महिलाओं को समाज में जिस बर्ताव और जिस हिंसा का सामना करना पड़ता है उसका एक भयानक रूप एसिड हमला है. अगर समाज कुछ करने को तैयार न हो तो भविष्य अपने हाथों में लेना ही सही रास्ता है, कहना है महेश झा का.
अकसर समाज अपनी खामियों को आसानी से स्वीकार नहीं करते. और अगर कमियां स्वीकार न की जाएं तो उन्हें ठीक करना भी संभव नहीं. भले ही हम देवियों की पूजा करें लेकिन महिलाओं का सम्मान नहीं करते. देवियों की पूजा अपने फायदे के लिए है, इसी तरह परिवार और समाज में वर्चस्व भी अपने ही फायदे के लिए है. नहीं तो महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को रोकने में इतने निरुपाय नहीं होते.
महेश झा
आगरा में एसिड हमले से पीड़ित कुछ महिलाओं ने स्वाबलंबी बनने का जो विकल्प चुना है वह दूसरे लोगों के लिए भी मिसाल बनेगा. आर्थिक आजादी आत्मसम्मान के अलावा फैसला लेने की हिम्मत भी देती है, आत्मनिर्भर बनाती है, सामाजिक सत्ता के दायरे में स्थिति मजबूत करती है. शायद इसी से हालात बदलेंगे. और वे लोग भी बदलेंगे जो बात न माने जाने की स्थिति में हिंसा का सहारा लेते हैं.
आगरा की पीड़ित लड़कियों की व्यक्तिगत दास्तां भारतीय समाज का कड़वा सच भी सामने लाती है, जहां बाप अपनी बेटी की चिंता नहीं करता और उस पर भी तेजाब फेंकता है. जहां भाई संपत्ति के विवाद में बहन पर तेजाब फेंकता है. उन्हें रोकने के लिए न्यायिक व्यवस्था को चुस्त बनाना जरूरी है. ताकि अपराधी को पता हो कि क्षणिक आवेश उसकी जिंदगी को भी बर्बाद कर सकता है.
एसिड अटैक का मुकाबला!
जर्मनी की फोटोग्राफर ऐन क्रिस्टीने वोर्ल ने दुनिया भर में उन महिलाओं की तस्वीरें लीं जिन्होंने खुद पर एसिड अटैक जैसे खतरनाक और जघन्य अपराध को झेला और उससे मजबूत होकर उबरीं.
तस्वीर: Ann-Christine Woehrl/Echo Photo Agency
भारत से निहारी
निहारी जब केवल 19 साल की थी, उसने खुदखुशी की कोशिश की थी. वह अपने जीवन से पूरी तरह निराश हो चुकी थी. वह अपने पति की ओर से मिल रही शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से बेहद परेशान थी.
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बांग्लादेश से फरीदा
फरीदा के पति को ड्रग्स और जुए की इतनी बुरी लत थी कि उसके लिए अपना घर तक बेच दिया. तंग आकर जब फरीदा ने उसे छोड़ने की धमकी दी तो उसके पति ने सोती हुई फरीदा पर एसिड डाल कर उसे कमरे में बंद कर दिया. उसके दर्द से बिलबिला कर चीखने से पड़ोसियों ने दरवाजा तोड़कर फरीदा को बाहर निकाला.
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जीवनभर का जख्म
हमले के समय फरीदा की उम्र केवल 24 साल थी. तबसे अब तक वह 17 बार सर्जरी करवा चुकी हैं. फरीदा की मां भी उसके जख्मों की नियमित देखभाल करती हैं. अब फरीदा अपनी बहन के साथ रहती हैं. उनका अपना कोई घर नहीं रहा.
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युगांडा से फ्लाविया
साल 2009 में फ्लाविया पर उसके घर के ही ठीक सामने एक अजनबी ने एसिड फेंक दिया. उसे आजतक नहीं पता कि वह हमलावर कौन था और उसने ऐसा क्यों किया. कई साल तक घर की चारदिवारी में छुप कर काटने के बाद उसने तय किया कि उसे अपनी जिंदगी आगे बढ़ानी ही होगी. यहां फ्लाविया एक साल्सा डांस नाइट में जाने के लिए तैयार होती दिख रही हैं.
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परिवार का सहारा
फ्लाविया हर हफ्ते कम से कम एक बार डांस के लिए जरूर जाती हैं. बेहतरीन डांस करने के कारण उन्हें सब पसंद भी करते हैं. अपने परिवार और दोस्तों से मिल रही मदद से फ्लाविया अपनी जिंदगी को फिर से पटरी पर ला पाई है.
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नई खूबसूरती
यहां जिस कमरे में निहारी मेकअप करती दिख रही है, यहीं उसने खुद को आग लगा ली थी. आज वह अपने उस कदम पर शर्मिंदा है और अब जली हुई महिलाओं को लेकर अपना एक संगठन चलाती है. निहारी के संगठन का नाम है 'ब्यूटी ऑफ दी बर्न्ड विमेन'.
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पाकिस्तान से नुसरत
नुसरत पर दो बार एसिड हमला हुआ. पहले पति ने और फिर परिवार के एक और शख्स के उस पर एसिड फेंक दिया. किस्मत से वह बच गईं. एक नए दिन का सामना करने के लिए तैयार होती हुई नुसरत.
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उम्मीद से भरी
एसिड के कारण नुसरत के सिर के कुछ हिस्सों से बाल खत्म हो गए. अपने डॉक्टर की सलाह से खुद को ठीक करने के तरीकों और अपनी हेयरस्टाइल पर राय लेती नुसरत.
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दोस्तों का साथ
नुसरत अपने जैसी दूसरी औरतों से मिल कर एक दूसरे की तकलीफें साझा करना बहुत जरूरी मानती है. एसिड सर्वाइवर्स फाउंडेशन की बैठकों में नियमित रूप से जाकर हर किसी को तसल्ली मिलती है कि दुनिया में वह अकेली नहीं हैं.
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सबसे जरूरी हिंसक होते माहौल को बदलना है. सामाजिक संस्थाओं को आक्रोश और आवेश को कम करने के उपाय करने होंगे. दूसरी ओर पीड़ित लड़कियों के लिए इलाज और प्रशिक्षण के उपाय करने होंगे ताकि वे जहां तक हो सके सामान्य जिंदगी जी सकें, सर उठाकर चल सकें, और समाज के विकास में वह योगदान दे सकें जो वे हमले से पहले देना चाहती थीं. आगरा की लड़कियां यही कर रही हैं.
ब्लॉग: महेश झा
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महिलाओं पर एसिड हमले जारी हैं
भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और कंबोडिया सहित कई एशियाई देशों में महिलाओं पर एसिड से हमला करने का घिनौना अपराध जारी है. सरकारी कोशिशों के अलावा मानसिकता में बदलाव होना सबसे जरूरी है, तभी ये रुक सकता है.
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लक्ष्मी की ताकत
महिलाओं पर होने वाले एसिड हमलों के खिलाफ अभियान छेड़ने वाली लक्ष्मी को अमेरिका में उनके काम के लिए सम्मानित किया गया. प्रथम अमेरिकी महिला मिशेल ओबामा ने उन्हें 'इंटरनेशनल विमेन ऑफ करेज' अवॉर्ड दिया.
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बदलाव की उम्मीद
अवॉर्ड समारोह में लक्ष्मी ने अपनी भावनाएं कविता के जरिए उकेरीं और कहा कि ये सम्मान मिलने के बाद उन्हें भारत में बदलाव की उम्मीद है. वो मानती हैं कि शायद दूसरी लड़कियां सोचें कि वे भी लड़ाई में शामिल हो सकती हैं.
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सुप्रीम कोर्ट का आदेश
लक्ष्मी की अपील के बाद भारत की सर्वोच्च अदालत ने सरकार को हुक्म दिया है कि वो एसिड के कारोबार को नियमों में बांधें. महिलाओं पर हमले के लिए एसिड का दुरुपयोग किया जाता है. भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश में अकसर महिला से बदला लेने के लिए पुरुष ये हमले करते हैं.
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जब तक है जज्बा
भारत में एसिड हमले की शिकार महिलाओं में जीवन का जज्बा जगाने की कोशिश की जा रही है. उनके पुनर्वसन की भी कोशिश है. लक्ष्मी चाहती हैं कि इस तरह के अपराधों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में होनी चाहिए.
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मदद
पाकिस्तान की शरमीन ओबैद चिनॉय की एसिड हमलों के पीड़ितों पर बनाई फिल्म को 2012 में ऑस्कर दिया गया था. लेकिन इसके बाद ये पीड़ित और घबरा गईं कि अब उनसे बदला लिया जा सकता है.
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हजारों शिकार
पाकिस्तान में हर साल हजारों लोग तेजाब हमलों का शिकार बनते हैं. इनमें 60 फीसदी महिलाएं हैं. पाकिस्तान में एसिड सर्वाइवर्स फाउंडेशन के मुताबिक 2012 में 7,516 लोग ऐसे हमलों का शिकार बने.
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एशिया में
महिलाओं पर एसिड हमलों के मामले में भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देश खासे बदनाम हैं. लेकिन कंबोडिया में भी इस तरह के अपराध होते हैं.
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अंतहीन दर्द
एसिड हमले के शिकार लोगों का जीवन बहुत मुश्किल हो जाता है. उनका चेहरा और गला जल जाता है और इसे ठीक करने के लिए फिर बार बार कॉस्मेटिक सर्जरी करनी पड़ती है, जो मध्यवर्ग के लिए बहुत खर्चीली साबित होती है.