ऐसे समय गुजार रहे हैं लॉकडाउन में मुंबई के मध्यवर्गीय परिवार
१५ अप्रैल २०२०भारत में लागू राष्ट्रीय लॉकडाउन मुंबई के अधिकतर मध्यवर्गीय व्यस्त परिवारों के लिए वरदान साबित हो रहा है. सोशल डिस्टेंस या सामाजिक दूरी के जरिए कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लागू हुआ लॉकडाउन पारिवारिक सदस्यों के बीच भावनात्मक जुड़ाव को मजबूत करने का जरिया साबित हो रहा है. कई परिवारों की घर के भीतर सुकून का पल बिताने की बरसों पुरानी तमन्ना पूरी हो रही है. इनवेस्टमेंट कंसलटेंट रितेश कुमार पिछले कई दिनों से घर पर ही हैं. आम दिनों में बहुत कम समय परिवार को दे पाने वाले रितेश अब घर से काम करते है और अपने 8 वर्षीय बेटे के साथ लंबा वक्त गुजारते हैं. बेटे और पत्नी के साथ पूजा से लेकर लंच और डिनर कर पाना उनको आत्मिक संतोष प्रदान कर रहा है.
मीडिया इंडस्ट्री से जुड़े सुभाष छेड़ा अक्सर अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए मुंबई से बाहर किसी शांत जगह की तलाश मे रहते हैं. इस बार लॉकडाउन की वजह से उन्हें यह मौका मुंबई के माटुंगा जैसे व्यस्त और शोरगुल वाले इलाके में ही मिल गया है, वह भी अपने ही घर पर. घर से काम और परिवार का साथ होने के कारण कोरोना पर कम ही ध्यान जा रहा है. नौकरानी के न आने से घर के कामकाज को पूरा परिवार मिलकर निबटाता है. सुभाष छेड़ा कहते हैं कि पेंटिंग से लेकर पुस्तक पढ़ने के लिए भी समय मिल रहा है. मोबाइल और इंटरनेट के चलते छेड़ा परिवार बाहरी दुनिया से भी जुड़ा हुआ है.
कोरोना फोबिया से बच्चों को बचाने की चुनौती
लॉकडाउन के दौरान बोरियत को तोड़ने के लिए युवाओं और बच्चों ने भी अलग-अलग तरीका अपनाया है. सभी घर की चारदीवारी के भीतर रहकर अपने अपने शौक पूरे कर रहे हैं. 17 वर्षीय परिणीता बिष्ट अपनी मां से तरह तरह के पकवान बनाना सीख रही हैं. नवी मुंबई के एक प्रतिष्ठित स्कूल की शिक्षिका ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि लॉकडाउन "ई-लर्निंग” के लिए एक बड़ा मौका है. तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है. लॉकडाउन की वजह से छोटे बच्चों के अनगिनत सवालों का जवाब दे पाना या उनकी जिज्ञासाओं को शांत कर पाना माता पिता के लिए आसान नहीं है. कुछ बच्चे स्कूल न जा पाने या बाहर न निकल पाने से परेशान भी हैं.
टीवी पर लगातार कोरोना वाइरस से जुड़े समाचार चलते रहने और घर के भीतर रहने की विवशता ने बच्चों के मन मे भय पैदा हो रहा है. बच्चों के मन से भय को दूर करने के लिए पूजा जैन कटियार और उनके पति तरुण कटियार टीवी न्यूज चैनल की बजाय कैरम, शतरंज और लूडो जैसे खेल या योग का सहारा ले रहे हैं. पूजा बताती हैं कि वह अपनी बेटी के साथ गीत-संगीत और पेंटिंग मे अपना हाथ आजमा रही हैं. जिन घरों में तीन पीढ़ियां एक साथ रहती है वहां बच्चों को संभालना आसान साबित हो रहा है. घर के बुजुर्ग और छोटे बच्चे एक दूसरे के साथ समय बिता कर कोरोना फोबिया की चपेट मे आने से बचे हुए हैं. प्रेरणा ऐसे ही घर की सदस्य हैं जहां उनके बच्चे दादा-दादी के साथ समय बिताते हैं. प्रेरणा का कहना है कि कोरोना वायरस के चलते उपजे नकारात्मक माहौल से बच्चों को दूर रखने में घर के बुजुर्ग उपयोगी साबित हो रहे हैं.
महिलाओं पर काम का बोझ बढ़ा
घर के काम, साफ सफाई से लेकर बच्चों और पति के देखभाल के चलते महिलाओं पर अचानक काम का बोझ बढ़ गया है. रुचि कैंटूरा के पति गैरेज के बिजनेस में हैं. लॉकडाउन के बाद गैरेज बंद पड़ा हुआ है. गैरेज में काम करने वाले कर्मचारी साथ ही रहते हैं, इसलिए रुचि को सबके लिए खाना बनाना, बर्तन धोना और घर की साफ सफाई का अतिरिक्त बोझ उठाना पड़ रहा है. पति और बच्चों से मिल रहे सहयोग के बावजूद उन्हें परिवार के साथ बैठकर समय बिताने का मौका नहीं मिल पा रहा है.
संगीता जाधव कामकाजी महिला हैं लेकिन बदली हुई परिस्थिति में उनपर दोहरी मार पड़ रही है. बच्चों को संभालने और अन्य पारिवारिक सदस्यों की उम्मीदों पर खरा न उतर पाने के चलते कई बार खिटपिट की स्थिति पैदा हो जाती है. हालांकि परिवार के सदस्य आपसी तनातनी को दूर भी कर ले रहे हैं. कई परिवारों में घरेलू हिंसा या मानसिक अवसाद जैसी समस्याएं भी हैं, लेकिन मध्यवर्गीय मुंबईकरों ने आम तौर पर लॉकडाउन को सफल बनाने और इसका सार्थक उपयोग करने का रास्ता खोज लिया है.
__________________________
हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore