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'एमटीवी से मक्का तक' की कहानी

२६ जून २००९

एमटीवी से मक्का तक - जर्मनी की पहली एमटीवी वीजे क्रिस्टियाने बाखर की बहुत ही व्यक्तिगत किताब है. 1995 ने इसलाम कबूल किया, पाकिस्तान के सबसे मशहूर क्रिकटर इमरान खान की वजह से.

लेखक क्रिस्टियाने बाकरतस्वीर: DPA

हैमबर्ग की क्रिस्टियाने बाकर ने वह जिंदगी जी है जो दुनियाभर के लाखों युवा जीना चाहते हैं. 43 साल की क्रिस्टियाने एमटीवी में वीजे रहीं. इसके अलावा उन्होंने कई दूसरे टीवी चैनलों पर भी कई शो पेश किए. मॉडोना हो या माईकल जैक्सन, ब्रैड पिट या टॉम क्रूस, क्रिस्टियाने की मुलाकात सबसे हुई. क्रिस्टियाने की जिंदगी बस एक बड़ी पार्टी थी, कभी कुछ घंटों के लिए एक शहर में फिर कुछ घंटों बाद दूसरे शहर में. क्रिस्टियाने बहुत ख़ूबसूरत हैं. ऊंची और छरछरी कद काठी, भूरे बाल और शालीन व्यक्तित्व. लेकिन अंदर से क्रिस्टियाने खालीपन महसूस करने लगी. उन्होने अपनी डायरी में लिखा है,

"मैं इतना बुरा महसूस कर रही हूँ जितना शायद पहले कभी नहीं किया. हर दिन मैं इतना काम करती हूँ, लेकिन मैं अकेले ही होतीं हूं. किस दिशा में मेरी ज़िंदगी जा रही है, कुछ समझ नहीं आ रहा है."

फिर क्रिस्टियाने की मुलाकात लंदन में इमरान खान से हुई. किस्मत समझिए या संयोग -दोनों में प्यार हो गया. क्रिस्टियाने शादी और अपने एक परिवार पाने का सपना संजोने लगीं. इमरान के साथ वह क़ुरान भी पढ़ने लगी और बार इमरान उन्हें पाकिस्तान भी लेकर गए. क्रिस्टियाने के लिए यह एक बिल्कुल नई दुनिया थी.

"इस्लाम में पहली चीज़ तो यह है कि हर दिन कई बार नमाज़ पढ़ने से ईश्वर के साथ रिश्ता बहुत गहरा हो जाता है. बंदा पांच बार नमाज़ पढ़ता है और अपने आपको बार-बार ईश्वर से जोड़ता है. इससे आध्यात्मिकता बहुत सहज और सुगम हो जाती है. ईसाइयत में वह इतनी सुगम नहीं है. यह बात भी है कि अतीत में ईसाई चर्च के विभिन्न धार्मिक सिद्धांत ठीक से मेरे पल्ले नहीं पड़ रहे थे-- जैसे, ईसाइयत में त्रिमूर्ति या त्रिदेव वाला सिद्धांत. मुझे यह बात भी जंचती है कि इस्लाम में बच्चा जन्म के समय हर पाप से मुक्त होता है. मैं ईसायत की इस बात को समझ नहीं पाती कि कोई बच्चा शुरू से ही पापों का गठरी ले कर पैदा होता है. इस तरह, तार्किक और बौद्धिक दृष्टि से इस्लाम को मैं कहीं बेहतर समझ पाती हूं. इसमें लोगों से मिली उस आत्मीयता का भी बहुत बड़ा हिस्सा है, जिनसे मैं मिली हूं."

क्रिस्टियाने अब लंबे कपड़े पहनने लगी थी. छोटे मिनी स्किर्ट या टॉप नहीं. वह स्वीकार करतीं है कि इमरान खान अपना कैंसर अस्पताल बनाने के काम में व्यस्य रहने की वजह से उनको ज़्यादा वक्त नहीं दे पाते थे. उनके मां बाप और दोस्तों को शक होता है लेकिन क्रिस्टियाने इमरान खान पर अपने विश्वास के साथ उनके शक को दूर कराती रही. लेकिन जब अचानक इमरान खान ने उनके साथ रिश्ता तोड़ दिया तब क्रिस्टियाने को सदमा लगता है. कुछ समय बाद उनकी शादी फिर जेमाईमा गोलडस्मिथ से हो जाती है. क्रिस्टियाने का सपना अधूरा रह जाता है. फिर भी वह 1995 में इस्लाम को कबूल करती हैं. उनका कहना है कि उन्होंने इमरान खान को माफ़ कर दिया क्योंकि इमरान ने उनको एक रास्ता दिखाया जो बहुत ज़रूरी था. ख़ासकार जर्मन मीडिया में इस बात को लेकर काफी विवाद उठे. एक टीवी चैनल के साथ क्रिस्टियाने का कॉनट्रैक्ट भी रद्द कर दिया गया और क्रिस्टियाने को बहुत सी खरी खोटी बातें भी सुननी पड़ीं. क्रिस्टियाने का मानना है कि इस्लाम के नाम पर किए गए हमलों की वजह से दुनियाभर में इस्लाम को शक की नज़र से देखा जाता है.

"मैं समझती हूं कि जब से ईसाई योद्धा धर्मयुद्ध के नाम पर येरुसलेम को हथियाने और कथित दुष्ट मुसलमानों के होश ठिकाने निकले थे, तभी से यह मिथ्या प्रचार चल रहा है. या शायद तब से चल रहा है, जब तुर्क विएना तक पहुंच गये थे. अपरिचित लोगों से डर का हमेशा कोई ऐतिहासिक कारण होता है. लेकिन, मैं यह नहीं समझ पाती कि गौएटे के समय, जब पूर्वदेशीय साहित्य ने यूरोप में रोमैंटिक आन्दोलन को प्रेरणा दी, गौएटे, लेसिंग, शिलर तक जब उससे प्रेरित हुए, तब, मेरा अनुमान है कि हमारे यहां कहीं अधिक खुलापन था. कम से कम सांस्कृतिक धरातल पर दूसरे धर्मों और संस्कृतियों के प्रति कहीं अधिक समझबूझ थी."

क्रिस्टियाने इस बात पर ज़ोर देतीं हैं कि वह लोगों का धर्म परिवर्तन नहीं करना चाहतीं हैं या इसलाम का महिमामंडन कतई नहीं करना चाहती हैं. उनका अपना रास्ता है और इस रास्ते ने उनको अपनी असली पहचान तक पहुंचाया. पांच बार दिन में नमाज़ पढ़ना, शराब न पीना, सभी धार्मिक और व्रत के दिनों का पालन करना, गरीबों को दान देना- क्रिस्टियाने का कहना है कि यह सब उनको सहारा देता है.

"मेरी इस किताब के जरिए यही कामना है कि मैं लोगों को अपना आध्यात्मिक पक्ष जानने के लिए प्रेरित कर सकूं. लोग अपना मन और अपना दिल खोलें. दूसरी और इस्लाम के प्रति जो पूर्वाग्रह हैं मैं उनको कम करने में योगदान देना चाहती हूं. मै दो अलग संस्कृतियों के बीच पुल बनाना चाहती हूं, क्योंकि मैं अब दोनों को जानती हूँ. मै एक समवाद पैदा करना चाहती हूँ."

इस्लामी दुनिया के मशहूर कवि और रहस्यवादी जलालुद्दीन रूमी और अल्लामा इकबाल के लेखन को पढ़ना क्रिस्टियाने को बहुत अच्छा लगने लगा. वह अरबी भी सीखने लगी. होमेओपाथी की भी पढ़ाई की. हज पर भी गईं. साथ ही कई मुस्लिम देशों की यात्रा भी उन्होंने की. इसके बाद उन्होंने एक जर्मन इस्लामविद् के साथ शादी की. लेकिन यह शादी भी टूट गई. फिर एक ऐक्सक्लूसिव वेबसाईट और दोस्तों के ज़रिए क्रिस्टियाने की मुलाकात मोरोक्को के मशहूर टीवी जर्नलिस्ट रशीद जफार से हुई. जल्द ही दोनों शादी करने के सोचते हैं. एक बार फिर क्रिस्टियाने एक सपना देखतीं हैं. लेकिन शादी के बाद रशीद उन पर बहुत ज्यादा बंदिशें थोपने लगे. और इस तरह दो अलग संस्कृतों के बीच का फ़ासला शादी में अड़चन बनने लगा.

तस्वीर: DPA

"एक दूसरे का आदर करना सबसे महत्वपूर्ण है. दूसरे को समझने की कोशिश होनी चाहिए, एक खुलापन होना चाहिए. दूसरे के इतिहास को समझना बहुत ज़रूरी है. मैं एक दिन में तो अरबी महिला नहीं बन सकतीं हूं, चाहे मैं कितनी भी कोशिश करूं. मेरे पति ने मुझे शादी के पहले नहीं बताया था कि उसे यह पसंद नहीं कि मैं अन्य पुरूषों के साथ संपर्क में रहूं और वह यह चाहते थें कि एक न एक दिन मैं काम करना बंद कर दूं. चलो, मेरी यह शादी भी सफल नहीं रही. लेकिन ऐसा मैं अपने साथ दोबारा नहीं होने दूंगी."

क्रिस्टियाने की किताब आने के बाद यह भी कहा गया कि वह बहुत भोली है, खासकर यह देखते हुए कि कई मुस्लिम देशों में महिला अधिकारों का उल्लंघन होता है. इस पर क्रिस्टियाने का कहना है कि आम तौर पर यह कहना गलत है कि कि इस्लाम महिला अधिकारों के खिलाफ है. इसलाम में तो कतई यह नहीं लिखा है कि कोई महिला किसी पुरूष से कम है. अगर ऐसा इस्लामी देशों में देखने को मिलता है तो वह इसलिए क्योंकि वह धर्म और संस्कृति की व्याख्या अलग तरीके से करते हैं. क्रिस्टियाने का कहना है कि वक्त ने उसको शांत बनाया. आज वह एक ट्रैवल चैनेल के लिए एक शो पेश करतीं हैं और अंतरराष्ट्रीय चैनल एब्रू टीवी के लिए एक शो भी करती हैं जिसका नाम है „Matters of Faith“. इस वक्त क्रिस्टियाने अकेली रहतीं लेकिन उन्हें उम्मीद है कि एक ना एक दिन उन्हें एक सच्चा साथी मिलेगा. इंशाल्लाह.

रिपोर्ट- प्रिया एसेलबॉर्न

संपादन - अशोक कुमार

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