एससी/एसटी एक्ट के फैसले पर स्टे से इनकार
३ अप्रैल २०१८सुप्रीम कोर्ट ने अपने 20 मार्च के फैसले पर रोक लगाने से इनकार तो किया, लेकिन केंद्र सरकार को राहत का मौका भी दिया. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि 10 दिन बाद अगली सुनवाई में वह फैसले पर पुनरविचार करेगा. मंगलवार को कोर्ट ने इस मामले से जुड़े पक्षों से दो दिन के भीतर लिखित निवेदन जमा करने को भी कहा. भारत सरकार की ओर से दायर पुनरविचार की अपील पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा, "हम कानून के खिलाफ नहीं हैं. निर्दोष को सजा नहीं होनी चाहिए."
इससे पहले 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के तहत तुरंत प्रभाव से होने वाली गिरफ्तारी पर प्रतिबंध लगा दिया था. अदालत ने कहा कि 2015 में देश भर में 15 से 16 फीसदी ऐसे मामले सामने आए, जिनमें इस एक्ट का दुरुपयोग कर गिरफ्तारी हुई. कई मामले सिर्फ निजी रंजिश के चलते दायर किए गए.
आने वाली अंबेडकर जयंती और दलितों का भारत बंद
इन मामलों का हवाला देते हुए कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट के तहत तुरंत एफआईआर दर्ज करने और फौरन गिरफ्तारी पर रोक लगा दी. सर्वोच्च अदालत ने साफ कहा कि अब एससी/एसटी एक्ट के तरह मुकदमा दर्ज करने से पहले पुलिस को सात दिन के भीतर प्राथमिक जांच करनी होगी. जांच डीएसपी स्तर के अधिकारी को करनी होगी, ताकि किसी किस्म का दुरुपयोग न हो. गिरफ्तारी से पहले जिले के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी की भी अनुमति लेनी अनिवार्य होगी. सरकारी कर्मचारियों को उनके विभाग के उच्च अधिकारियों की अनुमति लेने के बाद ही गिरफ्तार किया जाएगा. अदालत चाहती है कि ईमानदार सरकारी कर्मचारियों को ब्लैकमेलिंग या धमकियों से बचाया जाए.
कानून को लचीला करने के फैसले के खिलाफ दायर पुनरविचार की अपील पर सुनवाई करते हुए अदालत ने मंगलवार को यह भी कहा कि, "हमने एससी/एसटी एक्ट का कोई प्रावधान लचीला नहीं किया है और हमने सिर्फ निर्दोषों की गिरफ्तारी से रक्षा करने के लिए कदम उठाए हैं. एक्ट के प्रावधान निर्दोषों को डराने के लिए इस्तेमाल नहीं किए जा सकते."
अदालत के इस फैसले के विरोध में दो अप्रैल को दलित और मानवाधिकार संगठनों ने भारत बंद का एलान किया. बिहार, मध्य प्रदेश, ओडीशा, राजस्थान, पंजाब और गुजरात में इस बंद का व्यापक असर देखा गया. बंद के दौरान कुछ इलाकों में भारी हिंसा भी हुई, जिसमें कम से कम नौ लोग मारे गए.
प्रदर्शनकारियों पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा कि जिन लोगों ने प्रदर्शन किया है, उन्होंने फैसला पढ़ा तक नहीं और शायद उन्हें "गुमराह" किया गया. कोर्ट के मुताबिक 20 मार्च के फैसले का प्रभाव सिर्फ एससी/एसटी एक्ट के तहत आने वाले अपराधों पर पड़ेगा. भारतीय दंड संहिता के तहत आने वाले हत्या और दूसरे संज्ञेय अपराधों के मामले में एफआईआर दर्ज करने से पहले जांच की जरूरत अब भी नहीं है.
ओएसजे/आईएएनएस