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एशिया में पांव फैलाने की कोशिश में रूस

२१ अक्टूबर २०११

रूस एशिया में अपनी ऊर्जा परियोजनाओं को बढ़ा रहा है और इसमें सिर्फ चीन पर निर्भर नहीं कर रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि उसका उद्देश्य यूरोप के मुकाबले अपनी स्थिति मजबूत करना भी है.

तस्वीर: dapd

रूस के लिए एशियाई देशों में गैस और तेल का निर्यात महत्वपूर्ण मुद्दा बनता जा रहा है. रूसी प्रधानमंत्री व्लादीमिर पुतिन की हाल की चीन यात्रा ने यही दिखाया है. बातचीत में तेल और गैस परियोजनाओं की अहम भूमिका रही.

प्रशांत सागर में पाइपलाइन

अपने ऊर्जा क्षेत्र को व्यापक बनाने की रूस की रणनीति का एक हिस्सा पूर्वी साइबेरिया-प्रशांत सागर पाइपलाइन है. उसका निर्माण कार्य अभी चल रहा है और उसे चीन ले जाने की योजना है. पाइपलाइन के इस हिस्से से चीन को हर साल 1.5 करोड़ टन तेल की आपूर्ति होगी. भविष्य में रूस एशियाई देशों को कुल 8 करोड़ टन तेल बेचना चाहता है. योजना है कि इसमें से 3 करोड़ टन चीन को जाएगा और बाकी 5 करोड़ टन एशिया प्रशांत क्षेत्र के दूसरे देशों को.

तस्वीर: AP

यूरोप के विपरीत एशिया में रूस को बहुत कुछ करना है. वह साल में यूरोप को 18 करोड़ टन खनिज तेल बेचता है जबकि प्रशांत क्षेत्र में सिर्फ 3.5 करोड़ टन रूसी तेल पहुंचता है. रूसी विशेषज्ञ इस संभावना से इंकार नहीं करते कि एशियाई देशों को निर्यात बढ़ाने का असर यूरोप पर पड़ सकता है. रूसी विश्लेषक विक्टर मारकोव का अनुमान है, "रूसी तेल को पश्चिमी दिशा से पूरब की ओर ले जाने से यूरोप में तेल की कमी हो सकती है, जिसका नतीजा तेल की कीमत में वृद्धि होगी." उनका कहना है रूस इसका फायदा यूरोपीय देशों के साथ नई कीमतें तय करने में उठा सकता है.

चीन के साथ वार्ता

तेल की तरह गैस के मामले में भी रूस नए ग्राहक खोज रहा है. चूंकि यूरोप इस समय रूसी गैस से स्वतंत्र होने पर गंभीरता से विचार कर रहा है, इसलिए रूस पूरब की ओर निर्यात बढ़ाने पर विचार कर रहा है. यहां भी मुख्य ग्राहक चीन होगा जिसकी ऊर्जा की भूख लगातार बढ़ रही है. इस साल चीन की ऊर्जा खपत 20 प्रतिशत बढ़ कर 130 अरब घनमीटर हो जाने का अनुमान है. 2020 में उसे 230 अरब घनमीटर की जरूरत होगी. इस समय यूरोपीय देश रूस से 150 अरब घनमीटर गैस खरीद रहे हैं.

तस्वीर: AP

अब तक रूस की सरकारी ऊर्जा कंपनी गाजप्रोम और चीन ने सिर्फ भुगतान की विधि तय की है. गैस की कीमत तय नहीं हुई है और उस पर सौदेबाजी हो रही है. रूस की वित्तीय विश्लेषण एजेंसी इन्वेस्टकैफे के ग्रिगोरी ब्रिग कहते हैं कि चीन के साथ कभी न कभी समझौता होगा ही. वह कहते हैं, "चीन को उससे कहीं अधिक ऊर्जा की जरूरत है जो तुर्कमेनिस्तान या कतर दे सकते हैं. इसलिए रूस के साथ सहयोग चीन के लिए जरूरी है." ब्रिग का मानना है कि यदि ऐसा सचमुच हो जाता है तो रूस पश्चिमी सहयोगियों के साथ सौदेबाजी में मजबूत स्थिति में होगा.

साथ ही रूस को पश्चिम में घटी मांग के खिलाफ अच्छा बीमा मिल जाएगा. मॉस्को के एक शोध संस्थान के विश्लेषक निकोलाई इसाइन कहते हैं कि यही मुख्य वजह है कि रूस अपने निर्यात को व्यापक बनाने को महत्वपूर्ण मानता है. उनका कहना है कि चीन रूस के समझौते पर दस्तखत के समय को टालने की कोशिश कर रहा है ताकि मध्यपूर्व और उत्तर अफ्रीका में हालत सुधर जाए.

आकर्षक होता दक्षिण कोरिया

गाजप्रोम दक्षिण कोरिया की ओर भी रुख कर सकता है. 2010 में उसने 43 अरब घनमीटर गैस खरीदी है. उसमें रूस का हिस्सा 10 प्रतिशत से भी कम था. ग्रिगोरी ब्रिग कहते हैं, "रूस तक पाइपलाइन का निर्माण दक्षिण कोरिया के लिए बहुत फायदेमंद होगा. उसके जरिए वह गैस का खर्च घटा सकता है और गाजप्रोम के रूप में दूरगामी सहयोगी पा सकता है."

तस्वीर: AP

यह सौदा गाजप्रोम के लिए मुनाफे का होगा. यदि वह दक्षिण कोरियाई बाजार में अपना हिस्सा 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 30 प्रतिशत कर लेता है, तो बिक्री के हिसाब से वह इटली के बराबर हो जाएगा, जो 2010 में यूरोप में रूसी गैस का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार था.

लेकिन यहां एक बड़ी बाधा भी है. विश्लेषक ग्रिगोरी ब्रिग का कहना है कि उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच राजनीतिक तनाव के चलते सीधे पाइपलाइन बनाना मुश्किल है." जब तक दक्षिण कोरिया की ऊर्जा की जरूरत पूरी हो रही है, सोल को उत्तर कोरिया पर भरोसा करने के लिए मनाना निश्चित तौर पर कठिन होगा." लेकिन उनका मानना है कि जब तक पाइपलाइन नहीं बनती है रूस दक्षिण कोरिया को अधिक तरल गैस बेच सकता है. उसका संयंत्र व्लादीवोस्टॉक में बनाया जा सकता है.

रिपोर्ट: येवलालिया समेदोवा, शेनिया पोल्स्का/मझा

संपादन: वी कुमार

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