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एशिया से निकोसिया तक गोएथे के संग

९ अगस्त २०११

शुरुआत जर्मन भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए एक छोटी संस्था से हुई थी. अब दुनिया भर के गोएथे संस्थानों में अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं में 3000 कर्मचारी काम करते हैं. भारत में गोएथे इंस्टीट्यूट का नाम मैक्स म्युलर भवन है.

गोएथे के 60 सालतस्वीर: picture-alliance/ dpa

गोएथे इंस्टीट्यूट की सबसे नई शाखा अभी अभी खुली है. यह ऐसी जगह पर स्थित है जो शायद ही और प्रभावी हो सकता है. उत्तरी और दक्षिणी साइप्रस को विभाजित करने वाले प्रतिबंधित सैन्य क्षेत्र के बीचोंबीच स्थित, संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों की पहरेदारी में और कंटीले तारों से घिरा हुआ. यह गोएथे इंस्टीट्यूट की 150वीं शाखा है. एक ऐसे साल में जब गोएथे इंस्टीट्यूट अपनी स्थापना की 60वीं वर्षगांठ मना रहा है, इस शाखा का उद्घाटन एक सांकेतिक कदम भी है. 11 साल पहले निकोसिया के गोएथे इंस्टीट्यूट को बंद कर दिया गया था. , 2008 से गोएथे इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष क्लाउस-डीटर लेहमन के लिए यह एक अस्वीकारणीय स्थिति थी. उन्होंने नई शाखा खोलने का फैसला लिया, "यूरोप की अंतिम विभाजित राजधानी, उसे बीचों बीच गोएथे, यह अभूतपूर्व होगा. यह यूरोप के लिए एक संदेश हो सकता है."

वैकल्पिक राहें: राजनीति के बदले संस्कृति

लेकिन यह नई शुरुआत संदेश या संकेत से बहुत ज्यादा है. क्योंकि निकोसिया में दूसरे कई अन्य संस्थानों की तरह दिखता है कि गोएथे में कर्मचारियों का काम सिर्फ जर्मन भाषा पढ़ाना और कला तथा संस्कृति का आदान प्रदान नहीं है. विवाद में संस्कृति के माध्यम से समझदारी को बढ़ावा देना संस्थान का काम बन गया है. जहां राजनीति को रास्ता नहीं सूझता वहां वैकल्पिक रास्ते की खोज जरूरी होती है. निकोसिया के मामले में ग्रीक और तुर्क साइप्रसवासियों के बीच सहिष्णुता को प्रोत्साहन जो अभी भी गृहयुद्ध के नतीजे भुगत रहे हैं.

गोएथे के साथ गर्मियों की छुट्टियां, बेलग्रेड का एक पोस्टकार्ड

क्रांति और खुफिया फाइलें: अनुभवों का बंटवारा

संस्कृति के क्षेत्र के काम इस बीच किस हद तक राजनीतिक क्षेत्र में घुसते हैं, यह अरब देशों का विकास दिखाता है, एक इलाका जहां गोएथे संस्थान इन दिनों खास तौर पर सक्रिय हैं. मसलन मिस्र और ट्यूनिशिया जहां गोएथे इंस्टीट्यूट अरब कलाकारों और फिल्मकारों को उनके जर्मन सहयोगियों के साथ ला रहा है और साझा परियोजनाएं शुरू कर रहा है. या फिर वह काहिरा में हाल ही बनाए गए "तहरीर लाउंज" में राजनीतिक उथल पुथल की स्थिति पर विचारों के आदान प्रदान का आयोजन करता है. क्लाउस-डीटर लेहमन बताते हैं, "हम गाउक दफ्तर (पूर्वी जर्मन खुफिया सेवा की फाइलों का संग्रह करने वाला दफ्तर) के अधिकारियों को यह बताने के लिए काहिरा लाए कि खुफिया फाइलों से कैसे निबटा जाए और जर्मनी में यह एकीकरण के बाद किस तरह से किया गया."

60 साल पहले जब गोएथे इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई थी तो इस तरह की पहलकदमियों के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता था. द्वितीय विश्व युद्ध और नाजियों के अपराधों के कारण जर्मनी ने सारी साख गंवा दी थी. संघीय गणराज्य जर्मनी सिर्फ दो साल पुराना था. लक्ष्य था दुनिया का फिर से विश्वास जीतना. लंबी छलांगों के बदले छोटे, सादगीपूर्ण कदमों के साथ.

जर्मन वादियों में प्रशिक्षण

इनमें से एक कदम था 9 अगस्त 1951 को म्यूनिख में "विदेशी जर्मन शिक्षकों के प्रशिक्षण के लिए गोएथे संस्था" की स्थापना. और गोएथे के मुल्क में आने वाले शिक्षकों का एक ऐसे जर्मनी से परिचय हो जो द्वितीय विश्व युद्ध के आतंक को भूलने में मदद करना चाहता है. पहला कोर्स बाड राइशेनहाल या मुरनाऊ जैसी रमणीय वादियों में बसी छोटी जगहों पर हुआ.

गोएथे इंस्टीट्यूट साओ पाओलोतस्वीर: DW/N. Wallraff

1952 में ही एथेंस में पहली विदेशी शाखा खुली. दस साल बाद विदेशों में उसके 54 प्रतिनिधि कार्यालय खुले और जर्मनी में 17 संस्थान. और यह सब उसके स्वतंत्र निर्देश में हुआ क्योंकि उसका गठन एक स्वायत्त संगठन की तरह हुआ था. भरोसा जीतने का मूलमंत्र उस समय और आज भी राजनीति या सरकार से स्वतंत्रता है. "हम सरकारी उद्यम नहीं हैं," क्लाउस-डीटर लेहमन जोर देकर कहते हैं, "बल्कि एक स्वतंत्र कानूनी इकाई हैं, जिसका दो तिहाई बजट संसद से मिलता है, जबकि एक तिहाई हिस्सा हम खुद कमाते हैं. कार्यक्रम तय करने में हम स्वतंत्र हैं. दुनिया में इस बात को गंभीरता से महसूस किया जाता है और यहीं से हमें विश्वसनीयता मिलती है."

युद्ध के बाद क्लासिकी

गोएथे इंस्टीट्यूट के शुरुआती दिनों में सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जानबूझकर क्लासिकीय विषयों को लिया जाता था. गोएथे और शिलर. बाख या बेथोफेन जैसे नामों की युद्ध और नरसंहार के बाद भी विदेशों में अच्छी छवि थी. लेकिन 1968 में जर्मनी को भी अपनी चपेट में लेने वाले छात्र आंदोलन के बाद मुद्दे बदल गए. फ्लॉवर पॉवर, छात्र आंदोलन और समाज के राजनीतिकरण से गोएथे इंस्टीट्यूट भी नहीं बचा. इसने सांस्कृतिक कार्यक्रमों को प्रभावित किया.

यह ऐसा समय था जब जर्मनी अपने को नए तरीके से परिभाषित कर रहा था. सोशल डेमोक्रैटिक चांसलर विली ब्रांड्ट के नेतृत्व में सुधारों की नीति का समय. 1970 में समाजशास्त्री राल्फ डारेनडॉर्फ ने, जो उस समय विदेश राज्यमंत्री थे, अपना अब प्रसिद्ध हो चुका सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसके बाद संस्कृति नीति "विदेश नीति का तीसरा पाया" बन गया. लेकिन डारेनडॉर्फ सिर्फ इसे बेहतर नहीं बनाना चाहते थे बल्कि सोच में बदलाव चाहते थे. उनका कहना था, "जो हम देते हैं, उसका उतना ही मोल है, जो हम लेने को तैयार हैं. इसलिए खुलापन हमारी विदेशी संस्कृति नीति का सिद्धांत है."

अफ्रीका में गोएथे इंस्टीट्यूट के तहत सांस्कृतिक कार्यक्रमतस्वीर: Goethe-Institut/Enno Kapitza

संस्कृति निर्यात से संवाद

डारेनडॉर्फ की मांग थी कि संस्कृति के निर्यात के बदले, जो गोएथे इंस्टीट्यूट भी लंबे तक चलाता रहा, आदान प्रदान, संवाद और समान स्तर पर सहयोग हो. इस बीच दुनिया भर के सहयोगियों के साथ संपर्क रखने वाले इंस्टीच्यूट के 3000 कर्मियों के लिए यह रोजमर्रे की बात है. उनमें संवेदनशीलता पैदा हुई है, एक दूसरे के बारे में बहुत सारी जानकारी और सम्मान भी. और यह सांस्कृतिक समृद्धि बढ़ते पैमाने पर जर्मनी वापस भी आ रही है.

दुनिया के बड़े हिस्से में गोएथे इंस्टीट्यूट बहुत देर से उतने व्यापक रूप से सक्रिय हुआ है जो आज स्वाभाविक सा लगता है. दीवार गिरने और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद पूर्वी यूरोप में नई नीतियों को लागू करना संभव हुआ. लेकिन वह असाधारण तेजी के साथ हुआ. 1991 में ही गोएथे इंस्टीट्यूट की पांच नई शाखाएं खुलीं, वारसा, प्राग, क्राकाऊ, बुडापेस्ट और मॉस्को में. इस बीच उसने पूर्वी यूरोप और केंद्रीय एशिया में अपना काम सुदृढ़ कर लिया है.

अंतरराष्ट्रीय विश्वसनीयता

तिराना में गोएथे इंस्टीट्यूटतस्वीर: Arben Muka / DW

आज दीवार गिरने के बीस साल बाद गोएथे इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष क्लाउस-डीटर लेहमन अपनी संस्था की सबसे बड़ी चुनौती मध्यपूर्व और उत्तरी अफ्रीका, दक्षिणवर्ती अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में देखते हैं, खासकर तेजी से प्रगति करते चीन में. "हम वहां सिर्फ सांस्कृतिक आयोजनों के साथ ही उपस्थित नहीं हैं बल्कि संरचनाएं भी बना रहे हैं," वे बताते हैं, "यह इस समय दुनिया में हमारा सबसे बड़ा कर्तव्य है कि हम अपने काम को आर्थिक हितों के साथ न जोड़ें, निस्वार्थ भाव से संस्कृति के माध्यम से काम करें तो उसे स्वीकार भी किया जाता है. यह भरोसेमंद है और दूरगामी रूप से सुरक्षित भी."

इंस्टीट्यूट की और शाखाएं खोलने की इस समय कोई योजना नहीं है. फिलहाल 150 शाखाएं ही रहेंगी. साइप्रस में नई शाखा का खुलना दिखाता है कि पिछले सालों में शांत और विवेकपूर्ण यूरोप में गोएथे इंस्टीट्यूट की अनावश्यकता पर शुरू हुई बहस शांत हो चुकी है. वहीं ग्रीस के कर्ज और उसे यूरोपीय सहायता पर हुई बहस ने दिखाया है कि यूरोपीय सहिष्णुता कितनी कमजोर हो सकती है. "गोएथे" के लिए 60 साल पूरे होने के बाद भी अपने घर के दरवाजे के सामने करने के लिए बहुत कुछ है.

रिपोर्ट: आया बाख/मझा

संपादन: आभा एम

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