1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

ऐतिहासिक हड़ताल ने उड़ाए होश

६ जनवरी २०१५

कोल इंडिया के इतिहास की सबसे बड़ी हड़ताल को मजदूर संगठनों ने 1977 के बाद किसी भी क्षेत्र की सबसे बड़ी औद्योगिक हड़ताल करार दिया है. कोल इंडिया में दो लाख से ज्यादा कर्मचारी हैं. हड़ताल में डेढ़ लाख ठेका मजदूर भी शामिल हैं.

तस्वीर: picture alliance/AP Photo

सरकार ने कोयला ब्‍लॉक आवंटन का रास्ता साफ करने के लिए अध्‍यादेश का सहारा लिया. अब सरकार आसानी से ऊर्जा और गैर ऊर्जा कंपनि‍यों को ई-ऑक्‍शन के जरि‍ए कोल ब्‍लॉक आवंटि‍त कर सकती है. लेकिन श्रमिक संघ सरकार के इसी रवैये से आहत हैं और हड़ताल पर चले गए हैं. उनका आरोप है कि पिछली सरकारों की ओर से किए गए वादे के उलट बिना ट्रेड यूनियनों से चर्चा किए ये अध्यादेश लाया गया. इसके अलावा कई ऐसे बिंदु भी हैं, जो मजदूरों का हक छीनते हैं.

श्रमिक संगठनों की मांगें हैं कि कोल इंडिया का विभाजन और उसका निजीकरण रोका जाए, ग्रामीण मजदूरों की दासता का अंत हो, उनके बच्चों को शिक्षा, विस्थापितों को नौकरी और मुआवजा दिया जाए. मजदूरों को भी पेंशन मिले, ठेका मजदूरों को स्थायी किया जाए और कोल इंडिया को माफिया से मुक्त किया जाए. ये मजदूर ऐसी किसी योजना को वापस लेने की मांग कर रहे हैं जिसे वे कोयला क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण खत्म करने की प्रक्रिया कहते हैं.

पांच दिनों की हड़ताल से हर रोज 15 लाख टन तक कोयला उत्पादन प्रभावित होगा. इससे बिजली संयंत्रों को आपूर्ति भी प्रभावित हो सकती है जो पहले से ईंधन संकट से जूझ रहे हैं. ऊर्जा संयंत्रों में आम तौर पर पांच से सात दिनों का कोयला ही स्टॉक रहता है. जाहिर है उद्योगों, ऊर्जा संयंत्रों और सरकारों के हाथपांव फूले हुए हैं.

ऐसी विकट हड़ताल की आशंका पहले से होने के बावजूद आखिर सरकार इस कोयला अध्यादेश को लाने पर क्यों आमादा थी. वो इसके जरिए हासिल क्या करना चाहती थी? उसकी मानें तो आर्थिक सुधारों की दिशा में ये मील का पत्थर है. सरकार पहले चरण में 92 कोल ब्‍लॉक की नीलामी के जरि‍ए करीब 1500 अरब रुपए का राजस्व हासि‍ल करने का लक्ष्‍य बना रही है. इस नीलामी में दोनों सार्वजनि‍क और नि‍जी सेक्‍टर की कंपनि‍यां बोलि‍यां लगाएंगी. मीडिया में सरकारी सूत्रों के हवाले से आई खबरों के मुताबिक 92 कोयला ब्‍लॉकों में से 57, ऊर्जा क्षेत्र के लि‍ए हैं और 35 गैर ऊर्जा क्षेत्र की कंपनि‍यों और कैपटि‍व खदानों को आवंटि‍त होंगे.

केंद्र सरकार के इस कदम से निजी क्षेत्र को कोयला खदानें मिलने का रास्‍ता साफ होता है. सरकार को सालाना 20 अरब डॉलर के कोयला आयात को कम करने में मदद मिलेगी. कोयले की किल्‍ल्‍त से जूझ रही बिजली, इस्पात और सीमेंट कंपनियों को भी बड़ी राहत मिलेगी. मोदी सरकार ने इस अध्‍यादेश के जरिए कोल इंडिया के एकाधिकार को खत्‍म करने के संकेत भी दिए हैं.

जाहिरन, इस तमाम कवायद का फायदा शेयर बाजार को भी होगा. जानकारों के मुताबिक धातु खनन, और ऊर्जा शेयरों में तेजी दिखेगी. उन कंपनियों को ज्यादा फायदा हो सकता है जो पहले से खनन के काम में लगी हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि ई-ऑक्शन प्रक्रिया में थोड़ी अतिरिक्त राशि देकर कंपनियां फिर से खदान वापस ले सकती हैं. इस फैसले का अप्रत्यक्ष रुप से असर सरकारी बैंकों के शेयरों पर भी पड़ेगा. कोल इंडिया के भी शेयरों में भी निवेशक दिलचस्पी दिखा सकते हैं. लेकिन फिलहाल तो इस हड़ताल ने शेयर बाजार के गणित उलझा दिए हैं.

अगर हड़ताल नहीं टूटी तो साल की शुरुआत में ही मोदी सरकार के माथे एक बड़ी नाकामी का दाग लगेगा. नुकसान जो होगा सो अलग. अब देखने की बात ये है कि सरकार में ऐसा कौन संकटमोचक है जो मजदूर यूनियनों को हड़ताल से हटाकर बातचीत के लिए राजी करा पाए. या सुधारों के लिए मनमोहन सरकार से भी ज्यादा “समर्पित ये सरकार इस हड़ताल और उससे होने वाले विराट नुकसान की चुपचाप अनदेखी कर जाए और जून का इंतजार करे जब उसका इरादा संसद का संयुक्त सत्र बुलाकर बिल को पास करा लेने का है. कुछ भी हो साल की शुरुआत तो बीजेपी सरकार के लिए उलटी ही मानी जाएगी.

ब्लॉगः शिवप्रसाद जोशी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें