स्वीडन में बहुत बड़े स्तर पर हुए एक शोध में पाया गया है कि ऑटिज्म के लिए केवल जीन ही पूरी तरह जिम्मेदार नहीं होते बल्कि माता पिता के आसपास का माहौल और उनकी सामाजिक स्थिति भी उतना ही असर डालती है.
विज्ञापन
बहुत समय से ये माना जाता रहा है कि बच्चों में ऑटिज्म के लिए माता-पिता के जीन ही जिम्मेदार होते हैं. पहले हुई बहुत सी स्टडीज में कहा गया कि माता-पिता की आनुवंशिक संरचना इसके लिए 80 से 90 प्रतिशत तक जिम्मेदार होती है. पहली बार स्वीडेन में किए गए इस इतने बड़े शोध में देखा गया है कि जीन्स महत्वपूर्ण तो हैं लेकिन उतने नहीं. रिसर्चरों ने पाया कि जीन्स का असर केवल 50 फीसदी रहा जबकि बाकी कई कारकों ने ऑटिज्म के मामलों को प्रभावित किया.
'जर्नल ऑफ दि अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन' में प्रकाशित इस स्टडी के नतीजों से रिसर्चर भी हैरान रह गए. उन्होंने पाया कि तंत्रिका तंत्र के विकास में गड़बड़ी के कारण होने वाली अवस्था, ऑटिज्म, किन किन बाहरी कारणों से प्रभावित होती है. वैज्ञानिकों ने देखा कि बच्चे के जन्म के समय होने वाली किसी तरह की परेशानी, उसके परिवार के सामाजिक और आर्थिक हालात, गर्भावस्था के समय या उसके पहले मां को हुए किसी तरह के संक्रमण या फिर उसके लिए ली गई कोई दवा भी बच्चे में ऑटिज्म का कारण बन सकती है.
बीमारी नहीं, अंतर है ऑटिज्म
ऑटिज्म, एक हजार बच्चों में सिर्फ एक या दो बच्चे इससे प्रभावित होते हैं. एक तरफ यह कमी है तो दूसरी तरफ बेजोड़ प्रतिभा.
तस्वीर: Fotolia/pholidito
क्यों होता है ऑटिज्म
ये अब भी अबूझ सवाल है. वैज्ञानिक इसे अनुवांशिक मानते हैं. इस बीच कुछ दूसरे कारणों पर भी शोध हो रहा है. बोलीविया के पश्चिमोत्तर शहर ओरुरो की एक स्टील फैक्ट्री में काम करने वाले कई कर्मचारियों के बच्चे ऑटिज्म के साथ दूसरी बीमारियों के शिकार हैं.
तस्वीर: Getty Images
दुलार के हकदार बच्चे
ऑटिज्म से प्रभावित बच्चों को मां बाप और समाज के प्यार और सहयोग की जरूरत है. चीन के सिंचुआन प्रांत में ऑटिज्म और दूसरी मानसिक बीमारियों से जूझ रहे बच्चों की जिंदगी सुधारने की कोशिश की जा रही है.
तस्वीर: Getty Images
कैसी कैसी मदद
ब्रिटेन के बर्मिंघम में ऑटिस्ट बच्चों की मदद जानवरों के जरिए की जाती है. दोस्ताना जानवरों के साथ बच्चों को घुलने मिलने दिया जाता है. जानवरों के साथ बच्चे अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से व्यक्त कर पाते हैं.
तस्वीर: privat
एक प्यारा सा रिश्ता
कई रिसर्चर मानते हैं कि ऑटिस्ट बच्चे जानवरों को बेहतर ढंग से समझते हैं. उनके और जानवरों के बीच रिश्ता आम लोगों की बनिस्पत ज्यादा गहरा होता है.
तस्वीर: privat
मौके दें
कई बाल कल्याण संस्थाएं ऑटिस्ट बच्चों को प्रकृति के बीच रखने पर ज्यादा जोर देती हैं. इससे इन बच्चों का ध्यान एक जगह रहने के बजाए बंटने लगता है. लगातार ऐसा किया जाए तो बच्चे बाकी चीजों के बारे में भी समझ विकसित कर सकते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
घुड़सवारी की मदद
अमेरिकी राज्य फ्लोरिडा में ऑटिस्ट और दूसरी बीमारियों से लड़ रहे बच्चों को घुड़सवारी करायी जाती है. तस्वीर में आठ साल का माइकल घुड़सवारी कर रहा है. इससे उसकी रीढ़ की हड्डी, फेफड़े, पसलियां और कमर की निचली मांसपेशियां मजबूत होंगी. दो दशक तक ऐसा करने के फायदे भी दिखे हैं.
तस्वीर: Getty Images
प्रतिभा को पहचानें
ब्रिटेन में यह क्लास ऑटिस्ट बच्चों के लिए है. क्लास के जरिए यह पता लगाया जा रहा है कि कौन सा बच्चा किस क्षेत्र में कुशाग्र है. आम तौर पर दो तस्वीरों में अंतर वाले खेल तो ये बच्चे आसानी से हल कर देते हैं.
पश्चिमी देशों में ऑटिज्म पर कई फिल्में भी बनी हैं. ये तस्वीर 1988 की 'रेन मैन' की है. फिल्म दो भाइयों की कहानी है, जो जवानी में मिलते हैं. एक को ऑटिज्म है, दूसरे को पहले तो इसका पता नहीं चलता, फिर वो झल्लाता है लेकिन आखिरकार छोटा भाई ऑटिस्ट भाई की असली प्रतिभा को पहचान ही लेता है.
तस्वीर: dpa/ZUMA Press
एक ऑटिस्ट प्रतिभा
ये हैं ब्रिटिश लेखक और गणित के शौकीन डैनियल टामेट. 2008 में अमेरिकन लाइब्रेरी ने उनकी किताब को वयस्कों की सर्वश्रेष्ठ किताब करार दिया. मार्च 2004 में उन्होंने पांच घंटे में गणित के पाई की 22,514 अंकों में वैल्यू दी. ये यूरोप में रिकॉर्ड है.
तस्वीर: AFP/Getty Images
9 तस्वीरें1 | 9
इस स्टडी में नतीजों पर पहुंचने के लिए स्वीडन के करीब 20 लाख लोगों के डाटा इकट्ठे किए गए. साल 1982 से लेकर 2006 तक इन लाखों लोगों से जुड़ी जानकारियों का एक विशाल डाटाबेस बनाया गया. जानकारियों के इस अंबार के विश्लेषण से रिसर्चर इस नतीजे पर पहुंचे कि माता-पिता की आनुवंशिक संरचना के साथ साथ उनसे जुड़ी हुई बाहरी चीजें बच्चें में ऑटिज्म के मामले में कितने असरदार हो सकती हैं.
विश्व में 100 में से एक बच्चा ऑटिज्म के साथ पैदा होता है. अमेरिका में तो यह तादाद औसतन हर 68 में से एक के करीब है. इस स्डटी के लेखक आवि राइषेनबैर्ग बताते हैं, "हम खुद इन नतीजों से हैरान थे. हमें उम्मीद नहीं थी कि ऑटिज्म पर बाहर के कारक इतना ज्यादा असर डाल सकते हैं." राइषेनबैर्ग न्यूयॉर्क के 'दि माउंट सिनाइ सीवर सेंटर फॉर ऑटिज्म रिसर्च' में काम करते हैं जबकि इस स्टडी के सह-लेखकों के तौर पर लंदन के किंग्स कॉलेज और स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया.
वैज्ञानिकों ने यह जरूर कहा है कि ऑटिज्म के कारणों को समझने के लिए और ज्यादा रिसर्च की जरूरत है. हाल ही में आई रिसर्चों से इस तरफ संकेत मिले हैं कि असल में ऑटिज्म की अवस्था बच्चों में उनके जन्म के पहले से ही होती है. यह भी हो सकता है कि इस समस्या की जड़ें मां के गर्भ में भ्रूण के बढ़ने के समय आकार लेती हों.