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एशिया में हर दसवें आवेदक को नहीं मिलता जर्मन वीजा

२० जून २०१८

शरणार्थी संकट पर बहस के बीच जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल ने अवैध आप्रवासन को रोकने और नौकरी के लिए वैध रास्ते खोलने की वकालत की है. पिछले तीन साल में जर्मनी ने भारत में सिर्फ 6 प्रतिशत वीजा नामंजूर किए हैं.

Griechenland - Die Flüchtlingslage auf Chios
तस्वीर: DW/D. Tosidis

डॉयचे वेले के डाटा पत्रकारों ने 2014 से 2017 के बीच जर्मन दूतावासों में डाले गए वीजा आवेदनों और उन पर हुए फैसलों का विश्लेषण किया है. इस विश्लेषण से शेंगेन टूरिस्ट वीजा को अलग रखा गया है. सिर्फ पढ़ाई करने, काम करने या जर्मनी में रहने वाले पार्टनर के साथ रहने के लिए दिए गए वीजा आवेदनों पर निगाह डाली गई है. आंकड़ों पर नजर डालने से पता चलता है कि 2014 से 2017 के बीच वीजा आवेदनों की संख्या में 58 प्रतिशत का इजाफा हुआ है जबकि नामंजूर आवेदनों की संख्या 131 प्रतिशत बढ़ी है.

अध्ययन की अवधि में जर्मनी आने के लिए 60 प्रतिशत आवेदन एशियाई देशों से आए. हर दसवां आवेदन अधिकारियों ने नामंजूर कर दिया. राष्ट्रीय आंकड़ों को विस्तार से देखने पर पता चलता है कि वीजा देने के मामले में देशों के बीच बड़ा अंतर है. बांग्लादेश में करीब एक चौथाई आवेदन ठुकरा दिए गए तो भारत में सिर्फ 6 प्रतिशत. जापान में ठुकराए गए आवेदनों की संख्या सिर्फ 0.4 प्रतिशत है.

क्यों है ये अंतर

जर्मन विदेश मंत्रालय का कहना है कि जर्मनी में पढ़ाई करने या काम करने लिए वीजा देने का फैसला हर देश के दूतावासों ने हर मामले पर पूरी दुनिया पर लागू वस्तुपरक आधार पर विचार कर किया है. ये शर्तें हैं कि आवेदक जर्मनी में रहने का खर्च खुद उठाने में समर्थ हो या जर्मनी में किसी को जानता हो जो उसका खर्च वहन करे. इसके अलावा वीजा लेने के मकसद को भी साबित करना होगा. परिवार मिलन के मामले में पार्टनर को साबित करना होता है कि वह सचमुच जर्मनी में रहने वाले व्यक्ति के साथ शादीशुदा है.

विदेश मंत्रालय का कहना है कि काम के लिए जर्मनी आने के मामले में वीजा आवेदनों को ठुकराए जाने की दर अत्यंत कम है जबकि परिवार मिलन के मामले में ज्यादा क्योंकि अकसर शादी के जाली सबूत पेश किए जाते हैं और अक्सर वीजा आवेदकों का जर्मनी में रहने का खर्च सुरक्षित नहीं होता. जाली दस्तावेजों की समस्या एशियाई देशों में इतनी गंभीर है कि जर्मनी ने अफगानिस्तान, पाकिस्तान और भारत जैसे देशों में दस्तावेजों को कानूनी मान्यता देने की प्रक्रिया रोक दी है. चीन, ईरान और जापान इस सूची पर नहीं हैं.

आप्रवासन पर शोध करने वाले प्रोफेसर योखन ओल्टमर का कहना है कि विभिन्न देशों के सरकारी दफ्तरों पर भरोसा भी वीजा देने के मामले में भूमिका निभाती है. लेकिन इन कड़े शर्तों के अलावा कुछ नर्म शर्तों की भी भूमिका होती है कि आवेदक अपना मकसद पूरा करने के बाद वापस लौटेगा या नहीं. ये हर देश की छवि और स्थिति पर निर्भर करता है, और इस पर कि खास इलाकों से आने वाले विदेशियों के साथ कितना खतरा जुड़ा है.

अर्थव्यवस्था का महत्व

जर्मन समझ में अफ्रीका को गरीब और राजनीतिक जोखिमों वाला है और इसे आप्रवासन की नुख्य वजह समझा जाता है जबकि एशिया को भारी संभावनाओं वाला अच्छे भविष्य का महादेश माना जाता है. इसलिए भारत और चीन जैसे देशों के साथ आप्रवासन संबंधों को बढ़ाने को जर्मनी प्राथमिकता दे रहा है. भारत की छवि बहुत सारे कंप्यूटर विशेषज्ञ देने वाले देश के रूप में है, जिनकी जर्मनी को फौरी जरूरत है.

आर्थिक महाशक्ति बन चुके चीन का जर्मन अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा महत्व है. आप्रवासन विशेषज्ञ प्रो. योखन ओल्टमर कहते हैं, "पिछले दस-पंद्रह सालों में हमने देखा है कि चीन से जर्मनी में पढ़ने या शोध करने आने वाले विद्यार्थियों का महत्व बढ़ा है." जर्मनी में इसका स्वागत किया जाता है क्योंकि विद्यार्थियों को भविष्य में अर्थव्यवस्था और वैज्ञानिक आदान प्रदान के क्षेत्र में पुल बनाने वाला माना जाता है. यही वजह है कि भारत और चीन से तीन साल की अवधि में करीब एक-एक लाख आवेदन आए हैं और सिर्फ हर 20वां ही नकारा गया है.

रिपोर्ट: जाना ग्रुइन, डानिएल पेल्स

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