एवरग्रीन हैं बॉलीवुड सिनेमा के हीरो
२२ अगस्त २०१३भारत में फिल्मों की सफलता इस आधार पर निर्भर करती है कि अमुक फिल्म में कौन सा अभिनेता मुख्य किरदार में है और उसकी कितनी लोकप्रियता है. जो अभिनेता लोकप्रिय होगा उसे फिल्म निर्माता लीड रोल में रखना पसंद करेगें, वैसे भी आजकल फिल्में युवाओं को केन्द्रित करते हुए बनाई जा रही हैं ऐसे भी अभिनेता अपने आपको नौजवानों की भूमिका अदा करते नजर आते हैं. अभिनेता युवाओं के बीच अपनी लोकप्रियता को बरकरार रखने के लिए अपनी उम्र से कम दिखने वाले रोल करना पसन्द करते हैं. - अंकप्रताप सिंह, अलीगढ, उत्तर प्रदेश
भारतीय सिनेमा की एक एक फिल्म करोडों अरबों का व्यवसाय करती हैं और इसका बहुत बडा हिस्सा युवा वर्ग की जेब से आता है. युवा वर्ग की फिल्मों को युवा कलाकार ज्यादा अच्छी तरह से करते हैं. माता पिता तथा खलनायक की आयु प्रौढ़ या बूढे रुप में पसंद की जाती रही थी, पर वर्तमान युवा दर्शक खलनायक को भी युवा देखना चाहता है. भारतीय सिनेमा की लिहाज से आज की फिल्में युवा कलाकारों द्वारा युवाओँ के लिए ही बन रही है- जाकिर हुसैन
असल में भारतीय सिनेमा बपौती है कुछ अभिनेताओं की जो की आज के दौर में अपने आप में चर्चित होने के साथ साथ उन अभिनेताओं के मित्र है जिनको एक अच्छी शुरुआत चाहिए इसलिए तकरीबन उम्र दराज अभिनेताओं के साथ युवा काम कर रहा है अपने आपको प्रसिद्द करने के लिए. अभिनेताओं के बच्चे इसी लिए कार्य कर रहे है एक और ख्याति पाने के लिए और दूसरी और वे अभिनेता अपनी मित्रता भी निभा रहे है. - मनीष प्रतापगढ़ी
बॉलीवुड सिनेमा में हीरो एवरग्रीन होता है. वह चाहता है कि दर्शकों पर हमेशा उसकी छवि नायक की ही बनी रहे. भारतीय सिनेमा में कलाकारों को किसी एक ही इमेज में बंध जाने का खतरा भी लगातार रहता है. यदि किसी कलाकार ने एक बार चरित्र अभिनेता के तौर पर किरदार निभा लिया तो निर्माता उसे फिर उसी रोल में देखना ज्यादा पसंद करते हैं. इसलिए चाहकर भी अभिनेता हिरोगिरी से हटकर अभिनय करना पसंद नहीं करता, बहुत मजबूरी ही हो जाए तो बात अलग है. दूसरा प्रमुख कारण स्क्रिप्ट राइटिंग का भी है. पटकथाएं नायक के ही इर्द-गिर्द घूमती रहती है इसलिए हीरो दोयम दरजे के रोल कर अपने आपको कमतर नहीं आंकना चाहते. हां आजकल भारत में भी सार्थक और यथार्थ सिनेमा धीरे-धीरे अपनी पहचान बना रहा है शायद अब हीरो के मापदंड भी बदल जाएं. - माधव शर्मा, राजकोट, गुजरात
भारत में अभिनेता एक अभिनेता नहीं बल्कि एक हीरो की छवि रखते है. ऐसा हीरो जिसकी उम्र उसकी छवि पर कोई प्रभाव नहीं डालती. लोग उन्हें 21 साल के नौजवान के तौर पर ही देखना चाहते है भले ही वो 40 साल के ऊपर के हो. हिन्दी फिल्मों के हीरो तो एक तरफ दक्षिण के विख्यात अभिनेता रजनीकांत आज भी नौजवान की भूमिका में ही स्क्रीन पर दीखते है भले ही वह नाना बन गए हों. भारतीय फिल्मों में अभिनेता एक ब्रांड की तरह उपयोग में लाए जाते है ताकि औसत कहानी भी हीरो के बल पर कमाई कर सके भले और कोई भी फिल्मकार नौजवान अभिनेता की जगह जांचे परखे और विख्यात अभिनेता को लेना चाहता है ताकि उसकी फिल्म इन हीरो के नाम पर चल जाए भले ही कहानी जैसी भी हो. - प्रशांत शर्मा.
मुख्य कलाकारों की जरुरत प्रत्येक फिल्म में होती है और ये मुख्य कलाकार मतलब हीरो जवान ही दिखाए जाते हैं क्योंकि फिल्मों में रोमांटिक सीन, गाने, एक्शन, युवा लाइफ का फिल्मांकन युवा चेहरे पर ही फबते हैं. आजकल भारतीय सिनेमा में ढलती उम्र के कलाकार भी कॉलेज लाईफ, लव अफेयर व अन्य युवा रोल कर रहे हैं इसका मुख्य कारण है कि निर्माता निर्देशक नए कलाकारों के साथ रिस्क नहीं लेना चाहते हैं तो उमर के अगले पडाव में पहुंच रहे कलाकार दर्शकों का मोह और अच्छी कमाई नहीं छोड पा रहे हैं.- सलमा, रायबरेली
बालीवुड में आज भी बूढे हो चले उम्र दराज कलाकारों की फिल्में भी बहुत शौक से देखी जाती हैँ प्राण, अमिताभ बच्चन, देवानन्द, धर्मेन्द्र, अमरीश पुरी, अनुपम खेर, रेखा, हेमामालिनी आदि कलाकारों ने अपना लोहा जवानी के बाद बढती उम्र में भी मनवाया है. बहुत बडे युवा दर्शकों के वर्ग लिए युवा कलाकारों की जरुरत पडती है ताकि रोमांस, डांस और गानों को फिल्मों में जगह मिल सके. भारतीय सिनेमा में बढती उम्र के कलाकारों द्वारा युवा रोल करने पीछे उनकी अपनी दर्शकों के बीच युवा इमेज और अधिक कमाई मुख्य कारण है. दूसरी तरफ फिल्म निर्माता निर्देशक बड़े बजट से बनती फिल्मों में जमे जमाए बढ़ती उम्र के कलाकारों को छोडकर नयी उम्र के कलाकारों के साथ फिल्म बनाने का जोखिम नही लेना चाहते हैं. अनिल कुमार द्विवेदी, अमेठी, उत्तर प्रदेश
मेरे विचार से हम भारतीयों के लिए उम्र कोई मायने नही रखती. अगर आपके अंदर जोश हिम्मत विशवास और कर गुजरने की इच्छाशक्ति है तो आप अपनी उम्र को क्यूं देखेगें उदाहरण अगर हमारे पिताजी साथ में काम कर रहे है और हम थक जाएं ऐसा हो ही नही सकता. जहां तक रोल कि बात है वो अपना पुराना रोल जिस रोल को निभाते-निभाते उनको जो शोहरत हासिल हुई हो वो भला अपना रोल कैसे छोड़ेगा? इसके अलावा आज-कल की फिल्मों में अगर दर्शक अपने पुराने एक्टर को देखकर फिल्म पसंद करते हैं और फिल्म निर्माता उन्हें चाह कर भी नही छोङ़ते. चेनाराम, जिला बाड़मेर, राजस्थान
भारत विश्व में सबसे ज्यादा संख्या में फिल्में बनाता है. सिनेमा अधिकांश पब्लिक के लिए मनोरंजन का एक स्रोत है और कुछ के लिए एक प्रेरणा स्रोत भी. फिल्मों का विश्लेषण करें तो यह साफ दिखता है कि भारतीय फिल्मों के अभिनेता बढ़ती उम्र के बावजूद भी नौजवान लड़कों की छवि वाले पात्र निभाते रहते है. मेरे विचार में फिल्मे जब बनती हैं उसमे काफी हद तक उस समय के लोगों की सोच, स्थिति तथा चरित्र को दर्शाया जाता है. तो इस प्रकार, एक विशेष युग की फिल्मों और समकालीन समाज के बीच एक भारी संबंध है. ...... अगर हम हॉलीवुड की फिल्मों पर नजर डालें तो 80 के दशक में साइंस फिक्शन शीर्ष पर था, उस युग की वैज्ञानिक प्रगति को दर्शाती है. 70 के दशक में भारतीयों में धार्मिक फिल्में ज्यादा प्रचलित थी, और 90 के दशक आते आते रोमांटिक फिल्म मुख्यधारा बन गई है. यह काफी हद तक समकालीन समाज और जनसांख्यिकी को प्रतिबिंबित करता है. .... वैसे भी सिनेमा आखिरकार व्यपार ही तो है और अंत में लाभ और नुकसान फिल्म निर्माताओं को देखना पड़ता है. कोई भी निर्माता युवा वर्ग की आकांक्षाओं को नजरअंदाज नहीं कर सकता. तो अभिनेताओं का उम्र चाहे कितनी भी हो, उसे जो रोल मिलते हैं उसमें शत प्रतिशत अपने उम्र से कहीं कम नौजवान की छवि वाले पात्र निभाना पड़ता है. और हो भी क्यों न, आज के भौतिकवादी समाज में पब्लिक अभिनेताओं से ऐसी पेशकश की उम्मीद करते है जिसमें गाने और डांस, रोमांस से भरी फिल्मों में 'फिट' कर सकें.
अक्षय प्रकाश, बैंगलोर
संकलनः विनोद चड्ढा
संपादनः आभा मोंढे