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एवरेस्ट से भी ऊंचा इलेक्ट्रॉनिक कचरे का ढेर

१४ दिसम्बर २०१७

बीते पांच साल में आपने कितने मोबाइल फोन या हेडफोन खरीदे और आज वो कहां हैं? इंसान के इलेक्ट्रॉनिक कचरे को एक साथ ले आएं तो माउंट एवरेस्ट से ऊंचा पहाड़ बन जाएगा.

Indien Müll in Bangalore
तस्वीर: Manjunath Kiran/AFP/Getty Images

दुनिया भर में सिर्फ 20 फीसदी इलेक्ट्रॉनिक कचरा ही रिसाइकिल हो रहा है. बाकी का 80 फीसदी कचरा प्रकृति को गंदा कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र की मदद से हुए एक शोध के मुताबिक 2016 में दुनिया भर में 4.5 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा हुआ. अगर इस कचरे को एक जगह जमा कर दिया जाए तो माउंट एवरेस्ट से ऊंचा पहाड़ बन जाएगा या फिर आइफिल टावर जैसी 4,500 संरचनाएं बन जाएंगी.

इंटरनेशनल टेलिकम्युनिकेशन यूनियन और इंटरनेशनल सॉलिड वेस्ट एसोसिएशन के शोध के मुताबिक लोगों की बढ़ती आय और सस्ते इलेक्ट्रॉनिक आइटमों के चलते ई-कचरा बड़ा सिरदर्द बन चुका है. 2014 में इलेक्ट्रॉनिक कचरा 4.1 करोड़ टन था. आशंका है कि 2021 तक यह 5.25 करोड़ टन पहुंच जाएगा.

(देखिये किस इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में कितना सोना होता है)

इलेक्ट्रॉनिक आइटमों को रिसाइकिल करने से सोना, चांदी, तांबा, प्लेटिनम और पलेडियम जैसी बहुमूल्य धातुएं मिलती हैं. 2016 में रिसाइक्लिंग से 55 अरब डॉलर का कच्चा माल निकला. वह भी सिर्फ 20 फीसदी इलेक्ट्रॉनिक कचरे से. अगर सारा इलेक्ट्रॉनिक कचरा रिसाइकिल होता तो सैकड़ों अरब डॉलर बचाए जा सकते थे.

समुद्र में मछलियां कम, प्लास्टिक ज्यादा

2016 में सबसे ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक कचरा चीन में पैदा हुआ, 72 लाख टन. दूसरे नंबर पर अमेरिका रहा. प्रति व्यक्ति इलेक्ट्रॉनिक कचरा पैदा करने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सबसे ऊपर हैं. वहां हर साल एक शख्स 17.3 किलोग्राम इलेक्ट्रॉनिक कचरा छोड़ता है. इसमें से सिर्फ 6 फीसदी ही जमा किया जाता है. यूरोप में सबसे ज्यादा करीब 35 फीसदी इलेक्ट्रॉनिक कचरा इकट्ठा किया जाता है.

इलेक्ट्रॉनिक कचरे में पुराने बैटरी सेल, सीएफएल बल्ब, मोबाइल फोन, सीडी प्लेयर, सीडी, पुरानी मशीनें और टीवी व कंप्यूटर तक होते हैं. जमीन पर बिखरने और पानी के संपर्क में आने से इनमें केमिकल रिएक्शन होता है और कई विषैले पदार्थ पर्यावरण में घुलते हैं. इनके संपर्क में आने से इंसान, पेड़ पौधे और जानवरों पर बुरा असर पड़ता है. नदी या झीलों में तार अन्य चीजों के संपर्क में आकर जाल सा बनाते हैं और बहाव को प्रभावित भी करते रहते हैं.

ओएसजे/एमजे (एपी, डीपीए, रॉयटर्स)

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