एशिया में आर्थिक विकास और मीडिया बूम
१७ जुलाई २००८हाल ही में रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की रिपोर्ट में बताया गया कि एशिया में सबसे ज़्यादा संख्या में पत्रकार अपने काम के दौरान मारे गए. श्रीलंका में एक टीवी पत्रकार सैनिकों और तमिल विद्रोहियों की मुठभेड़ के दौरान मारा गया, पाकिस्तान में समय समय पर कबीलाई इलाकों में पत्रकारों के मरने की खबरें आती रहती हैं. चीन की सरकार इंटर्नेट की निगरानी कर दलाई लामा के समर्थकों पर नियंत्रण रख रही है.
एशिया का आर्थिक विकास तो हो रहा है लेकिन प्रेस स्वतंत्रता अब भी इस महाद्वीप के कई देशों में एक अंजान शब्द है. इलेक्ट्रोनिक मीडिया यानि टीवी, रेडियो और इंटर्नेट का विकास कुछ हद तक इस बात की उम्मीद दिलाता है कि लोकतंत्र, मानवाधिकार और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष जैसे मुद्दे उठाए जा रहे हैं चाहे चीन हो या फिर म्यांमार.
इंटर्नेट, मोबाइल के ज़रिये मीडिया बूम
दुनिया की आधी आबादी एशिया में रहती है और ज़ाहिर है हर देश में मीडिया एक जैसा नहीं है. वैसे कुछ एक समानताएं हैं. मिसाल के तौर पर मीडिया बूम. सिंगापुर में एशियन मीडिया सूचना और संचार सैंटर के महासचिव डॉ. इंद्रजीत बैनर्जी बताते हैं कि " इंटर्नेट का इस्तेमाल करने वालों में पिछले महीने चीन, अमेरिका को पछाड़ कर नंबर एक पर आ पहुंचा यानि 22 करोड़ इंटर्नेट यूसर हैं वहां. भारत में हर महीने 90 लाश लोग मोबाइल यूसर बन रहे हैं. हर साल भारत की तीन अरब की जनता फिल्मे देखती है. दिलचस्प बात ये है कि अब भारतीय फिल्म इंडस्ट्री विदेश में भी अपना पैर जमा रही है."
आधूनिक मीडिया पर नियंत्रण अब मुश्किल
एशिया में ख़ास तौर पर आधूनिक मीडिया का विकास तेज़ी से हो रहा है. इस वजह से सरकारों के लिए मीडिया पर नियंत्रण रखना भी मुश्किल होता जा रहा है. दक्षिण-पूर्वी एशिया में मीडिया के विकास को देख रहे मीडिया-विशेषज्ञ ड्रू मेकडैनिएल मलेशिया और इंडोनेशिया का उदाहरण देते हैं कि वहां सरकारी मीडिया की वजह से सांप्रदायिक हिंसा पर नियंत्रण लाया गया जो राष्ट्रीय एकजुटता बनाए रखने के लिए कुछ हद तक ज़रूरी भी है. वो याद दिलाते हैं कि मलेशिया में 60 के दशक में "मीडिया पर जिम्मेदारी सौंपी गई कि वो देश के विभिन्न समुदायों को एक साथ लाए और शांति की गैरंटी दे. "
क्या नफरत को बढ़ावा दे रहा है मीडिया?
एशिया में हर रोज़ निजी मीडिया कंपनियां वजूद में आ रही हैं. लेकिन हर सिक्के के दो पहलू होते हैं. क्या ऐसा नहीं है कि सूचना के इस जंजाल में कहीं न कहीं सामाजिक और सांप्रदायिक नफरत और विवाद को तूल दी जा रही है. बैंगलोर की नैसकॉम संस्था की स्थानीय अध्यक्ष सूचरिता ईश्वर कहती हैं कि विवाद हर जगह हैं और होते रहेंगे लेकिन मीडिया उसकी रिपोर्टिंग करने से बच नहीं सकता, "मीडिया का काम है बहस का मंच तैयार करना, ताकि विभिन्न विचारधारा के लोग इकट्ठा होकर अपना नज़रिया दुनिया के सामने रखें. जब किसी समस्या को सामने रखा जाएगा तब ही अधिकारी इस में दिलचस्पी लेंगे और उस पर अपनी प्रतिक्रिया देंगे."
एशिया के हर देश में मीडिया भ्रष्टाचार और सामाजिक कुरीतियों को दुनिया के सामने लाने में मदद कर रहा है. चीन और वियेतनाम जैसे साम्यवादी देशों में भी. आलोचकों का मानना है कि राजनीतिक और नागरिक पत्रकारिता आज एक परिभाषा की तलाश में है. खास तौर पर व्यवसायीकरण के चलते इसपर पर सोचना ज़रूरी हो गया है. और ऐसे में एशिया में मीडिया का विकास कुछ अरसे तक दिलचस्प बना रहेगा.