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एशिया का दबदबा होगा, बशर्ते..

२ अगस्त २०११

इस सदी के मध्य तक एशिया भी उतना ही अमीर हो सकता है जितना यूरोप है. लेकिन एशिया विकास बैंक का कहना है कि इसके लिए एशियाई देशों को असमानता और भ्रष्टाचार से लेकर जलवायु परिवर्तन तक की समस्याओं से निपटना होगा.

तस्वीर: AP

मौजूदा रुझान पर गौर करें तो 2050 में विश्व अर्थव्यवस्था का 50 फीसदी उत्पादन एशिया में होगा. इसका मतलब है कि और तीन अरब लोग समृद्ध हो जाएंगे और उनकी आमदनी उतनी हो जाएगी जितनी यूरोप में आज है. लेकिन एशिया विकास बैंक (एडीबी) की रिपोर्ट में एक विरोधाभास की तरफ भी ध्यान दिलाया गया है. दुनिया में सबसे तेजी से उभरते हुए जिस हिस्से को आज 'एशिया फैक्ट्री' नाम दिया जा रहा है, वहां अब भी दुनिया के लगभग आधे अत्यधिक गरीब लोग रहते हैं. इन लोगों की एक दिन भी आमदनी 55 रुपये से भी कम है.

बैंक के ताजा अध्ययन में कहा गया है कि एशिया जिस प्रगति के रास्ते पर जा रहा है, उसके पीछे दशकों की मेहनत है. इसका नेतृत्व सात देश कर रहे हैं जिनकी आबादी तीन अरब से ज्यादा बैठती हैं. ये देश हैं चीन, भारत, इंडोनेशिया, जापान, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड और मलेशिया.

आर्थिक फायदों को सब तक पहुंचाना अब भी एक चुनौती हैतस्वीर: AP

एशिया का दबदबा होगा

सबसे अच्छी हालात में लाओस और पाकिस्तान जैसे गरीब देशों को मिला कर एशिया का कुल सकल घरेलू उत्पाद 2050 में बढ़ कर 17,400 अरब डॉलर हो जाएगा जो पिछले साल 1,700 अरब डॉलर रहा. मौजूदा कीमत के आधार पर प्रति व्यक्ति आय बढ़ कर 40,800 डॉलर हो जाएगी.

लेकिन यह विकास तभी मुमकिन है जब एशिया के उभरते हुए देश जापान, दक्षिण कोरिया औऱ सिंगापुर से सबक लें जिन्होंने आर्थिक प्रगति के फायदों को अपनी सारी जनता तक पहुंचाया है. रिपोर्ट के मुताबिक, "एशिया ऐतिहासिक बदलाव के दौर से गुजर रहा है."

मनीला स्थित एडीबी बैंक के अध्यक्ष हारुहीको कुरोदा कहते हैं कि विकासशील एशिया ने वित्तीय संकट और आर्थिक मंदी से निकलने के रास्ते सुझाए हैं. मौजूदा रुझान पर आधारित यह अध्ययन कहता है, "2050 तक प्रति व्यक्ति आय बढ़ कर छह गुनी हो जाएगी और खर्च करने की क्षमता आज के यूरोप के बराबर हो जाएगी. मौजूदा मानकों के हिसाब से तीन अरब लोग समृद्धि के दायरे में आ जाएंगे. तब तक विश्व सकल घरेलू उत्पादन में एशिया की हिस्सेदारी 52 प्रतिशत हो जाएगी. एशिया आर्थिक रूप से उसी तरह दबंग हो जाएगा जैसा वह 300 साल पहले यानी औद्योगिक क्रांति से पहले था."

भारत में आबादी का बड़ा हिस्सा सड़कों पर जिंदगी बसर करता हैतस्वीर: picture-alliance/ dpa/dpaweb

कम नहीं चुनौतियां

अध्ययन में कहा गया है कि उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के सामने 'मध्य-आय-जाल' में फंसने का भी खतरा है जो निर्यात के आधार पर एक दम तेज प्रगति के बाद गिरावट या फिर ठहराव की अवधियों में फंसने को कहते हैं. रिपोर्ट में अन्य अहम चुनौतियों का भी जिक्र किया गया है. इनमें देशों के भीतर बढ़ती असमानता, कुप्रशासन और भ्रष्टाचार का खास तौर से जिक्र किया जा सकता है. साथ ही सीमित प्राकृतिक संसाधनों के लिए होड़ भी बढ़ती जा रही है.

रिपोर्ट के मुताबिक सबसे खराब स्थिति में एशिया खराब मैक्रो-अर्थव्यवस्था से जुड़ी नीतियों, वित्तीय सेक्टर में अनियंत्रित उफान, संकट, जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाओं, बदलती जनसांख्यिकी और खराब शासन के एक तूफान का भी सामना कर सकता है. एशिया की वृद्धि को टिकाऊ बनाने के लिए जरूरी है कि देश गरीबी हटाने,सब को पूरे अवसर और शिक्षा देने, उद्योग को बढ़ावा देने और तकनीक में निवेश के बारे में ध्यान दें.

एशिया में आर्थिक प्रगति की अगुवाई चीन और भारत जैसे देश कर रहे हैंतस्वीर: AP

अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन एशिया के विकास के लिए 'एक वाइल्ड कार्ड' है. यह क्षेत्र पहले ही दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले ज्यादा तूफान, बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं की मार झेल रहा है. ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण हिमालय और अन्य पहाड़ी इलाकों में ग्लेशियरों के पिघलने का खतरा है जहां से एशिया की प्रमुख नदियों को पानी जाता है. ये नदियां 2.8 अरब लोगों को पानी, खाना, मछली और बिजली मुहैया कराती हैं. रिपोर्ट में कहा गया है, "जलवायु परिवर्तन हर किसी को प्रभावित करेगा. दुनिया की आधी आबादी एशिया में रहती है, इसलिए उस पर असर भी ज्यादा होगा."

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः आभा एम

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