दुनिया की दिग्गज तकनीकी कंपनियां ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को लेकर अपनी प्रतिबद्धतायें पूरी करने में असफल साबित हो रहीं हैं. वहीं कुछ कंपनियां अभी भी अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल को लेकर अनिच्छुक नजर आ रहीं हैं. ग्रीनपीस अमेरिका की ग्रीनर इलेक्ट्रॉनिक्स से जुड़ी एक रिपोर्ट में यह बताया गया है. रिपोर्ट में ऐसी 17 कंपनियों की आलोचना की गयी है जो अब तक बड़े स्तर पर रिसाइकल उत्पादों के इस्तेमाल करने में असफल रहीं. साथ ही जिन्होंने उत्पादन प्रक्रिया में विषाक्त पदार्थों के इ्स्तेमाल को अब तक नहीं घटाया है. ग्रीनपीस अमेरिका से जुड़े गैरी कुक के मुताबिक, "तकनीकी कंपनियां, इनोवेशन के मामले में स्वयं को अग्रणी कहती हैं लेकिन इनका आपूर्ति तंत्र पुराने औद्योगिक ढांचे में ही फंसा हुआ है." रिपोर्ट में सर्वाधिक मांग में रहने वाले स्मार्टफोन और टैबलेट जैसे आधुनिक मोबाइल कंप्यूटिंग उपकरणों के पीछे छिपी लागत का जिक्र भी किया गया है.
दुनिया परेशान है. धरती गर्म हो रही है और उसका असर जलवायु पर हो रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर धरती को गर्म होने से रोका नहीं गया तो इंसान का जीना मुश्किल हो जाएगा.
तस्वीर: AFP/Getty Images/P. J. Richardsग्रीनहाउस प्रभाव एक प्राकृतिक क्रिया है जो धरती को इतना गर्म कर रही है कि इंसान का आराम से रहना मुश्किल होता जा रहा है. नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, कार्बन डाय ऑक्साइड और दूसरी गैसों की अदृश्य चादर धरती को घेर रखा है और वह सूरज की गर्मी को सोख कर रखता है.
तस्वीर: picture-alliance/chromorangeमानव गतिविधियों की वजह से लगातार कार्बन डाय ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है. पेडों का कटना हो, कोयला जलाना या तेल और पेट्रोल से गाड़ी चलाना, यह सब कार्बन डाय ऑक्साइड के उत्सर्जन में योगदान देता है. अतिरिक्त कार्बन वायुमंडल में अतिरिक्त चादर तैयार करती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/I. Wagnerइंसान इस समय पहले से कहीं ज्यादा ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार 2014 में 53 अरब टन के बराबर ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन हुआ. सन 1970 से 2000 के बीच के 1.3 प्रतिशत के मुकाबले 2000 के बाद के वर्षों में सालाना वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत रही है.
तस्वीर: picture-alliance / dpaहर साल निकलने वाली ग्रीनहाउस गैसों का सबसे बड़ा हिस्सा यानि 35 प्रतिशत बिजली के उत्पादन की प्रक्रिया में पैदा होता है. 24 प्रतिशत के साथ कृषि और जंगलों का कटना दूसरे नंबर पर है. भारी उद्योग 21 प्रतिशत ग्रीनहाउस गैसों के लिए जिम्मेदार है तो परिवहन 14 प्रतिशत के लिए.
तस्वीर: Getty Images/AFP/R. Alvesजलवायु सम्मेलनों के जरिये धरती के गर्म होने को औद्योगिक क्रांति से पहले के स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस पर रोकने की कोशिश हो रही है. इसके लिए वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के संकेंद्रण को 450 पार्टिकल पर मिलियन के स्तर पर रोकना होगा. सन 2011 में औसत संकेंद्रण 430 पीपीएम था.
तस्वीर: picture-alliance/dpaधरती का तापमान 1880 से 2015 के बीच 1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. लेकिन यह हर कहीं बराबर नहीं है. समुद्र की तुलना में जमीन पर तापमान में ज्यादा वृद्धि देखी गई है. उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर भी तापमान में अधिक वृद्धि हुई है. साल 2015 के अब तक के सबसे ज्यादा गर्म होने का अनुमान है.
तस्वीर: DW/I. Quaileसंयुक्त राष्ट्र की विज्ञान संस्था का कहना है कि यदि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी नहीं की गई तो 2100 तक वैश्विक तापमान 3.7 से 4.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ जाएगा. 2 डिग्री सेल्सियस की सीमा में रहने के लिए 2030 तक पर्यावरण तकनीक में सैकड़ों अरब डॉलर के निवेश की जरूरत होगी.
तस्वीर: Getty Images/AFP/E. Abramovich टॉप कंपनियां
एमेजॉन अमेरिकी की इकलौती ऐसी कंपनी है जिसे इस सर्वे में पर्यावरण प्रतिबद्धताओं के मानक स्तर पर सबसे कम अंक प्राप्त हुए हैं. कुछ ऐसा ही हाल चीन की कंपनियों का भी है. ग्रीनपीस के मुताबिक, "एमेजॉन अपने कार्यों के बारे में सबसे कम खुलासा करती है और कंपनी ग्रीनहाउस गैस फुटप्रिंट की भी कोई जानकारी नहीं देती." सैमसंग इलेक्ट्रॉनिक्स का प्रदर्शन भी बेहतर नहीं कहा जा सकता. रिपोर्ट के मुताबिक, सैमसंग ने अपनी उत्पादन ऊर्जा की जरूरतों को पूरा करने के लिए अक्षय ऊर्जा का महज एक फीसदी ही इस्तेमाल किया है. वहीं इसके इतर एप्पल ने अक्षय ऊर्जा का अपने परिचालन में लगभग 96 फीसदी इस्तेमाल किया है. नीदरलैंड्स की तकनीकी कंपनी फेयरफोन को ग्रीनपीस की इस रिपोर्ट में अक्षय ऊर्जा का इस्तेमाल करने वाली सबसे अग्रणी कंपनी कहा गया है.
एए/आईबी (एपी, एएफपी)