एशिया का परमाणु बिजली पर जोर
११ मार्च २०१३फुकुशिमा में हुई परमाणु दुर्घटना के दो साल बाद भी विश्व भर में परमाणु ऊर्जा को विदा कहने की कोई संभावना नहीं दिख रही है. बहुत सी सरकारों के लिए अभी भी परमाणु बिजली ऊर्जा जरूरतों को अपरिहार्य हिस्सा है. यह खासकर एशिया के लिए लागू होता है. 2012 के अंत में 14 देशों में 68 परमाणु रिएक्टरों के निर्माण का काम चल रहा था, जिनमें 44 एशिया में हैं. विश्व भर में करीब 110 रिएक्टर योजना के विभिन्न स्तर पर हैं, जिनमें आधे चीन और भारत में हैं. चीन और भारत अपनी बिजली में परमाणु बिजली का हिस्सा अगले दस से पंद्रह सालों में बढ़ाकर चार और नौ प्रतिशत करना चाहते हैं.
इस महात्वाकांक्षा का लाभ जर्मनी की आरेवा कंपनी को भी मिल रहा है. यह फ्रांस की आरेवा कंपनी का उपक्रम है और असैनिक परमाणु तकनीक के मामले में अगुआ है. कंपनी के प्रवक्ता श्टेफान पुर्शे ने डॉयचे वेले को बताया, "आरेवा इस समय तार बिजलीघर बना रहा है, एक फ्रांस में, एक फिनलैंड में और दो चीन में. एशिया बाजार के तेज विकास के कारण उसका खास महत्व है. अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी आईएईए के अनुसार 2035 तक दुनिया भर में बिजली की खपत 70 गुना बढ़ेगी, जिसका आधा हिस्सा चीन और भारत में होगा." पुर्शे का कहना है कि इस विशाल बाजार में आरेवा हिस्सा लेना चाहता है, लेकिन सिर्फ परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि नवीनीकृत ऊर्जा के क्षेत्र में भी.
चीन की पहल
चीन इस समय अपनी नवीनीकृत ऊर्जा स्रोतों का भारी विस्तार कर रहा है. वह इस समय पवन ऊर्जा का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया है. बीजिंग की सरकार पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले कोयले पर निर्भरता समाप्त करना चाहती है. यह बहुत बड़ी चुनौती है, क्योंकि सारे प्रयासों के बावजूद चीन में कोयले से बिजली बनाने का उद्योग भी उतनी ही तेजी से बढ़ेगा जितनी तेजी से पवन उर्जा, पनबिजली और परमाणु ऊर्जा.
बीजिंग के चिंगहुआ यूनिवर्सिटी के परमाणु ऊर्जा विशेषज्ञ झाऊ झीवाई का कहना है कि चीन सरकार के लिए परमाणु ऊर्जा का सामरिक महत्व है. चीन के राजनीतिज्ञों और वैज्ञानिकों की राय है कि कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में महत्वपूर्ण कमी परमाणु भर्जा के बिना नहीं की ज सकती. जिस तरह से परमाणु रिएक्टर बनाए जा रहे हैं चीन 2020 तक 60-70 गीगावाट परमाणु बिजली बनाने लगेगा. लगभग इतना ही इस समय फ्रांस की परमाणु बिजली क्षमता है. पनबिजली का उत्पादन बढ़ाने में प्राकृतिक और राजनीतिक समस्याएं हैं, क्योंकि इससे पड़ोसियों के साथ विवाद का खतरा है.
भारत का विरोध
चीन का पड़ोसी भारत भी परमाणु ऊर्जा के विस्तार पर जोर दे रहा है. 2010 से फ्रांस के साथ ईपीआर प्रकार के छह आधुनिक प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर बनाने के लिए बातचीत चल रही है, जिसे अरेवा कंपनी महाराष्ट्र में बनाएगी. इस समय चीन में लगाए जा रहे अमेरिकी कंपनी वेस्टिंगहाउस के मॉडल एपी 1000 के साथ ईपीआर को सुरक्षा के क्षेत्र में मानक माना जाता है, कम से कम इंजीनियरों के नजरिए से.
फिर भी भारत में बहुत से लोग चिंतित हैं. ग्रीनपीस की कार्यकर्ता करुणा रैना ने डॉयचे वेले को बताया कि परमाणु बिजलीघरों का विरोध सिर्फ तमिलनाडु के कुडनकुलम में लगाए गए रूसी तकनीक के खिलाफ नहीं हो रहा है, बल्कि महाराष्ट्र के जैतापुर प्रोजेक्ट के खिलाफ भी. "फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसोआ ओलांद के फरवरी में भारत दौरे से पहले भारत सरकार ने बिजलीघर की जमीन के अधिग्रहण के लिए किसानों को दी जाने वाली हर्जाना राशि बढ़ा दी. लेकिन किसानों ने नई पेशकश भी ठुकरा दी जबकि वह बाजार दर से बहुत ज्यादा है. इसकी वजह यह है कि वे इस इलाके में परमाणु बिजलीघर बनाने के खिलाफ हैं."
इसमें संदेह है कि स्थानीय आबादी का विरोध भारती की परमाणु बिजली योजनाओं को प्रभावित कर पाएगा. भारतीय सुरक्षा विशेषज्ञ उदय भास्कर का कहना है कि घरेलू विरोध को सुलझाया जा सकता है. वे कहते हैं, "परमाणु बिजली के हिस्से में संतुलित वृद्धि जरूरी है क्योंकि भारत को उपलब्ध स्रोतों से बिजली चाहिए." लेकिन भारत का परमाणु जवाबदेही कानून भी देरी की वजह बन सकता है. यह अभी संसद में है. करुणा रैना कहती हैं कि कानून के पास होने पर सैद्धांतिक रूप से हर इंसान दुर्घटना की स्थिति में परमाणु संयंत्र बनाने वाली कंपनी पर भारतीय अदालत में हर्जाने के लिए मुकदमा कर सकता है.
जापान में परिवर्तन
जापान के फुकुशिमा में तीन रिएक्टरों में परमाणु छड़ों के पिघलने और चेरनोबिल की तुलना में बीस प्रतिशत कम रेडियोधर्मी विकिरण के निकलने के बाद भी देश परमाणु ऊर्जा को अलविदा नहीं कह पाया है. परमाणु पार्टी एलडीपी के शिंजो आबे की नई सरकार ने परमाणु बिजलीघरों को बंद करने के पिछली सरकार के फैसले को बदल दिया है. आबे ने पिछले दिसंबर में अपनी पार्टी की जीत के फौरन बाद फुकुशिमा के दौरे पर कहा कि परमाणु बिजलीघरों को आननफानन में बंद नहीं किया जा सकता.
इस समय जापान में 50 रिएक्टरों में से सिर्फ दो काम कर रहे हैं. बाकी 48 का क्या होगा, यह सवाल अभी खुला है. नए रिएक्टर बनाने की योजनाओं को भी पूरी तरह रोका नहीं गया है. बिजली बनाने के लिए जापान को प्राकृतिक कच्चा माल आयात करना पड़ रहा है जिसके कारण उसका विदेश व्यापार घाटा रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है. यह परमाणु ऊर्जा के समर्थकों के लिए एक गंभीर दलील हो सकती है.
वाणिज्य मंत्रालय से स्वतंत्र जापानी परमाणु नियामक संस्था एनआरए की सुरक्षा शर्तें पहले से ज्यादा सख्त कर दी गई हैं. इसके तहत ऐसे परमाणु संयंत्रों को बंद किया जा सकता है जो भूकंप के खतरे वाले इलाकों में हैं. हालांकि यह व्याख्या पर निर्भर करता है. जापान में परमाणु ऊर्जा के आलोचकों की चिंता है कि परमाणु उद्योग और नियामक संस्था के बीच डील हो सकती है.
सोने की खान
भले ही घरेलू बाजार में नए ऑर्डर न मिल रहे हों, पड़ोसी देशों में जापानी परमाणु तकनीक की भारी मांग है. वियतनाम 2020 तक अपना पहला परमाणु रिएक्टर बनाना चाहता है. 2030 तक कम से कम आठ और रिएक्टर लगाए जाएंगे. रूस और जापान ने वियतनाम के साथ रिएक्टर बनाने के कई समझौते किए हैं. जापान का अर्धसरकारी परमाणु संस्थान जेएईए करीब दस साल से वियतनाम के परमाणु तकनीशियनों को ट्रेनिंग दे रहा है.
वियतनाम की योजना को परमाणु ऊर्जा के समर्थक समझे जाने वाले और सरकार के सलाहकार हीएन फाम दुई भी आलोचना करते हैं. उनका कहना है कि इस योजना में वियतनाम जैसे कम विकसित देशों में परमाणु बिजली के खतरों पर ध्यान नहीं दिया गया है. उनका कहना है कि देश में सभी गतिविधियों में खराब सुरक्षा संस्कृति देखी जा सकती है.
इंडोनेशिया में भी सरकार बिजली की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए परमाणु ऊर्जा का विस्तार करना चाहती है. एक गीगावाट की क्षमता वाले चार परमाणु संयंत्र 2015 तक काम करने लगेंगे. परमाणु एजेंसी बाटान के प्रवक्ता फरहत अजीजी सुरक्षा मानकों में कमी की आलोचना ठुकरा देते हैं. उनका कहना है कि दूसरे देशों ने भी अपना कार्यक्रम तकनीक को सौ फीसदी समझ लेने के बाद नहीं शुरू किया. "अमेरिका को अगर छोड़ दिया जाए तो फ्रांस को अमेरिका से कुछ जानकारी मिली, यही बात जर्मनी, जापान और कोरिया के लिए भी सही है. इसलिए यदि हम भी ऐसा कर रहे हैं तो कोई गलती नहीं है. मुझे विश्वास है कि इंडोनेशिया के वैज्ञानिकों के पास पर्याप्त ज्ञान और अनुभव है." इंजोनेशिया ने जियोथर्मी के स्रोतों का इस्तेमाल शुरू किया है जिसके 27 गीगावाट होने के संकेत हैं. जर्मन विकास बैंक केएफडब्ल्यू के अनुसार आचेह और सुलावेसी में पहले बिजलीघरों का निर्माण तैयारी के स्तर पर है.
रिपोर्ट: हंस स्प्रॉस/एमजे
संपादन: मानसी गोपालकृष्णन