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एशियाई खेलों के अलावा सब में लगा निशाना

२३ दिसम्बर २०१०

2010 निशानेबाजों के लिए अच्छा साल रहा. बस एशियाई खेलों में भारत के निशानेबाज मेडलों पर निशाना नहीं लगा पाए. हालांकि कॉमनवेल्थ खेलों में रिकॉर्ड तोड़ 30 पदक भारत के शूटर्स ने कमाए.

तस्वीर: AP

लेकिन इन तीस पदकों की तुलना में ग्वांगझो में भारतीय निशानेबाज सिर्फ 8 ही पदक कमा पाए. लेकिन कुल मिला कर साल अच्छा रहा.

विश्व चैंपियनशिप में गगन नारंग और अभिनव बिंद्रा ने दस मीटर एयर राइफल प्रतियोगिता में टीम इवेंट और एकल में स्वर्ण पदक जीता. साथ ही विजय कुमार, ओंकार सिंह, गुरप्रीत सिंह और अनीसा सैयद ने भारत को गौरव दिलाया.

तस्वीर: AP

कॉमनवेल्थ के शानदार प्रदर्शन के बाद भारतीय टीम से उम्मीदें बहुत थीं लेकिन चीन में वह उतना शानदार निशाना नहीं साध सके. कॉमनवेल्थ में मिले 14 स्वर्ण, 11 रजत और 5 कांस्य की तुलना में ग्वांगझो में 4 कांस्य,3 रजत और एक स्वर्ण पर सिमट कर रह गए. राष्ट्रीय कोच सनी थॉमस ने कहा, "हमने वर्ल्ड चैंपियनशिप में अच्छा खेला और कॉमनवेल्थ में तो हम बहुत बढ़िया खेले लेकिन एशियन गेम्स में प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. तो हम कह सकते हैं कि हमारे लिए यह एक मिला जुला साल रहा."

अगर व्यक्तिगत प्रदर्शन की बात करें तो गगन नारंग छाए रहे. साल भर में उन्होंने अच्छा खेल दिखाया और 16 मेडल जीते जिनमें 4 स्वर्ण पदक भी शामिल हैं. एशियन शूटिंग संघ के मुताबिक गगन नारंग इस साल एशिया में पहले नंबर पर हैं.

चीन के चू छिनान से फाइनल में हारने के बावजूद अंकों के आधार पर नारंग पहले नंबर पर बने हुए हैं. जब कोच थॉमस से पूछा गया कि 2010 में भारत का सर्वश्रेष्ठ निशानेबाज वह किसे मानते हैं तो उनका जवाब रहा, "बिना किसी संदेह के गगन हैं. इस साल में वह शूटिंग में शानदार रहे. रोंजन भी अच्छा खेले और एशियाड में उन्होंने सोना जीत कर हमारी लाज रखी. लेकिन गगन का प्रदर्शन पूरे साल अच्छा रहा."

तस्वीर: UNI

2010 में गगन नारंग के अलावा हरिओम सिंह, रोंजन सोढ़ी, अशेर नोरिया और तेजस्विनी सावंत ने ध्यान खींचा.

नारंग और हरिओम ने 2012 के लंदन ओलंपिक्स में जगह बना ली है. सोढ़ी ने एशियाड से पहले तुर्की में आईएसएसएफ वर्ल्ड कप में सोना जीता. म्यूनिख में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में सोना जीतने वाली तेजस्विनी सावंत पहली भारतीय महिला निशानेबाज रहीं.

बड़े इवेंट

निशानेबाजों की टीम ने बहुत जल्दी जल्दी एक के बाद एक तीन बड़ी विश्व प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया जिसमें वर्ल्ड चैंपियनशिप, कॉमनवेल्थ और एशियाड शामिल हैं.

विश्व चैंपियनशिप में पदकों की दौड़ शुरू करने के बाद भारतीय निशानेबाज कॉमनवेल्थ में छा गए. भारत के कोच कहते हैं, "एक के बाद एक तीन बड़ी प्रतियोगिताओं के कारण कॉमनवेल्थ जैसा अद्भुत प्रदर्शन खिलाड़ी एशियाड में नहीं दिखा पाए. वहां उनका प्रदर्शन टॉप पर था और निशानेबाजी में लंबे समय तक चोटी पर बने रहना असंभव है. शूटिंग में आराम का समय बहुत अहम होता है और उन्हें यह समय नहीं मिला. शारीरिक आराम तो जरूरी है लेकिन शूटिंग में मानसिक आराम भी मायने रखता है. इसलिए हम शूटर्स पर आरोप नहीं लगा सकते. उन्होंने बहुत कड़ी मेहनत की है."

हालांकि अभिनव बिंद्रा 2008 में बीजिंग में स्वर्ण जीतने के बाद उतना अच्छा प्रदर्शन फिर से नहीं कर सके. शॉटगन के मुगबलों में भी भारत का प्रदर्शन चिंताजनक रहा. कॉमनवेल्थ में 30 पदकों में से सिर्फ तीन ही शॉटगन से निकले. डबल ट्रैप वर्ल्ड रिकॉर्ड रखने वाले सोढ़ी, पूर्व विश्व चैंपियन मानवजित संधु, नोरिया के टीम में होने के बावजूद शॉटगन में भारत आगे नहीं आ पाया. हालांकि यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि 2010 भारतीय निशानेबाजों के लिए निश्चित ही एक अच्छा साल रहा.

रिपोर्टः पीटीआई/आभा एम

संपादनः एन रंजन

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