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"एलटीटीई पर जीत में भारत का हाथ"

२३ अगस्त २००९

यूं तो भारत इस बात से इनकार करता रहा है कि उसने तमिल विद्रोही संगठन एलटीटीई के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए श्रीलंका को किसी तरह के हथियार दिए. लेकिन एक नई किताब का दावा है कि एलटीटीई पर जीत के पीछे भारत का "गुपचुप हाथ" रहा है.

लिट्टे प्रमुख की मौत के बाद ख़त्म हुआ युद्धतस्वीर: AP

रक्षा मामलों के पत्रकार नितिन गोखले की किताब "श्रीलंका, फ़्रॉम वार टू पीस" कहती हैं कि पहले तो श्रीलंका के राष्ट्रपति महेंदा राजपक्षे को भारत ने सलाह दी कि वह तमिल विद्रोहियों से बातचीत करके विवाद को सुलझाएं लेकिन फिर उनकी यह बात भारत सरकार को जंचने लगी कि बातचीत के नाम पर मिलने वाले वक़्त में लिट्टे ख़ुद को और एकजुट और हथियारों से लैस कर रहा है. इस तरह युद्ध टालना मुश्किल हो गया था.

एनडीटीवी के रक्षा और रणनीतिक मामलों के संपादक गोखले ने श्रीलंका में चले 33 महीनों के युद्ध की रिपोर्टिंग की. उनकी किताब कहती है कि भारत ने 2002 में श्रीलंका को सुकन्या श्रेणी की गश्ती नौकाएं दी. इसके बाद भारत ने गुपचुप तरीक़े से श्रीलंका को एमआई 17 लड़ाकू हेलीकॉप्टर भी दिए. घने जंगलों के बीच एलटीटीई के ठिकानों को भेदने में इन हेलीकॉप्टरों का बड़ा हाथ रहा.

गोखले ने अपनी किताब में लिखा है कि घरेलू मजबूरियों के चलते भारत को गुपचुप तरीक़े से श्रीलंका को साज़ोसामान देना पड़ा. ख़ासकर चुनाव से पहले कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार तमिलनाडु में अपने अहम सहयोगी डीएमके को नाराज़ नहीं करना चाहती थी. इसीलिए वह श्रीलंका से यह कहती रही कि एलटीटीई के ख़िलाफ़ लड़ाई बंद की जाए.

गोखले कहते हैं कि अगर भारत ने श्रीलंका की गोपनीय तरीक़े से मदद की है तो वहीं श्रीलंकाई वायुसेना को चीन और पाकिस्तान का भी भरपूर सहयोग मिला. पाकिस्तानी अधिकारियों ने श्रीलंकाई सैनिकों को ट्रेनिंग दी तो चीन ने उन्हें नाज़ुक वक़्त पर अहम सैन्य उपकरण दिए. चीन ने श्रीलंका को चार एफ़7 जीएस लड़ाकू विमान दिए जो आज श्रीलंकाई वायुसेना के अत्याधुनिक लड़ाकू विमान हैं.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

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