कभी किसी ने नहीं सोचा कि हाथी जब बीमार हो, घायल हो जाए या फिर उसके साथ कोई दुर्घटना हो तब उसका इलाज कैसे होगा. लेकिन अब भारत का पहला हाथियों का अस्पताल खुल गया है.
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भारत में बना हाथियों का अस्पताल
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हाथी की भारतीय संस्कृति में हमेशा से महत्वपूर्ण भूमिका रही है. कभी ये राजसी शान और शौकत का प्रतीक रहा, युद्ध में भी इसने भाग लिया, मंदिरों में पूजा में शामिल रहा और अब भी बारात, जुलूस में हाथी मौजूद रहता है. उत्तर प्रदेश के आगरा में भारत का पहला हाथियों का अस्पताल खुला है. जाहिर है, हाथी जैसे विशालकाय जानवर के लिए हर चीज अलग होगी. आम जानवरों की तरह उसका इलाज नहीं किया जा सकता. देश के इस पहले हाथी के अस्पताल का उद्घाटन मथुरा जनपद में आगरा के कमिश्नर अनिल कुमार ने किया. उनके अनुसार अब आगरा को ताजमहल के अलावा प्रसिद्धी के लिए एक और कारण मिल गया है.
किसने बनाया ये अस्पताल?
हाथियों के लिए इस अस्पताल को वाइल्डलाइफ एसओएस नाम की संस्था ने बनाया है. यह संस्था पहले ही मथुरा में हाथियों के लिए एक आश्रय एवं पुनर्वास गृह का संचालन कर रही है, जहां देश भर से रेस्क्यू किए गए हाथी रहते हैं. इस समय संस्था के आश्रय और पुनर्वास केंद्र पर 20 हाथी रहते हैं.
संस्था के सीईओ कार्तिक सत्यनारायण के अनुसार, "यह एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित होगा. इस अस्पताल से हम परेशानी में और घायल हाथियों का बेहतर इलाज कर सकते हैं. इससे हमें हाथियों के संरक्षण में भी मदद मिलेगी.”
संस्था के वरिष्ठ वेटरनरी ऑफिसर डॉक्टर यदुराज खाड़पेकर के अनुसार, "बंधक से मुक्त कराए गए हर हाथी के साथ कुछ ना कुछ रहता है. जैसे उनका शरीर बहुत कमजोर हो चुका होता है क्योंकि उनको पौष्टिक भोजन नहीं मिलता. उनके पांव में घाव होते हैं. वे सामाजिक रूप से अलग थलग हो चुके होते हैं, मानसिक रूप से वे टूट चुके होते हैं और अपनी रोजमर्रा की जिंदगी के लिए इंसान पर निर्भर होते हैं.”
क्या क्या है हाथी के अस्पताल में?
जाहिर है हाथी जैसे भीमकाय जानवर के लिए हर चीज बड़ी ही होगी. पूरा अस्पताल लगभग 12,000 वर्ग फीट के एरिया में फैला है. इसमें घायल हाथियों के लिए विशेष सुविधा है, जैसे वायरलेस डिजिटल एक्सरे, जिसमें हाथी के पास मशीन ले जा कर एक्सरे किया जा सकता है.
लेजर ट्रीटमेंट और सबसे जरूरी दांत के एक्सरे की भी सुविधा है. दूसरी अन्य सुविधाएं थर्मल इमेजिंग, अल्ट्रासोनोग्राफी, हाइड्रोथेरेपी भी मौजूद है. हाथियों को बेहोश करने के लिए भी अलग बंदूक है. अकेले में हाथी को रखने की सुविधा भी बनाई गई है.
हाथी को 24 घंटे निगरानी में रखने के लिए कैमरे लगाए गए हैं. इसके अलावा यह अस्पताल अन्य विशेषज्ञों को सिखाने के लिए अच्छा एक केंद्र है.
हाथियों की स्थिति
भारत में अब भी लगभग 3000 हाथी निजी लोगों के पास हैं, जिनमे सर्कस और अन्य लोग जो हाथी से काम लेते हैं शामिल हैं. हाथी से सड़क पर भीख तक मंगवाई जाती है. 2017 के सेंसस के अनुसार भारत के जंगलों में 27,312 हाथी हैं, जबकि 2012 के सेंसस के अनुसार हाथियों की संख्या 29,391 से 30,711 के बीच थी.
यह सेन्सस एशियन नेचर कंजरवेशन फाउंडेशन द्वारा 23 राज्यों में किया गया. इस सेंसस को भारत के पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा जारी किया गया है. आंकड़ो के अनुसार कर्नाटक में सर्वाधिक 6,049 हाथी हैं, जबकि असम में 5,712 और केरला में 3,054 हाथी हैं.
आंकड़े बताते हैं कि हाथियों की संख्या लगातार घट रही है, जो कि चिंता का विषय है. विशेषज्ञों के अनुसार सौ साल पहले भारत में दस लाख हाथी थे. हाथी का यह अस्पताल आशा की किरण है, वरना आने वाले दिनों में हाथी सिर्फ जू या विडियो में ही दिखा करेंगे.
भारत में पहली बार गज महोत्सव
भारत में पहली बार गज महोत्सव
एशियाई हाथियों के संरक्षण के लिए दिल्ली में गज महोत्सव का आयोजन हुआ. भारत सरकार और वन्य जीवन ट्रस्ट ने कलाकारों की मदद से हाथियों के संरक्षण और जागरूकता बढ़ाने के लिए 101 कलाकृतियां पेश की.
तस्वीर: DW/M. Ansari
गज महोत्सव
देश-विदेश से आए कलाकारों ने लकड़ी, बोतल, बोल्ट, बेत (बांस), नारियल की रस्सी, मेटल और ई-वेस्ट से अनेक आकार, रंग और रूप के हाथी बनाए. कलाकारों ने अपनी कल्पना की उड़ान का इस्तेमाल करते हुए हाथियों और इंसान के रिश्ते को उकेरने की कोशिश की. 2017 में हुई गणना के मुताबिक भारत में एशियाई हाथी की संख्या 30,000 से ज्यादा है.
तस्वीर: DW/M. Ansari
101 आदमकद हाथी
महोत्सव के दौरान इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में 101 आदमकद हाथियों को दर्शाया गया जो देश के 101 हाथी गलियारों के संरक्षण की ओर ध्यान आकर्षित करने का प्रतीक है. वन संरक्षण की नजर से देखा जाए, तो ये गलियारे वन्य जीवों के लिए सुरक्षित हैं लेकिन कई बार शिकारी हाथियों के दांत के लिए उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं.
तस्वीर: DW/M. Ansari
उजड़ते जगंल
आधुनिकीकरण और औद्योगीकरण के पीछे भाग रहे इंसानों की वजह से जंगल घट रहे हैं और वहां रहने वाले जानवर खतरे में पड़ रहे हैं. कलाकारों का कहना है कि जंगल में रहने वाले जानवरों के संरक्षण पर जोर देना होगा ताकि विकास के साथ पर्यावरण में संतुलन बना रहे.
तस्वीर: DW/M. Ansari
प्लास्टिक की बोतल का हाथी
इसके जरिए पर्यावरण, जंगल और प्रकृति को बचाने का संदेश दिया गया है. इस्तेमाल की गई सैकड़ों बोतल की मदद से प्लास्टिक का हाथी तैयार किया गया है. जंगल की कटाई और पर्यावरण को हो रहे नुकसान की वजह से जंगली जानवरों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है.
तस्वीर: DW/M. Ansari
मिले सुरक्षित रास्ता
भारत में रहने वाले कई हाथी हर साल ट्रेन से कटकर, जहर खाने से, बिजली के करंट लगने से और सड़क हादसों में मारे जाते हैं. जंगल से निकलकर जब हाथी आबादी वाले इलाकों में जाते हैं तो उनकी जान को खतरा कई गुणा बढ़ जाता है. इंसान और जानवर का टकराव कई बार जानलेवा भी साबित होता है.
तस्वीर: DW/M. Ansari
विरासत पशु हाथी
2010 में हाथियों को राष्ट्रीय विरासत पशु घोषित किया गया था. इसका उद्देश्य हाथियों की घटती संख्या पर जागरूकता फैलाना भी है. पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2009 और 2017 के बीच 655 हाथियों की मौत के मामले दर्ज किए गए. इसमें ट्रेन से हाथियों के कटने के 120 मामले भी शामिल हैं.
तस्वीर: DW/M. Ansari
दीया का संदेश
भारत के वन्य जीवन ट्रस्ट की ब्रांड अंबेस्डर दीया मिर्जा का कहना है कि वन्य जीवों के संरक्षण के काम में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ना ही इस समस्या से निजात पाने का एकमात्र उपाय है, "गज महोत्सव के जरिए लोगों में वन्य जीवों और हाथियों को संरक्षित करने का सकारात्मक संदेश जाएगा."
तस्वीर: DW/M. Ansari
वाइल्ड एंथम
गज महोत्सव के दौरान एक वाइल्ड एंथम भी जारी किया गया है. इस एंथम के बोल है, "प्यारी है मुझे देश की जमीन, मेरे देश की जमीन. यहां ना कोई कमी, हरियाली की बस्ती है यहां. हवा-हवा में मस्ती है यहां." इस गीत को लिखा है मशहूर गीतकार प्रसून जोशी ने और इसे गाया है श्रेया घोषाल, सुनिधि चौहान और विशाल डडलानी ने.
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भोजन के लिए भटकते
भारत में हाथियों की एक बड़ी समस्या भोजन है. जगह और भोजन की कमी के चलते हाथी इंसानी बस्तियों में दाखिल हो जाते हैं और वहां तोड़फोड़ करते हैं. भोजन की तलाश में झुंड में चलने वाले हाथियों पर गांव वाले कई बार घातक हथियारों से हमला भी कर देते हैं.