पर लगाए हैं. कुछ समय पहले सिपरी की हथियारों से जुड़ी एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया था कि सऊदी अरब दुनिया का सबसे बड़ा हथियार आर्म इम्पोर्टर देश बन गया है.
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भारत
इस सूची में चौथे स्थान पर भारत का नाम आता है. साल 2018 में भारत का सैन्य खर्च करीब 66.5 अरब डॉलर के करीब रहा. जानकार मानते हैं कि इस बढ़ोतरी का एक बड़ा कारण पाकिस्तान और चीन के साथ तनाव बढ़ना भी है.
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फ्रांस
पांचवें स्थान पर आने वाले फ्रांस का सैन्य खर्च करीब 63.8 अरब डॉलर रहा. पिछले साल के मुकाबले फ्रांस के सैन्य खर्च में 1.6 फीसदी की कटौती दर्ज की गई है.
तस्वीर: Reuters/G. Fuentes
रूस
रूस का सैन्य खर्च तकरीबन 61.4 अरब डॉलर रहा. 2006 के बाद यह पहला मौका है जब रूस सैन्य खर्च करने वाले टॉप पांच देशों में शामिल नहीं है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 के बाद से ही देश के सैन्य खर्च में लगातार कटौती हुई है.
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ब्रिटेन
सूची में सातवें स्थान पर बने ब्रिटेन का सैन्य खर्च तकरीबन 50 अरब डॉलर रहा. रिपोर्ट में कहा गया है कि कुल सैन्य खर्च का 60 फीसदी हिस्सा टॉप 5 देशों से आता है.
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जर्मनी
जर्मनी भी सैन्य खर्च के मामले में ब्रिटेन के काफी नजदीक है. जर्मनी का सैन्य खर्च 49.5 अरब डॉलर के करीब रहा. जर्मनी के सरकारी चैनल एआरडी ने अपने सर्वे में बताया था कि तकरीबन 53 फीसदी जर्मन लोग रक्षा खर्च में बढ़ोतरी का समर्थन नहीं करते हैं.
तस्वीर: Imago/Est/Ost
बाकी देश
नौंवें स्थान पर रहे जापान ने करीब 46.6 अरब डॉलर सैन्य खर्च में लगाए. इसके बाद 43.1 अरब डॉलर के साथ दक्षिण कोरिया का नंबर आता है.